अब्दुल रहीम खान-ए-खाना (1556-1627) एक लोकप्रिय भारतीय सूफी कवि थे, जो रहीम के नाम से जाने जाते थे। रहीम मुगल सम्राट अकबर के दरबार के कवि और महान तुर्की नीति-उपदेशक, योद्धा और संरक्षक बैरम खान के पुत्र थे। रहीम अकबर के सौतेले पुत्र थे, क्योंकि अकबर ने बैरम खान की पत्नी से विवाह किया था। रहीम एक बहुत ही उदार प्रवृत्ति के व्यक्ति थे तथा गरीबों और जरूरतमंद व्यक्तियों को खैरात (दान) दिया करते थे।

चूँकि, अब्दुल रहीम खान-ए-खाना, अकबर की मृत्यु के बाद, जहाँगीर के उत्तराधिकारी बनने के समर्थन में नहीं थे इसलिए जहाँगीर ने रहीम के दोनों बेटों को मरवा दिया था और उनके शवों को खूनी दरवाजा नामक स्थान पर सड़ने के लिए छोड़ दिया था।

अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ने बाबर की आत्मकथा को तुर्की से फारसी में अनुवाद किया था। अब्दुल रहीम खान-ए-खाना थे तो मुस्लिम, परन्तु भगवान कृष्ण के एक अनन्य भक्त थे। रहीम भक्ति काल से संबंधित थे और भगवान कृष्ण की स्तुति में हिंदी में दोहे लिखा करते थे। उस समय कला और साहित्य में हिंदू और इस्लाम दोनों के बीच सिद्धांतों का एकीकरण था। उस समय विश्वसनीयता दो संप्रदायों में प्रचलित थी एक सगुण (इसमें माना जाता था कि भगवान कृष्ण, विष्णु एक आदि शक्ति का अवतार हैं) और दूसरा निर्गुण (जिसमें माना जाता था कि भगवान के पास कोई निश्चित रूप और आकार नहीं है)। रहीम सगुण भक्ति काव्य धारा के अनुयायी थे और कृष्ण के बारे में लिखा था।

अब्दुल रहीम खान-ए-खाना अकबर के दरबार के नव-रत्नों में से एक थे। रहीम को भारतीय सभ्यता से लगाव था और वह एक अनुभवी कवि के साथ-साथ एक विद्वान ज्योतिषी भी थे। ईरानी मूल के व्यक्ति होने के बावजूद भी, रहीम को संस्कृत भाषा के आसाधारण ज्ञानी थे। रहीम ने ज्योतिष से संबंधित विषयों पर ‘खेट कौतुकम’ और ‘द्वाविशद योगावली’ जैसी दो रचनाएं लिखीं, जो अभी भी ज्योतिष में रुचि रखने वाले लोगों के लिए संदर्भित की जाती हैं।

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