दिल्ली के राज-सिंहासन पर बैठने वाले चौहान राजवंश के अंतिम शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म वर्ष 1168 में, अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान के यहाँ एक पुत्र के रूप में हुआ था। पृथ्वीराज चौहान एक प्रतिभाशाली बालक थे, जो सैन्य कौशल सीखने में बहुत ही निपुण थे। पृथ्वीराज चौहान में आवाज के आधार पर निशाना लगाने की कुशलता थी। जब वर्ष 1179 में पृथ्वीराज के पिता की एक युद्ध में मृत्यु हो गई थी, तब पृथ्वीराज ने 13 वर्ष की उम्र में अजमेर के राजगढ़ की गद्दी को संभाला था। पृथ्वीराज के दादा अंगम दिल्ली के शासक थे। उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साहस और बहादुरी के बारे में सुनने के बाद, उन्हें दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। पृथ्वीराज ने एक बार बिना किसी हथियार के अकेले ही एक शेर को मार डाला था। पृथ्वीराज चौहान को एक योद्धा राजा के रूप में जाना जाता था।

जब पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के राज-सिंहासन की गद्दी पर बैठे, तब उन्होंने किला राय पिथौरा का निर्माण कराया। पृथ्वीराज का संपूर्ण जीवन वीरता, साहस, शौर्यवान और निरंतर महत्वपूर्ण कार्य करने की एक श्रृंखला में बँधा था। जब पृथ्वीराज चौहान केवल तेरह वर्ष के थे, तब उन्होंने गुजरात के पराक्रमी शासक भीमदेव को पराजित किया था।

पृथ्वीराज चौहान के शत्रु जयचंद की बेटी संयुक्ता के साथ उनकी प्रेम कहानी बहुत ही प्रसिद्ध है। पृथ्वीराज चौहान उसके ‘स्वयंवर’ के दिन ही उसको साथ में लेकर चले गए थे।

पृथ्वीराज चौहान जिस समय अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे, उस समय वर्ष 1191 में मोहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण कर दिया था और तराइन के पहले युद्ध में गोरी पराजित हो गया था। मोहम्मद गोरी की पराजित होने वाली सेना पर हमला करने के लिए कहा गया, लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने असली राजपूत परंपरा का पालन करने के लिए ऐसा करने से इनकार कर दिया, क्योंकि पीठ पीछे हमला करना निष्पक्ष युद्ध नियमों के अनुरूप नहीं था। परिणामस्वरूप, मोहम्मद गोरी ने फिर से भारत पर आक्रमण किया और तराइन के द्वतीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को पराजित करके बंदी बना लिया। पृथ्वीराज चौहान के साथ काफी बुरा व्यवहार किया गया था, क्योंकि उसने पृथ्वीराज चौहान की आँखों में लाल गर्म लोहे की छड़ डालकर उन्हें अंधा बना दिया था। लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने अपना साहस नहीं खोया। उन्होंने अपने दरबारी कवि और मित्र चंदबरदाई की सहायता से “शब्दभेदी बाण” के जरिए मुहम्मद गोरी को मारने की योजना बनाई। पृथ्वीराज चौहान के द्वारा आवाज के आधार पर निशाना लगाने का उनका यह हुनर काफी काम आया। पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी के द्वारा आयोजित तीरंदाजी प्रतियोगिता के दौरान अपने कौशल को प्रदर्शित किया। जब मोहम्मद गोरी ने उनकी प्रशंसा की तब उन्होंने उसकी आवाज सुनकर शब्दभेदी बाण चला दिया और मोहम्मद गोरी को मार गिराया। शत्रुओं के हाथों मरने से बचने के लिए पृथ्वीराज चौहान और उनके मित्र चंदबरदाई ने एक दूसरे को मार दिया था।

चंदबरदाई ने अपने महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान के जीवनकाल की कहानी को संकलित किया है। वर्ष 1192 में पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हो गई थी और उनकी मृत्यु के साथ ही उनकी बहादुरी, साहस, देशभक्ति और सिद्धांतों का भी अन्त हो गया था। लेकिन चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासो और पृथ्वीराज विजय के जयानक में पृथ्वीराज चौहान के अमर कर्म संकलित हैं।

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