गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे पूर्वगामी नेताओं में से एक थे जिन्होंने भारत के लिए स्व-शासन के विचार का प्रचार-प्रसार किया था। गोपाल कृष्ण गोखले उन भारतीयों की आवाज बने, जो अंग्रेजों के शासन से आजादी पाना चाहते थे। गोपाल कृष्ण गोखले गांधी जी के राजनीतिक गुरु के रूप में अधिक जाने जाते हैं, जैसा कि गांधीजी ने स्वयं भी कहा था।

गोपाल कृष्ण गोखले 9 मई 1866 को एक किसान के घर में पैदा हुए थे, इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एक स्थानीय स्कूल से प्राप्त की। बाद में,  गोखले ने (18 साल की उम्र में)  मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। गोखले की कॉलेज की शिक्षा ने उन्हें सरकार और लोकतंत्र की संसदीय प्रणाली के महत्व को समझने योग्य बनाया। अंग्रेजी में उनका स्पष्ट ज्ञान अंग्रेजों के साथ आसानी से बातें करने में मदद करता था। एक स्कूल शिक्षक के रूप में कुछ सालों तक कार्य करने के बाद, गोखले ने पुणे में अपने डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के सहयोगियों के साथ मिलकर फर्ग्यूसन कॉलेज की स्थापना की।

उसी समय गोखले की मुलाकात एक विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता महादेव गोविंद रानाडे से हुई और जिससे वह बहुत अधिक प्रभावित हुए। सामाजिक सुधार के पथ पर रानाडे उनके सलाहकार बने गोखले ने बाल गंगाधर तिलक की साप्ताहिक पत्रिका के लिए लेख भी लिखे लेकिन स्व-शासन के उनके इस विचार के मनमुटाव ने कांग्रेस के दो गुटों में बाँट दिया। मार्ले-मिंटो सुधारों को लाने में गोखले की भूमिका ने भारतीयों को सरकार में उच्चतम पदों पर बैठने की अनुमति दे दी। गोखले ने भारतीयों को अपने देश के लिए काम करने के उद्देश्य से शिक्षित करने के लिए 1905 में ‘सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी’ की स्थापना की।

स्वास्थ्य खराब होने के कारण 19 फरवरी 1915 को गोपाल कृष्ण गोखले का निधन हो गया। गोखले ने अपने दृष्टिकोण और अथक प्रयासों से निस्संदेह भारत के सभी क्षेत्रों के विकास में काफी योगदान दिया।

 

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