नूरजहां (1577-1645) मुगल काल की एक महारानी थी, जिन्हें भारत के इतिहास में मुगल शासक जहांगीर की सबसे पसंदीदा पत्नी के तौर पर याद किया जाता है। उनका असली नाम मेहर-उन-नीसा था। उनका जन्म अफगानिस्तान के कंधार में 1597 में पर्शिया के एक कुलीन परिवार में हुआ था। उनके दादा शाह तहमास्प प्रथम की सेवा में थे।

मेहरूनिसा मिर्जा घियास बेग और उनकी पत्नी अस्मत बेगम की चौथी संतान थी। परिवार के भारत आने के बाद उनका जन्म हुआ। उनके पिता घियास बेग महान मुगल शासक अकबर की सेवा करते थे। अकबर ने उनके पिता को ‘इतमत-उद-दौला’ (राज्य का एक स्तंभ) की पदवी दे रखी थी। इसके बाद उनके भाई आसफ खान ने जहांगीर और उनके उत्तराधिकारी महाराज शाहजहां की सेवा की।

एक आप्रवासी से मुगल शासन की महारानी बनने वाली नूरजहां उस कालखंड की सबसे प्रभावी शख्सियतों में से एक थीं। नूरजहां ने अपने शासनकाल (1611-1627) के दौरान मुगल साम्राज्य को आकार देने और विस्तार देने में महती भूमिका निभाई। इसके साथ-साथ उन्होंने मुगल काल में कला, धर्म और विदेशी व्यापार को बढ़ाने और फैलाने में भी अहम योगदान दिया।

मेहरूनिसा की पहली शादी 17 साल की उम्र में एक पारसी साहसी शेर अफगान अली कुली खान इस्ताजलु से हुई थी। उनके पहले पति का अपने क्षेत्र में दबदबा था। उनसे उन्हें पहली संतान भी हुई, जिसका नाम उन्होंने लाड़ली बेगम रखा था। 1607 में शेर अफगान के निधन के बाद मेहरूनिसा ने मुगल साम्राज्य की सेवा करना शुरू की। 1605 में अकबर के निधन के बाद जहांगीर ने उत्तराधिकारी के तौर पर शासन किया। इस दौरान मेहरूनिसा की जिम्मेदारी जहांगीर की सौतेली माताओं में से एक रुकैया सुल्ताना बेगम की सेवा करने की थी। 1607 में मेहरूनिसा ने बहुत ही बुरा दौर देखा। उनके परिवार के दो सदस्यों को राजद्रोह के आरोप में मृत्युदंड की सजा दी गई। इसके बाद भी जैसे भाग्य मेहरूनिसा पर मेहरबान था और आगे चलकर उनका भाग्य ही बदल गया।

1611 में नौरोज उत्सव के दौरान, जहांगीर ने मीना बाजार पैलेस में मेहरूनिसा को पहली बार देखा। उनकी खूबसूरती देखकर वह मोहित हो गए। उसी साल कुछ ही महीनों बाद जहांगीर ने मेहरूनिसा से निकाह कर लिया। दोनों का आपसी प्यार इतना मजबूत था कि कुछ ही दिनों में मेहरूनिसा उनकी पसंदीदा पत्नी बन गईं। शादी के बाद जहांगीर ने उन्हें नाम दिया नूर महल (महल की रोशनी)। बाद में 1616 में उन्हें नूरजहां (दुनिया की रोशनी) कहा जाने लगा। जहांगीर ने नूरजहां को सरकारी कामकाज के अधिकार भी दे दिए। इससे उनके परिजन भी फले-फूले। जहांगीर को शराब और अफीम की लत लग चुकी थी। इससे नूरजहां का शासन पर प्रभाव बढ़ गया था। धीरे-धीरे वह ही पर्दे के पीछे से मुगल शासन को चलाने लगी। यह वह दौर था जब मुगल शासन ने तेजी से विकास किया। सरकारी कामकाज के प्रबंधन के साथ ही नूरजहां ने अपने नाम से सिक्के भी बनवाकर जारी किए। नूरजहां ने प्रशासनिक कामकाज भी अच्छे-से संभाला। महिलाओं के मामले हो या घरेलू और विदेशी व्यापार, व्यापारियों से कर संग्रह की व्यवस्थाओं को सुधारा, जिससे आगरा कारोबार का एक गढ़ बन चुका था।
1627 में जहांगीर के निधन के बाद, सौतेले बेटे खुर्रम ने नूरजहां को आलीशान महल तक सीमित कर दिया। यहीं खुर्रम आगे चलकर शाहजहां हुए, जिन्होंने नूरजहां के भाई आसफ खान की बेटी मुमताज महल से शादी की। नूरजहां का ज्यादातर समय आगरा में अपने पिता की याद में आलीशान मकबरा इत्माद-उद-दौला बनवाने में चला गया। हरियाली से आच्छादित यह इलाका आज भी दर्शनीय है।
नूरजहां की पारिवारिक पृष्ठभूमि में साहित्य था। लिहाजा इसका असर उन पर भी दिखा। नूरजहां ने अपने साहित्य सृजन से अपनी अलग पहचान बनाई। परंपरागत पारसी संस्कृति में उनकी रुचि और विशेषज्ञता की बदौलत ही उन्होंने इत्र-निर्माण, जेवरात, परिधान, फैशनेबल डिजाइंस के विकास में अहम योगदान दिया। यह मुगलकाल की भारत को बड़ी देन रही। नूरजहां के काल में कई पेंटिंग्स भी बनीं, जो मुगल कला पद्धति का बेजोड़ नमूना है। इसके अलावा बेहतरीन बगीचे और शानदार वास्तुकला भी देखने को मिली। जालंधर में नूर महल सराय इसका एक नमूना है। नूरजहां का निधन 1645 में हुआ। लाहौर में जहांगीर के मकबरे के करीब ही शाहदरा में उनकी कब्र है।

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