हिंदी थिएटर का भारत में एक मजबूत आधार है। एक अध्ययन से पता चलता है कि हिंदी थिएटर पहली बार वाराणसी के भारतेन्दु हरिश्चंद्र नामक व्यक्ति द्वारा शुरू किया गया था। उन्होंने हिंदी थिएटर को न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध करने का प्रयास किया। भारतेन्दु ने हिंदी में संस्कृत थिएटर की कुछ अवधारणाओं को जोड़ा।

उन्होंने एक संघ की स्थापना की जिसका नाम भारतेन्दु नाट्यमंडली रखा, जिसका मुख्य उद्देश्य हिंदी नाटक को प्रसिद्ध करना एवं विश्व व्यापी बनाना था।

आधुनिक हिंदी थिएटर की अवधारणा 1940 के दशक और 1950 के दशक के अंत में विकसित हुई थी। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि आधुनिक हिंदी थिएटर केवल हिंदी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह सभी गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी लोकप्रिय है।

नए ऊर्जावान निर्देशकों ने आधुनिक विकासशील युग में हिंदी थिएटर की अवधारणा को एक नया प्रोत्साहन दिया है। आधुनिक युग में हिंदी थिएटर में मध्यम वर्ग का असीम प्रभाव उसके स्वभाव में एक क्रांतिकारी परिवर्तन के रूप में हुआ है।

1960 से बाद में अन्य क्षेत्रीय थियेटरों को हिंदी में अनुवाद किया गया। इसने हिंदी थिएटर के लिए एक नया अर्थ और शैली प्रदान की और इसने स्वयं की एक अनूठी पहचान विकसित करने में भी मदद की।

हिंदी थियेटर में एक महत्वपूर्ण शैली की शुरुआत 1970 के दशक में पृथ्वी थिएटर की स्थापना के साथ शुरू हुई। यह थिएटर एक नए युग के रुप में शुरू हुआ, जो नए लोगों को जनता के सामने अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का अवसर दे रहा है।

शशि कपूर, जो बॉलीवुड के सबसे बहुमुखी कलाकारों में से एक हैं, उनको पृथ्वी थिएटर की स्थापना के लिए श्रेय दिया जाता है। वर्तमान में इसमें भारत भर से आए हुए लोगों द्वारा कई आयोजन और क्रियाकलाप किए जा रहे हैं लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में हिंदी नाटक का प्रसार करना है।

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