भारत के राज्य
भारत

दीवाली का इतिहास

दीवाली का मूल और ऐतिहासिक महत्व



भारत में हर त्यौहार का एक गहरा इतिहास है और दीवाली का त्यौहार भी इससे अलग नहीं है। दीवाली मनाए जाने की जडं़े प्राचीन भारत तक से जुड़ी हैं, जब फसलों की कटाई का एक महत्वपूर्ण समय होता था। धर्म के विकास के साथ इसमें कई पौराणिक कहानियां और स्पष्टीकरण जुड़ते गए जिन्होंने इस त्यौहार को धार्मिक मान्यता दी। देश के अलग अलग भागों में दीवाली से जुड़ी विभिन्न पौराणिक कथाएं हंै। विभिन्न धर्म के लोगों के दीवाली मनाने के अलग अलग कारण हंै।

दीवाली की पौराणिक कथाएं



दीवाली के त्यौहार से जुड़ी विभिन्न हिंदू पौराणिक कथाएं इस प्रकार हैंः

राजा राम का अयोध्या लौटना

दीवाली के साथ जुड़ी सबसे लोकप्रिय कथा राजा राम की है। उनकी पत्नी सीता का अपहरण करने वाले असुर राजा रावण को मारकर, और चैदह साल का वनवास बिताने के बाद दीवाली के दिन ही राम अयोध्या लौटे थे। अयोध्या में राम के घर लौटने की खुशी में लोगों ने अपने घरों को दीपों से रौशन किया और एक दूसरे को मिठाइयां बांटीं। यह त्यौहार मनाने वाले आज भी इस परंपरा को निभाते हैं।

नर्कासुर की कथा

इस पौराणिक कथा के अनुसार, दीवाली के दिन ही भगवान कृष्ण ने नर्कासुर का वध किया था। माना जाता है कि नर्कासुर को भगवान विष्णु से लंबे जीवन का वरदान प्राप्त था। उसने तीनों लोकों में उत्पात मचाना शुरु कर दिया और वह महिलाओं पर हमले करने लगा। कहा जाता है कि नर्कासुर ने भगवान कृष्ण से प्रार्थना की थी कि लोगों द्वारा उसकी मृत्यु को याद रखा जाना चाहिये इसलिए इस दिन को नर्कचतुर्दशी भी कहते हैं।

देवी लक्ष्मी का अवतार

इस पौराणिक कथा के अनुसार, देवी लक्ष्मी देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन और उसमें से निकले अमृत पर अधिकार को लेकर हुई लड़ाई के समय प्रकट र्हुइं थीं। देवी लक्ष्मी ने अमृत देवताओं के अधिकार में दिया था।

पांडवों की वापसी

माना जाता है कि इस दिन पांडव अपने बारह सालों के वनवास के बाद अपनी राजधानी हस्तिनापुर लौटे थे। लोगों ने इस अवसर पर मिट्टी के दीये जलाए थे।

बाली की पौराणिक कथा

मान्यता है कि दीवाली के दिन ही भगवान विष्णु ने अपने वामन अवतार में अवतरित होकर राजा बाली को पाताल भेजा था। राजा बाली के बढ़ते प्रभाव और अहंकार के बाद भगवान विष्णु ने बाली से अपने तीन कदमों के नाप जितनी धरती मांगी। दो ही कदमों में पूरा स्वर्ग और धरती नापने के बाद बाली के कहने पर उन्होंने अपना तीसरा कदम उसके सर पर रखा और उसे पाताल भेज दिया।

राजा विक्रमादित्य का राजतिलक

माना जाता है कि दिवाली के दिन ही राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था। यह भी लोगों के दीवाली मनाने का एक कारण है।

फसलों की कटाई का त्यौहार दीवाली

दीवाली शुरुआत में फसलों की कटाई के उत्सव के रुप में मनाई जाती थी। यह वह समय है जब भारत में किसान फसल काटकर संपत्ति और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और उन्हें नई फसल में से अंश समर्पित करते हैं।

सिख धर्म में दीवाली का इतिहास



सिख धर्म में इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रुप में जाना जाता है, इस दिन सन् 1619 में सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोविंद सिंह 52 अन्य हिंदू राजकुमारों के साथ ग्वालियर के किले से रिहा हुए थे। सिखों की मांग पर जब शहंशाह जहांगीर, गुरु हरगोविंद सिंह को छोड़ने के लिए राजी हुए तो गुरु ने एलान किया कि वह अन्य बंदी राजकुमारों के बिना नहीं जाएंगे।

यह जानते हुए कि सारे राजकुमार गुरु को एक साथ एक ही समय पर नहीं पकड़ सकते, चालाक जहांगीर ने एलान किया कि सिर्फ उन्हीं राजकुमारों को गुरु के साथ छोड़ा जाएगा जिन्होंने गुरु को पकड़ रखा होगा। गुरु ने तब एक ऐसा वस्त्र बनवाया जिसमें 52 डोरियां थी। हर युवराज ने एक डोरी पकड़ी और इस तरह गुरु ने सफलता से सभी को मुक्त करवाया। इस दिन स्वर्ण मंदिर को रोशनी से सजाया जाता है। सन् 1577 में दीवाली के दिन ही स्वर्ण मंदिर की आधारशिला रखी गई थी।

जैन धर्म में दीवाली का महत्व



जैन धर्म में दीवाली का महत्व इसलिए है क्योंकि इस दिन ही अंतिम जैन तीर्थांकर भगवान महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था। कहा जाता है कि भगवान महावीर ने उन देवताओं की उपस्थिति में निर्वाण पाया था जिन्होंने उनके जीवन से अंधकार दूर किया था। साथ ही भगवान महावीर के मुख्य अनुयायी गणधरा गौतम स्वामी ने भी इसी दिन ’केवलज्ञान’ प्राप्त किया था।

बौद्ध धर्म में दीवाली का महत्व



बौद्ध धर्म के लोग इस दिन राजा अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने के उत्सव में दीवाली मनाते हैं। इस त्यौहार को बौद्ध धर्म में अशोक विजयादशमी भी कहते हैं और वह अपने मठों को सजाकर और प्रार्थना करके यह उत्सव मनाते हैं।

अंतिम संशोधन : सितम्बर 19, 2014