कृष्णदेव राय के शासनकाल  में विजयनगर साम्राज्य अपने सर्वोच्च  शिखर पर पहुँच गया था। वह एक सक्षम प्रशासक ही नहीं, बल्कि एक महान योद्धा भी थे। कृष्णदेव राय विद्वान, कवि, संगीतकार व एक दयालु राजा थे। कृष्णदेव राय अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते थे और यहाँ तक कि अपने दुश्मनों का भी सम्मान किया करते थेृ। उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान सभी युद्धों में जीत हासिल की थी।

कृष्णदेव, वीर नरसिंह के छोटे भाई थे, जो सुल्वा को पराजित करके सिंहासन पर बैठे थे। कृष्णदेव ने अपने भाई की मदद की और जल्द ही एक सक्षम राजा के रूप में अपनी योग्यता साबित कर दी। कृष्णदेव ने अपने सभी युद्धों में विजयी होकर राज्य को विस्तारित किया। उन्होंने उड़ीसा के राजा और बीजापुर के सुल्तान को भी हराया। कृष्णदेव ने दक्षिण भारत में मुस्लिम प्रभुत्व का अंत करने के लिए बहमनी शासक इस्माइल आदिल शाह को पराजित किया। उनका राज्य पूर्वी भारत कटक से पश्चिमी गोवा तक और दक्षिणी भारतीय महासागर से लेकर उत्तरी रायचूर डोब तक फैला हुआ था।

कृष्णदेव के शासनकाल में यूरोपीय (मुख्यतः पुर्तगाली) व्यापारी भारत आए और कृष्णदेव ने आगंतुकों के साथ विदेशी व्यापार को भी  प्रोत्साहित किया। कृष्णदेव कला, कविता और संगीत के एक महान संरक्षक थे। विद्वान, तेनाली रामकृष्ण, जो अपने ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे, वह कृष्णदेव के प्रमुख सभासद थे। उन्होंने हम्पी में प्रसिद्ध विठ्ठलस्वामी और हजारा मंदिर का निर्माण करवाया। इन हिंदू मंदिरों के अलावा यहाँ पर कई अन्य वास्तुकला और विजयनगर शैली के शानदार नमूने स्थापित हैं।

श्री कृष्णदेव राय के बारे में जानने योग्य तथ्य

नाम श्री कृष्णदेव राय
शासन-काल 1509-1529
जन्म-तिथि 17 जनवरी 1971
जन्म स्थान हम्पी, कर्नाटक
मृत्यु वर्ष 1529
अंतिम संस्कार हम्पी,कर्नाटक
पूर्वज वीरनर सिंह राय
उत्तराधिकारी अच्युतदेव राय
पत्नी चिन्ना देवी, तिरुमला देवी, अन्नपूर्णा देवी
राजवंश तुलुव
पिता तुलुव नरेस नायक (बंटों के सरदार)
धार्मिक विश्वास हिन्दू धर्म
बेटा तिरुमला राय
बाह्य मामले बहमनी सुल्तान, ओडिशा के गजपति और पुर्तगाली उनके मुख्य दुश्मन थे।
डेक्कन में सफलता वर्ष 1509 में कृष्णदेव राय की सेना और बीजापुर के सुल्तान ने एक-दूसरे से युद्ध किया। उसमें उन्होंने यूसुफ आदिल खान को मारा और सुल्तान महमूद को पराजित किया।
साम्राज्यों के साथ युद्ध कृष्णदेव राय ने ओडिशा के गजपति जागीरदार राजाओं पर विजय प्राप्त की। उन्होंने कावेरी नदी के किनारे गंगा राजा को हराया।
पुर्तगालियों के साथ संबंध कृष्णदेव राय और पुर्तगाली सौहार्दपूर्ण संबंध साझा करते थे। वर्ष 1510 में, गोवा में भारत के पुर्तगाली प्रभुत्व को स्थापित किया। अरबियाई घोड़े और बंदूकें पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा सम्राट को आपूर्ति की गईं।
बेटे की मौत वर्ष 1524 में, अपने बेटे तिरुमला राय  को युवराज बनाया। हालांकि वे लंबे समय तक सेवा नहीं कर पाए और जहर खाने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
कला और साहित्य कृष्णदेव राय के शासनकाल के दौरान कई भाषाओं में साहित्य समृद्ध हुआ था, इसलिए उनके शासन को तेलुगू साहित्य का स्वर्ण युग भी कहा जाता है। संस्कृत, तेलुगू, तमिल और कन्नड़ भाषाओं के कई कवियों को राजा ने पनाह दी थी। अष्टदिग्गज- आठ महान कवि उनके दरबार के प्रमुख अंग थे।
कन्नड़ साहित्य उन्होंने कन्नड़ कवियों मल्लानाराय, चटु विट्ठल-अनंत और तिमन्ना कवि को पनाह दी थी।
कविओं का सम्मान अल्लासानि पेद्दन को राजा द्वारा तेलुगु कविता के पितामह का नाम दिया गया था, जिसका अर्थ था “तेलुगु कविता का पिता”। मनु-चरित्र उनके लोकप्रिय कृति में से एक है।
संस्कृत साहित्य एक संस्कृत कवि व्यासतीर्थ ने, तट-परया-चंद्रिका, भेदो-जीवना, न्याय-मरिता और ताड़का-तांडव लिखी हैं। कृष्णदेव राय स्वयं एक विद्वान थे। उनके द्वारा चरिता, मदलसा, रसमंजरी और सत्यवाडू परिणीया लिखी गई हैं।
धर्म और संस्कृति हिंदू धर्म के सभी संप्रदाय कृष्णदेव राय द्वारा सम्मानित थे।

 

 

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