कपिल देव रामलाल निखंज को “हरियाणा तूफान” जैसे अन्य नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म 6 जनवरी 1959 को चंडीगढ़ में हुआ था। इन्होंनें वर्ष 1983 में भारत के लिए अपना पहला और एकमात्र विश्व कप खिताब जीता और 2002 में विज्डन (लंदन) द्वारा कपिल देव को ‘इंडियन प्लेयर ऑफ द सेंचुरी’ चुना गया। कपिल देव ने 1978-79 में फैसलाबाद में पाकिस्तान के खिलाफ अपने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर की शुरुआत की।

जब 1979-80 में पाकिस्तानी टीम छह टेस्ट मैचों की सीरीज खेलने के भारत आई, तो कपिल को उनके शानदार प्रदर्शन के लिए “मैन ऑफ द सीरीज” का पुरस्कार दिया गया। इन्होंनें अगले सीजन में ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर भी अच्छा प्रदर्शन जारी रखा। कपिल देव ने 1981-82 में घरेलू सीरीज में इंग्लैंड के खिलाफ “मैन ऑफ द सीरीज” का पुरस्कार जीता और साथ ही साथ 1982 में इस सीरीज को भी अपने नाम किया। 1982 में पाकिस्तान के दौरे पर भारत के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद कपिल देव को भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान नियुक्त किया गया। कपिल देव ने 1984 में अपनी कप्तानी खो दी और इनकी जगह पर सुनील गावस्कर को कप्तान नियुक्त कर दिया गया। लेकिन 1985 में कपिल देव ने कप्तान के तौर पर फिर से वापसी की। 1996 में कपिल ने इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीतने के लिए भारतीय टीम का नेतृत्व किया।

वह एक सफल गेंदबाज भी थे। कपिल 1991 में टेस्ट क्रिकेट में 400 विकेट लेने वाले दूसरे गेंदबाज बने। वह 1994 में दुनिया में सबसे ज्यादा टेस्ट विकेट लेने वाले गेंदबाज बने। इनके इस रिकॉर्ड को 1999 में कोर्टनी वॉल्श द्वारा तोड़ दिया गया। 4,000 टेस्ट रन बनाने और 400 टेस्ट विकेट लेने के लिए कपिल का नाम रिकॉर्ड बुक में दर्ज है। 1994 में वसीम अकरम द्वारा उनका रिकॉर्ड टूटने से पहले वह 1988 में, एकदिवसीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज बने।

एक बहुत ही आक्रामक खिलाड़ी, जो विपक्षियों से टक्कर लेने के बेताब रहता था। उनकी सबसे यादगार पारी में से एक 1983 के विश्वकप फाइनल का वह मैच था, जब जिम्बाब्वे के खिलाफ भारत की स्थित काफी नाजुक थी, भारत का स्कोर 17/5 विकेट था, भारत को विषम परिस्थितियों से उबारते हुए उन्होंनें इस मैच में 175 रन बनाये थे।

1994 में उन्होंनें क्रिकेट से संन्यास ले लिया और 1999 में भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के कोच के रूप में नियुक्त हुए, लेकिन वर्ष 2000 में उन्होंनें इस पद से इस्तीफा दे दिया। 1979-80 के लिए इन्हें अर्जुन पुरस्कार, 1982 में पद्मश्री और 1991 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

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