जी. एन. रामचंद्रन का जन्म 8 अक्टूबर सन् 1922 को केरल राज्य के कोचीन शहर के नजदीक एर्नाकुलम में हुआ था। जी. आर नारायण अय्यर और लक्ष्मी अमाल के सबसे बड़े पुत्र जी. एन. रामचंद्रन बचपन से ही गणित के एक अच्छे ज्ञाता थे। उनके पिता गणित के एक प्रोफेसर और महाराजा कॉलेज के प्रिंसिपल थे जिस कारण रामचंद्रन ने अपना प्रारंभिक प्रशिक्षण अपने घर पर ही प्राप्त किया था।

ऐसा कहा जाता है कि अपने स्कूल के दिनों में, जी. एन. रामचंद्रन को गणित की परीक्षा में पूरे सौ अंक मिला करते थे। इंटरमीडिएट परीक्षा पास करने के बाद, उन्होंने पूरे मद्रास राज्य में पहला स्थान प्राप्त किया था। इसके बाद जी. एन. रामचंद्रन ने भौतिकी में ऑनर्स डिग्री के लिए त्रिची के सेंट जोसेफ कॉलेज में प्रवेश लिया। अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद, रामचंद्रन ने प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर सी.वी रमन के अनुदेशन में अपनी एम.एससी और डॉक्टर की डिग्री पूरी करने के लिए भारतीय विज्ञान संस्थान के भौतिकी विभाग में शामिल हो गये। उसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज में कैवेन्डिश प्रयोगशाला में अपने दो साल बिताए, जहाँ से उन्हें ‘एक्स-रे फैलाने वाली स्कैटरिंग और लोचदार स्थिरांक के निर्धारण के क्षेत्र में इसके प्रयोग में अध्ययन करने के लिए पीएचडी की डिग्री प्राप्त हुई थी। वह भारतीय विज्ञान संस्थान में पुनः शामिल हो गये, परन्तु इस बार वह एक छात्र के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रोफेसर के रूप में थे। चूँकि उन्होंने क्रिस्टल भौतिकी तथ्य पर काम करने की निरंतरता को बनाये रखा था, अतः वह मद्रास विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग के एक विभागाध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर लिए गये थे।

इसके बाद, जी. एन. रामचंद्रन अपने पूर्व कार्य क्षेत्र को विकसित करने के लिए जैविक मैक्रोम्योल्यूल्स की संरचना के क्षेत्र में एक गहन शोध करने लगे। उन्होंने रामचंद्रन प्लॉट नाम से एक सिद्धांत विकसित किया था, जिसे पहली बार वर्ष 1963 में ‘जर्नल ऑफ आण्विक जीवविज्ञान’ नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। यह कार्य प्रोटीन संरचना के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सफलता बना।

रामचंद्रन ने आण्विक बायोफिजिक्स के सामान्य क्षेत्र के तहत भौतिक-रासायनिक प्रयोगों के साथ-साथ एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी, पेप्टाइड संश्लेषण, एनएमआर और अन्य ऑप्टिकल अध्ययनों जैसे विभिन्न क्षेत्रों को एक साथ प्रदर्शित किया था।

वर्ष 1970 रामचंद्रन ने भारतीय विज्ञान संस्थान में एक आण्विक बायोफिजिक्स इकाई की स्थापना की, जिसे बाद में बायोफिजिक्स और क्रिस्टलोग्राफी में उन्नत अध्ययन केंद्र के रूप में जाना जाने लगा।

भौतिकी में अपने शोध क्षेत्र में इस अग्रणी सफलता को प्राप्त करने के कारण, जी. एन. रामचंद्रन को शांति स्वरुप भटनागर पुरस्कार (भारत में) तथा फैलोशिप ऑफ रॉयल सोसाइटी (लंदन में) जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1999 में क्रिस्टलोग्राफी के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें क्रिस्टलोग्राफी के अंतर्राष्ट्रीय संघ द्वारा ईवाल्ड पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

78 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से वर्ष 2001 को जी.एन. रामचंद्रन का निधन हो गया।

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