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दीपावली 2016

दीवाली के बारे में



सबसे पुराने और बड़े पैमाने पर मनाए जाने वाले त्यौहार दीवाली का हिंदू पंचांग में विशेष स्थान है। दीवाली शब्द का मतलब है ’रोशनी का त्यौहार’, यह शब्द संस्कृत के शब्द ’दीपावली’ से बना है, जिसका अर्थ होता है दीपों की पंक्ति या कह सकते हंै दीपों की श्रृंखला। यदि इस त्यौहार पर रात में किसी क्षेत्र का हवाई चित्र लिया जाए तो यह दृश्य बिलकुल चमक दमक से जगमगाती धरती का होगा।

दीवाली का त्यौहार विभिन्न क्षेत्रों के लोगों द्वारा मनाया जाता है, त्यौहार मनाने के रीति रिवाज़ और उत्सव का तरीका भले ही हर क्षेत्र मंे अलग हो पर लेकिन सब जगह उत्साह एक समान ही रहता है।

दीवाली 2016 की तारीख


दीवाली भले ही पांच दिवसीय उत्सव हो पर मुख्य त्यौहार दशहरे के 18 दिन बाद ही आता है। यह त्यौहार साल के आखरी महीनों में अक्टूबर या नवंबर के महीने में आता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक साल 2016 में कार्तिक के महीने में अमावस अक्टूबर 30 को होगी और इसी दिन दीवाली का त्यौहार मनाया जाएगा।

दीवाली के पांच दिन


जो कारण दीवाली को खास और लोकप्रिय बनाता है वो यह है कि इस त्यौहार के रीति रिवाज़ सिर्फ एक ही दिन में नहीं सिमट जाते या खत्म हो जाते। आमतौर पर लोग इस त्यौहार की तैयारी अपने घर और दफ्तर की मरम्मत के साथ हफ्तों पहले से ही शुरु कर देते हैं। इमारतों की सफाई और रंगाई, घर की सजावट के लिए सामान की खरीददारी, अपनों के लिए तोहफे लेना और नए कपड़े खरीदना यह सब इस त्यौहार के लिए जरुरी है। घरों और दफ्तरों को फूलों, झालरों और कंडिल आदि से सजाया जाता है। फूलों और सूखे रंगों की रंगोली कई घरों के दरवाज़ों पर सजाई जाती है। जो पांच दिन इस त्यौहार को पूरा बनाते हैं वो इस प्रकार हैंः

धनतेरस

पांच दिनों का उत्सव धनतेरस के साथ शुरु होता है। इमारतें रोशनियों से सजाई जाती हैं और लोग धनतेरस के रिवाज़ के तौर पर सोने, चांदी और बर्तनों की खरीददारी करते हैं। इस दिन देवी लक्ष्मी जो कि धन और समृद्धि की देवी है, के जन्मदिन के उत्सव के साथ-साथ स्वास्थ्य और आरोग्य के भगवान धनवंतरी का भी जन्मदिन मनाया जाता है।

नर्क चतुर्दशी

छोटी दीवाली या जिसे नर्क चतुर्दशी भी कहते हैं, इस उत्सव के दूसरे दिन मनाई जाती है। यह समय होता है घरों की अच्छी तरह सफाई, सजावट करने और रंगोली बनाने और मेहंदी लगाने का। लोग इसी दिन से एक-दूसरे से मिलना जुलना भी शुरु कर देते हैं। इस दिन आपको लोग तोहफे खरीदते, रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलते और एक दूसरे को तोहफे देते दिख जाते हैं।

दीवाली

तीसरा दिन पांचों दिनों में से सबसे खास है। दीवाली के रीति रिवाज़ ज्यादातर शाम को पूरे किये जाते हैं, जिसमें विभिन्न समुदाय अपने ईष्ट के साथ-साथ देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश, देवी सरस्वती और भगवान कुबेर की भी पूजा की करते हैं। माना जाता है कि दीवाली की रात धन की देवी लक्ष्मी धरती का भ्रमण करती हैं। उन्हें अपने घर बुलाने और उनका आशीष पाने के लिए लोग अपने घरों के दरवाजों, खिड़कियों और आंगन में दीपक जलाते हैं। इसके बाद बच्चे और बड़े सजधज कर घरों से निकल कर पटाखे चलाते हैं।

इस दिन विक्रम संवत् के अनुसार नया साल भी शुरु होता है और व्यापारी और दुकानदार देवी लक्ष्मी और भगवान कुबेर के आशीर्वाद से नया वित्तीय वर्ष शुरु करते हैं।

पड़वा

दीवाली के अगले दिन पड़वा मनाई जाती है, जो कि विवाह संस्था का उत्सव मनाने का दिन है। इस दिन पति और पत्नी के बीच तोहफे का लेन देन होता है। कुछ परिवारों में पड़वा के उत्सव का एक रिवाज़ यह भी होता है कि भाई अपनी शादीशुदा बहन को ससुराल से मायके लेकर आता है। कई क्षेत्रों में इस दिन गोवर्धन पूजा कर के भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा प्रकट की जाती है।

