भरतनाट्यम भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में से एक सबसे प्रसिद्ध नृत्य है। यह तमिलनाडु राज्य में उत्पन्न हुआ और अब भारत के सबसे पुराने शास्त्रीय नृत्यों में से एक है। इसको 2000 वर्ष पुराना माना जाता है और यह नाट्य शास्त्र (भारतीय नाट्य शास्त्र की बाइबिल) के सिद्धान्तों का पालन करता है।
इस नृत्य में नृत्यकर्ता द्वारा कई प्रकार की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए, हाथ और आँख का संचालन अधिक किया जाता है। भरतनाट्यम एक शब्द है, जिसे नृत्य के चार सबसे महत्वपूर्ण तत्वों (संस्कृत में) से लिया गया है।
- भा से भाव (भावना)
- र से राग (संगीत या माधुर्य)
- त से ताल (लय)
- नाट्यम का अर्थ है नृत्य
इस प्रकार इसकी भावना, संगीत, लय और अभिव्यक्ति का एक संयोजन है। यह शास्त्रीय नृत्य के सभी पारंपरिक पहलुओं को शामिल करता है – मुद्रा (हाथ की स्थिति), अभिनय (चेहरे का भाव) और पद्म (कथा नृत्य)।
भरतनाट्यम का इतिहास
इसका इतिहास आकर्षक रहा है। पारंपरिक रूप से भरतनाट्यम की नृत्य शैली वास्तव में दस्सी अट्टम और सद्र के पारंपरिक रूपों से कई विभिन्न तत्वों का एकीकरण है। देवदासियों द्वारा किया जाने वाला एक नृत्य दस्सी अट्टम के रूप में जाना जाता है जबकि सद्र दक्षिण भारत के शाही महलों में किया जाने वाला एक नृत्य है।
भरतनाट्यम के समर्थक
चेन्नई के ई कृष्ण अय्यर भरतनाट्यम के विकास के लिए सबसे प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक थे। उन्होंने 1927 में मद्रास में प्रथम अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन का आयोजन किया। सम्मेलन के परिणामस्वरूप, 1928 में संगीत अकादमी की स्थापना हुई थी। उन्होंने लगभग एक दशक तक अकादमी के सचिव के रूप में कार्य किया।
भरतनाट्यम के कुछ समर्थक इस प्रकार हैं –
- पांडानल्लूर जयलक्ष्मी
- जीवनरत्नम
- नृत्य रानी बालासरस्वती
- श्रीमती रुक्मिणी देवी अरुंडेल
- गुरु मीनाक्षीसुंदरम पिल्लई
- राम गोपाल
- मृणालिनी साराभाई एवं अन्य