पंडित गणपति भट्ट एक प्रसिद्ध हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायक हैं। वह कर्नाटक में एक छोटे से गाँव हसनगी में रहते हैं और वहीं पर अपना गायिकी का काम करते हैं। वह अपनी कम उम्र से ही हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को लेकर बहुत उत्साहित रहते थे। उन्होंने अपनी इस कला को दो महान गुरुओं, स्वर्गीय बसवराज राजगुरु और पंडित सी.आर.व्यास से सीखा था। वह सवाई गंधर्व, बसवराज राजगुरु और पंचकशी गवई जैसे प्रसिद्ध परिवारिकों की संगीत परंपरा का एक हिस्सा रहे हैं।

आम तौर पर देखा जाए तो, जो आगामी संगीतकार होते हैं वह अधिकतर गाँवों से बड़े शहरों की और चले जाते हैं, लेकिन पंडित गणपति भट्ट संगीत के लिए अपने गाँव से कहीं दूर नहीं गए बल्कि वह संगीत को ही अपने गाँव में लेकर आए। हालांकि, जो लोग कृषि कार्यों में शामिल रहते थे, उनके घरों में संगीत को ला पाना एक असंभव प्रयास था, लेकिन पंडित गणपति भट्ट ने ऐसा किया। उन्होंने हसनगी जैसे पूरे गाँव को संगीत की शिक्षा प्राप्त करवाई।

पंडित गणपति भट्ट ने पास के ही मंचीकेरी गाँव के माध्यमिक विद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की और कर्नाटक के धारवाड़ कॉलेज से संगीत में उच्च शिक्षा प्राप्त की। उस्ताद करीम खान के पास सितार को सीखते हुए, उन्हें यह एहसास हुआ कि अब उनकी आवाज भी मुखर संगीत के लिए उपयुक्त है। शास्त्रीय संगीत वादक पंडित बसवराज राजगुरू के तहत, उन्हें मुखर संगीत का प्रशिक्षण दिया गया था। पंडित गणपति भट्ट अपने गुरु राजगुरू के साथ ही रहते थे और पूरे देश में हर जगह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया करते थे।

गणपति भट्ट ने पूरे भारत में कई संगीत समारोहों में अपनी बेहतर प्रतिभा का  प्रदर्शन करके एक सामंजस्य स्थापित किया है। लेकिन 1985 पूणे में प्रसिद्ध सवाई गंधर्व समारोह में उनका प्रदर्शन बहुत ही उल्लेखनीय था। पंडित गणपति भट्ट ने अपने 75 मिनट के प्रदर्शन में मधुकाऊंस और बागेश्वरी को गाकर दर्शकों के दिलों को जीत लिया। इस संगीत कार्यक्रम ने उन्हें खुद को एक मशहूर शास्त्रीय गायक के रूप में साबित करने का मौका दिया।

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