शिवराम राजगुरु (1908-1931) एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शिवराम राजगुरु ऐसे महान भारतीय क्रांतिकारियों में से एक हैं, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। इनका का पूरा नाम हरि शिवराम राजगुरु था और एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। शिवराम राजगुरु ने अपने बचपन के दिनों से ही उन क्रूर अत्याचारों को देखा था, जो शाही ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा भारत और उसकी जनता को दण्डित किया जाता था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए बोली लगाने में क्रान्तिकारियों के साथ हाथ मिला कर अपने अन्दर तीव्र इच्छा और अधिक मजबूत किया।

भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के समय हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (एचएसआरए) का एक सक्रिय बल था, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ काम करता था। शिवराम राजगुरू का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन के अधिकारियों के दिलों में अपना भय कायम करना था। वे सभी लोग एक साथ मिलकर जनता के बीच जागरूकता फैलाने का काम करते थे। जब वे लाहौर षडयंत्र (18 दिसंबर,1928) मामले में हमलों के साथ और नई दिल्ली (8 अप्रैल,1929) में सेंट्रल असेंबली हॉल पर बमबारी जैसे महत्वपूर्ण आक्रमण से निपट रहे थे, तब उन्होंने बढ़ते घरेलू विद्रोह की तरफ अपना ध्यान केन्द्रित किया।

उन्होंने अक्टूबर 1928 में हुए साइमन कमीशन के विरोध में ब्रिटिश पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज करते देखा, जिसमें अनुभवी नेता लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गये थे। लाला लाजपत राय ने अत्यधिक मार पीट और चोट खाने के कारण उनके सामने अपने घुटने टेक दिए, जिस कारण क्रातिंकारियों के दिलों में बदला लेने का प्रतिशोध पैदा हो गया। 18 दिसंबर 1928 को, फिरोजपुर, लाहौर में एक योजनाबद्ध तरीके से पुलिस अधीक्षक जे. पी. सॉन्डर्स की हत्या कर दी। सुखदेव थापर के साथ-साथ शिवराम राजगुरु, भगत सिंह के सहयोगी थे जिन्होंने इस हमले का नेतृत्व किया था। उस हमले के बाद राजगुरू नागपुर में जाकर छिप गए। वहाँ आरएसएस कार्यकर्ता के घर में शरण लेने के दौरान, उन्होंने डॉ. के.बी. हेडगेवार से भी मुलाकात की। आखिरकार शिवराम राजगुरू को पुणे की यात्रा के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया था। भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को उनके अपराधों का दोषी ठहराया गया और उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई।

23 मार्च 1931 को, भारत के इन तीन वीर क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई, और उनके शरीर का अंतिम संस्कार सतलुज नदी के तट पर किया गया। जिस समय शिवराम राजगुरू शहीद हुए उस समय वह मात्र 23 वर्ष के थे, हालांकि, शिवराम राजगुरु को भारत की स्वतंत्रता के प्रति अपने जीवन का बलिदान और वीरता के लिए इतिहास के पन्नों में हमेशा याद किया जाएगा।

  शिवराम राजगुरु के बारे में कुछ तथ्य और जानकारी

जन्म 24 अगस्त 1908
जन्म स्थान राजगुरुनगर, पुणे, महाराष्ट्र, ब्रिटिश भारत
राष्ट्रीयता ब्रिटिश भारतीय
मृत्यु 23 मार्च 1931 (23 वर्ष), लाहौर, ब्रिटिश भारत (अब पंजाब में, पाकिस्तान)
राजनीति में शामिल होने से पहले भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन
योगदान ब्रिटिश राज पुलिस अधिकारी की हत्या में भागीदारी के लिए इन्हें मुख्य रूप से जाना जाता है।
पुरुस्कार और सम्मान उनके सम्मान में जन्मस्थान खेडा गांव का नाम बदलकर राजगुरूनगर कर दिया गया है।

1953 में हरियाणा के हिसार शहर में शॉपिंग मॉल का नाम उनके सम्मान में राजगुरू मार्केट कर दिया गया था।

 

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