19वीं शताब्दी में, मिर्जा गालिब भारतीय उपमहाद्वीप के एक प्रसिद्ध उर्दू और फारसी शायर थे। मिर्जा गालिब का मूल नाम मिर्जा असद-उल्लाह बेग खाँ था। इनका मूल उपनाम असद था, लेकिन इन्होंने अपना नाम बदल कर गालिब रख लिया था, जिसका अर्थ ‘विजेता’ होता है। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, गालिब ने कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की थी।

व्यक्तिगत जीवन

मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1796 को काला महल, आगरा में हुआ था। मिर्जा गालिब तुर्की वंश के थे। जब मिर्जा गालिब के पिता और चाचा की मृत्यु हुई तब यह युवा थे और उसके बाद वह दिल्ली चले गए। मिर्जा गालिब की शादी तेरह वर्ष की आयु में (लगभग 1810) एक कुलीन परिवार में संपन्न हो गई थी। मिर्जा गालिब के सात बच्चे थे, लेकिन उनमें से कोई भी जीवित नहीं रहा। यह दर्द उनकी गजलों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

साहित्यिक कैरियर

मिर्जा गालिब, उर्दू में लिखी हुई अपनी गजलों के लिए प्रसिद्ध हैं। लेकिन गालिब ने फारसी भाषा में भी कविताएं लिखी हैं। मिर्जा गालिब की प्रतिभा बहुत ही कम उम्र में विकसित हो गई थी, उन्नीस वर्ष की आयु में ही गालिब अधिकांश कविताएं लिख चुके थे। प्रारंभ में, गालिब अपनी गजलों के माध्यम से प्यार के दर्द को व्यक्त करते थे, लेकिन इन्होंने अपने ज्ञान की सीमा का विस्तार किया। मिर्जा गालिब ने जीवन के असहाय दर्द और फ़लसफा को व्यक्त करने के लिए उर्दू भाषा पर अधिक जोर दिया। इससे गालिब की कविताएं एक सर्वोत्कृष्ट कृति बन गई।

गालिब के समय में, उर्दू एक दिखावटी भाषा थी, लेकिन मिर्जा गालिब ने इसे अनौपचारिक करके काफी रोचक बना दिया। मिर्जा गालिब ने हास्यपूर्ण गद्य की भी रचना की। अपने मित्रों को लिखे गए पत्रों में उनके इस हास्य का पर्याप्त प्रमाण मिलता है। वास्तव में, आधुनिक उर्दू भाषा मिर्जा गालिब की आभारी है। मिर्जा गालिब ने उर्दू भाषा का खूबसूरती से गजलों में प्रयोग करके इसे एक नया जीवन दिया है।

शाही खिताब

बहादुर शाह जफर द्वितीय द्वारा मिर्जा गालिब को “दबीर-उल-मुल्क” के खिताब से नवाजा गया। मिर्जा गालिब को सम्राट द्वारा नज्म-उद-दौला और ‘मिर्जा नोशा’  खिताब दिया गया था।

मिर्जा गालिब सम्राट के शाही दरबार के दरबारियों में से एक थे। मिर्जा गालिब को सम्राट के कवि और मुगल दरबार के शाही इतिहासकार के रूप में नियुक्त किया गया था।

गालिब राज्य के आश्रय पर रहते थेः इन्होंने नियमानुसार स्थिर होकर कभी भी नौकरी नहीं थी। मिर्जा गालिब, उर्दू भाषा के सबसे प्रतिभावान और प्रभावशाली शायरों में से एक माने जाते हैं, 15 फरवरी 1869 को उनका निधन हो गया। मिर्जा गालिब अपने जीवनकाल के दौरान प्रसिद्धि प्राप्त नहीं कर सके, लेकिन अपनी मृत्यु के बाद वह काफी प्रसिद्ध हो गए।

भारतीय निर्देशक गुलजार ने इस महान कवि के जीवन पर एक टीवी सीरियल ‘मिर्जा गालिब’ बनाया था। इस सीरियल को दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया था।

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