6 जून 1890 को जन्मे गोपीनाथ बोरदोलोई ने अपनी शुरुआती पढ़ाई असम के गुवाहाटी में कॉटन कॉलेजिएट स्कूल से की और कोलकाता में स्कॉटिश चर्च कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। कॉलेज में रहते हुए, गोपीनाथ कांग्रेस पार्टी से जुड़े और जल्द ही पूर्वोत्तर भारत में विशेष रूप से असम में कांग्रेस पार्टी की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई। असम के सभी क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के लिए कहा गया, जिसके गोपीनाथ पहले सचिव बने।

स्वतंत्र भारत में गोपीनाथ अविभाजित असम के पहले मुख्यमंत्री बने। नेता के रूप में गोपीनाथ ने अलग-अलग जातीय मूल और समुदायों के लोगों को एक दूसरे के करीब लाकर उनमें एकता और अखंडता की भावना पैदा की। असम राज्य के सर्वांगीण विकास के लिए उनके सशक्त प्रयास ने उन्हें “आधुनिक असम के वास्तुकार” की उपाधि दी। गोपीनाथ ने न केवल बांग्लादेशियों की घुस पैठ की वजह से असम में आने वाली समस्याओं का आकलन किया, बल्कि इसकी जाँच के लिए सक्रिय कदम भी उठाए। बोरदोलोई सरकार ने धनी किसानों पर कृषि कर लागू किया, जिसके कारण वह समकालीन प्रांतीय सरकारों के बीच ऐसा करने वाले पहले व्यक्ति थे।

सिद्धांत और कार्यों में एक सख्त गांधी वादी गोपीनाथ को वर्ष 2000 में मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार प्रदान किया गया था और उनकी मौत के 50 साल बाद उन्हें इस पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था। लेकिन कोई भी पुरस्कार उनके प्रति लोगों के प्यार, स्नेह और सम्मान से मेल नहीं खा सकता, जो उन्हें “लोकप्रिय” अर्थात् “लोगों का प्रिय” बनाता है।

 

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