22 अक्टूबर, 1946 को नई दिल्ली में जन्में दीपक चोपड़ा का नाम समग्र स्वास्थ्य और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है। दीपक चोपड़ा ने नई दिल्ली में ही अपनी शुरुआती पढ़ाई की और फिर वर्ष 1968 में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) से मेडिकल साइंस में स्नातक किया।

वर्ष 1970 में, दीपक चोपड़ा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में शामिल होने के लिए अमेरिका चले गए और फिर न्यू जर्सी हास्पिटल में प्रशिक्षु बने। दीपक चोपड़ा ने आगे का प्रशिक्षण लेह के बर्लिंगटन मैसाचुसेट्स क्लीनिक और यूनीवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया हॉस्पिटल से पूरा किया। दीपक चोपड़ा ने टफ्ट्स यूनिवर्सिटी और बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में शिक्षक के रूप में भी कार्य किया है।

वर्ष 1985 में, दीपक चोपड़ा ने महर्षि महेश योगी से मुलाकात की, जिन्होंने इन्हें आयुर्वेद के ज्ञान से परिचित करवाया। दीपक चोपड़ा महर्षि और आयुर्वेद से प्रेरित होकर ट्रान्सडैंटल मेडिटेशन (दिव्य चिकित्सा) और उचित इलाज (क्वांटम हीलिंग) का अभ्यास करना शुरू कर दिया था।

वर्ष 1992 में दीपक चोपड़ा ने सैन डिएगो में चोपड़ा सेंटर की स्थापना की और वर्तमान में वह इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी और चिकित्सा निदेशक भी हैं। दीपक चोपड़ा ने ध्यान, आध्यात्मिकता, स्वास्थ्य, दर्शन और अन्य विभिन्न विषयों पर कई पुस्तकें भी लिखीं हैं। दीपक चोपड़ा स्वयं वेदों और भगवद् गीता की शिक्षाओं से काफी प्रभावित थे। दीपक चोपड़ा की कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें निम्न हैं:

  • सेवेन स्पिरिचुअल लॉ ऑफ सक्सेस
  • क्वांटम हीलिंग: एक्सप्लोरिंग दि फ्रंटियर्स ऑफ माइंड/बॉडी मेडिसिन
  • परफेक्ट हेल्थ: दि कम्पलीट माइंड/बॉडी गाइड
  • ग्रो यंगर, लिव लांगर: 10 स्टेप्स टू रिवर्स एजिंग
  • दि बुक आफ सीक्रेट्स: अनलॉकिंग दि हिडेन डाइमेन्शन ऑफ योर लाइफ
  • लाइफ आफ्टर डेथ: दि बर्डन ऑफ प्रूफ

 

जून 2005 में, दीपक की बेटी मल्लिका चोपड़ा ने शेखर कपूर और अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों के साथ मिलकर एक डिस्कशन ब्लॉग की शुरुआत की। वर्ष 2006 में दीपक चोपड़ा के बेटे गोथम चोपड़ा ने अपने पिता और रिचर्ड ब्रैंसन के साथ वर्जिन कॉमिक्स एलएलसी की शुरुआत की।

चोपड़ा को क्वांटम हीलिंग की अवधारणा के कारण दुनिया भर से काफी सराहना प्राप्त हुई थी। लेकिन कुछ जीवविज्ञानियों और भौतिकविदों ने चोपड़ा के कार्य की अत्यधिक आलोचना करते हुए कहा कि इनकी अवधारणा का कोई मजबूत आधार नहीं है। इसलिए वे इस अवधारणा को केवल एक आध्यात्मिक कल्पना के रूप में मानते हैं।

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