गोवर्धन पूजा के बारे में
दीवाली के उत्सव के चैथे दिन मनाये जाने वाली गोवर्धन पूजा दीवाली के त्यौहार के खास दिनों में से एक है। देश के कुछ भागों में इसे ’पड़वा’ या ’वर्षप्रतिपदा’ भी कहते हैं। यह दिन खासतौर पर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार में मनाया जाता है।
गोवर्धन पूजा का इतिहास
हिंदू महाकाव्य और पुराण ’विष्णु पुराण’ के अनुसार गोकुल और मथुरा के लोग बारिश की कामना के साथ भगवान इन्द्र की पूजा करते थे। उनका मानना था कि उनके कल्याण के लिए वो ही उन्हें बारिश का आशीर्वाद देते थे।
भगवान कृष्ण ने उन्हें समझाया कि मथुरा के पास ब्रज में स्थित एक छोटी पहाड़ी यानी गोवर्धन पर्वत के कारण बारिश होती है, ना कि भगवान इन्द्र की वजह से, इसलिए इस पर्वत की पूजा होनी चाहिए, ना कि इन्द्र देव की। भगवान कृष्ण के कहने पर लोगों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करना शुरु कर दी।
अपनी पूजा ना किये जाने से इन्द्र देव बहुत नाराज़ हुए और परिणाम के तौर पर गोकुल के लोगों को भारी बारिश का सामना करना पड़ा। भगवान कृष्ण इस बारिश से लोगों की रक्षा करने आए और उन्होंने गोवर्धन पर्वत की पूजा अर्चना करने के बाद उस पर्वत को एक छतरी की तरह अपने दाहिने हाथ की छोटी उंगली पर उठा लिया और उसके नीचे लोगों को आश्रय दिया। इस घटना के बाद से भगवान कृष्ण को गिरधारी या गोवर्धनधारी भी कहा जाने लगा।
गोवर्धन पूजा उत्सव
अन्नकूट
गोवर्धन को ’अन्नकूट’ भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है ’भोजन का पहाड़’। इस दिन भगवान कृष्ण को छप्पन या फिर एक सौ आठ प्रकार के व्यंजनों का चढ़ावा दिया जाता है। इस चढ़ावे को ’भोग’ कहा जाता है।
खासकर मथुरा और नाथद्वारा में मंदिरों में इस दिन देवताओं को दूध से स्नान कराया जाता है और नए चमकदार वस्त्रों और हीरों, माणिक और मोती जैसे रत्नों से सजाया जाता है। इसके बाद उनकी पूजा अर्चना करके उन्हें भोग चढ़ाया जाता है, जो कि उनके सामने पर्वत के रुप में रखा जाता है।
गुड़ी पड़वा
इस दिन का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। रिवाज़ और परंपरा के तौर पर इस दिन पत्नियाँ अपने पति के माथे पर तिलक लगाकर और उन्हें माला पहनाकर उनकी लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। इस दिन पति भी अपनी पत्नी को उनके प्रेम, स्नेह और परवाह के लिए उपहार स्वरुप अपना प्रेम प्रकट करते हैं। इस दिन नवविवाहित बेटी को उसके पति के साथ दावत पर बुलाने और उपहार और मिठाई देने की परंपरा भी है।
पड़वा
अमावस का दूसरा दिन जो कि दीवाली के उत्सव का चैथा दिन होता है, यह प्रतीक है जिस दिन राजा बाली ’पाताल लोक’ से बाहर आए थे। इसी दिन से उन्होंने ’भू लोक’ पर राज करना शुरु किया था, जो उन्हें भगवान विष्णु से वरदान के रुप में मिला था। इसलिए यह दिन ’बाली पद्यामी’ के नाम से भी प्रसिद्ध है।
गोवर्धन पूजा कब है ?
साल | तारीख |
---|---|
2011 | 27 अक्टूबर , गुरुवार |
2012 | 14 नवम्बर , बुधवार |
2013 | 4 नवम्बर , सोमवार |
2014 | 24 अक्टूबर , शुक्रवार |
2015 | 12 नवम्बर , गुरुवार |
2016 | 31 अक्टूबर , सोमवार |
2017 | 20 अक्टूबर , शुक्रवार |
2018 | 8 नवम्बर , गुरुवार |
2019 | 28 अक्टूबर , सोमवार |
2020 | 15 नवम्बर , रविवार |
अंतिम संशोधन : सितम्बर 18, 2014