विश्वनाथ प्रताप सिंह या भारत के 10 वें प्रधानमंत्री वी. पी. सिंघ ने वर्ष 1989 के चुनावों में कांग्रेस को हराकर भारतीय राजनीति में उथल-पुथल मचा दी थी। बोफोर्स घोटाले के संबंध में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ समस्याओं के चलते उन्होंने कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया था। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 2 दिसंबर 1989 को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की थी।

विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म 25 जून 1931 को इलाहाबाद में हुआ था। विश्वनाथ प्रताप सिंह जी अपनी शिक्षा इलाहाबाद और पुणे में पूरी करने के बाद, उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य बने। वर्ष 1971 में विश्वनाथ प्रताप सिंह लोकसभा के लिए चुने गए थे और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा उप मंत्री के रूप में नियुक्त किए गए थे।

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने वर्ष 1977 तक कार्यालय में सेवा की। फिर उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की। मुख्यमंत्री पद पर आसीन होते हुए विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दक्षिण-पश्चिम उत्तर प्रदेश में डकैती के खतरों को खत्म करने की कोशिश की। वी. पी. सिंह को प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा वर्ष 1984 में वित्त मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया।

वित्त मंत्री के रूप में, विश्वनाथ प्रताप सिंह ने वित्त मंत्रालय के प्रवर्तन निदेशालय को कर चोरी करने के लिए कठोर कार्रवाई करने का आदेश दिया। जब उच्च प्रोफाइल वाले लोगों मुख्य रूप से धीरूभाई अंबानी जैसे उद्योगपतियों पर छापे पड़े, तो उन्हें राजीव गांधी ने उनके पद से बर्खास्त कर दिया और रक्षा मंत्रालय को स्थानांतरित कर दिया।

वी. पी. सिंह को मंत्रिमंडल से अप्रत्याशित रूप से बरखास्त कर दिया गया, जिससे उन्होनें कांग्रेस और लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। गठबंधन करने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने वर्ष 1989 में चुनाव लड़ा।

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने चुनाव जीता और केंद्र में अपनी गठबंधन की सरकार बनाई। वी. पी. सिंह ने संसद का अविश्वास प्रस्ताव खो जाने के बाद वर्ष 1990 में प्रधानमंत्री के पद की शपथ ग्रहण की थी।

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