भाई दूज या भैया दूज

इस पांच दिनी त्यौहार का समापन भाई और बहन के बंधन का उत्सव मनाकर होता है। ज्यादातर भाई दूज या भैया दूज कहे जाने वाले इस त्यौहार को कुछ क्षेत्रों में ’टीका’ भी कहते हैं। कुछ हद तक यह रक्षा बंधन जैसा है, लेकिन इसके रीति रिवाज अलग होते हैं। यह एक ऐसा मौका होता है जब सगे और चचेरे भाई-बहन एक दूसरे के साथ बिताने के लिए समय निकालते हैं। कई समुदायों में इसे दावत के साथ मनाते हैं, जहां भाई बहन एक दूसरे के प्रति प्यार और विश्वास का इज़हार करते हैं और बहनें भाई के माथे पर कुमकुम और चावल लगाती हैं। यह उनका अपने भाई के सुख के लिए कामना का प्रतीक है और बदले में भाई अपनी बहनों को तोहफे के तौर पर उनका यह प्यार लौटाते हैं।

दीवाली की मान्यताएं


ज्यादातर हिंदू त्यौहारों की तरह दीवाली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। अपने सर्वव्यापी विश्वास के चलते दीवाली, जैन और सिख समुदाय के लोग भी मनाते हैं। विश्वास करने वाले मानते हैं कि यह दिन प्रेम का निराशा पर, रोशनी का अंधेरे पर और ज्ञान का अज्ञान पर विजय का प्रतीक है। हिंदुत्व के तीन मुख्य दर्शनों यानी वेदांत, योग और सांख्य के अनुसार आत्मा का अस्तित्व शरीर से परे है। हिंदुत्व का गूढ़ पहलू दिखाते हुए दीवाली के त्यौहार का महत्व यह है कि यह हमें हमारी वास्तविक प्रकृति का ज्ञान कराता है और आध्यात्मिक रुप से जागरुक करता है।

दीवाली का इतिहास


दीवाली एक प्राचीन त्यौहार है, इसके कई संदर्भ हमें पुराणों और कई धार्मिक ग्रंथों में मिलते हैं। स्कंद पुराण के मुताबिक दीपक प्रतीक हैं उस सूर्य का जो कि सभी जीवित व्यक्तियों के लिए उर्जा और प्रकाश का महत्वपूर्ण केन्द्र है, और उस सूर्य में कार्तिक के महीने में मौसमी बदलाव आते हैं।

दीवाली का महत्व


भारत देश में हमेशा से सामाजिक और सामुदायिक बातचीत का बहुत महत्व रहा है पर शहरीकरण, विकास और व्यक्तिगत सफलता की होड़ में लोगों के बीच मेलजोल बहुत ही कम हो गया है। ऐसी स्थिति में दीवाली का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है कि यह शहरों और गांवों मंे लोगों को जोड़ने का काम करती है।

खुशी के भाव के साथ, आत्म-ज्ञान और उमंग की रोशनी सब जगह समान है, लेकिन उत्सव की क्षेत्रीय प्रथाओं का तरीका, संसाधनों की पहुंच और उस क्षेत्र के लोगों के अपने विश्वास पर निर्भर करता है।

दीवाली क्यों मनाते हैं?


हिंदू धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म में दीवाली मनाने के कारण अलग-अलग हैं।

हिंदू धर्मः

महाकाव्य रामायण के अनुसार दीवाली 14 सालों के वनवास के बाद भगवान राम, उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण की वापसी के उत्सव के रुप में मनाते हैं।

भारत के उत्तर के कुछ क्षेत्रों में दीवाली, देवी लक्ष्मी की पूजा और पूर्वी क्षेत्रों में काली की पूजा करके मनाते हैं।

जैन धर्मः

जैन धर्म में दीवाली का विशेष महत्व है। यह भगवान महावीर के निर्वाण पाने की याद में मनाया जाता है।

सिख धर्मः

सिख धर्म में दीवाली गुरु हर गोबिंद जी के जहांगीर की कैद से छूटने और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर लौटने की खुशी में मनाई जाती है। बंदी छोड़ दिवस के तौर पर सिख इस दिन को बहुत ही श्रृद्धा के साथ मनाते हैं।

भारत में दीवाली कैसे मनाई जाती है?


दीवाली का जश्न दीये जलाने से लेकर, घरों को सजाने, पूजा करने, मिठाई बनाने और खाने और अन्य क्षेत्रीय विशेषताओं के साथ मनाया जाता है। बच्चों को पौराणिक कथाएं सुनाना, तोहफों का लेनदेन और पटाखे चलाना भी इसमें शामिल है।

पर्यावरण की दुर्दशा के प्रति चिंता और लोगों में बढ़ती जागरुकता ने इस त्यौहार को मनाने के तरीके को थोड़ा बदला है। कई जिम्मेदार परिवार अब प्रदूषण रहित दीवाली मनाना अपना रहे हैं, जहां उत्साह अच्छी सामाजिक प्रथाओं तक सीमित है। ना सिर्फ स्कूल और अन्य शिक्षण संस्थाएं बच्चों को पटाखे चलाने से रोकते हैं बल्कि मीडिया, सरकार और माता पिता भी पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण के नुकसान प्रति जागरुकता फैलाने में अहम भूमिका निभाते हैं।

अंतिम संशोधन : सितम्बर 17, 2015