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नर्क चतुर्दशी

छोटी दीवाली



भारत भर में नर्क चतुर्दशी का त्यौहार पांच दिवसीय दीवाली के उत्सव के दूसरे दिन मनाया जाता है। इस त्यौहार को उत्तर भारत में ’छोटी दीवाली’ और गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में ’काली चैदस’ भी कहते हैं। इसे कार्तिक माह ;अक्टूबर-नवंबरद्ध के चैदहवें दिन मनाया जाता है। इस साल नर्क चतुर्दशी 22 अक्टूबर को है।

नर्क चतुर्दशी का इतिहास



यह त्यौहार भगवान कृष्ण की दानव राजा नर्कासुर पर विजय का प्रतीक है। इस दिन हनुमान जयंती या भगवान हनुमान का जन्मदिन भी मनाया जाता है। इसके साथ साथ काली चैदस पर महाकाली या शक्ति की पूजा की जाती है जो कि बुराई से लड़ने की ताकत का प्रतीक है।

नर्कासुर पर भगवान कृष्ण की विजय



एक पौराणिक कथा के अनुसार, नर्क चतुर्दशी का त्यौहार भगवान कृष्ण की दानव राजा नर्कासुर पर विजय के लिए मनाया जाता है। माना जाता है कि नर्कासुर जो कि प्रगज्योतिषपुर का राजा था, ने इन्द्र देवता को हराकर उनके अंतःपुर से सोलह हजार बेटियों और संतों को बंदी बना लिया और देवताओं की माता अदिति की अद्भुत बालियां छीन ली।

नर्क चतुर्दर्शी से एक दिन पहले भगवान कृष्ण ने इस दानव को मार कर सभी बंदियों को छुड़ाया और अदिति की बालियां भी वापस लीं। इस कार्य को बुराई पर अच्छाई की विजय के रुप में देखा गया।

राजा बाली की पौराणिक कथा



एक अन्य कहानी जो लोकप्रिय परंपरा और इस त्यौहार के मनाए जाने से जुड़ी है उसका संबंध राजा बाली से है। वह पूरा अंतरिक्ष जीत कर धरती का सबसे शक्तिशाली राजा बन गया था। उसके अहंकार के कारण उसे विश्वास हो गया था कि उसकी संपत्ति को कोई हानि नहीं पहुंचा सकता। उससे भिक्षा मांगने वालों को वह अपमानित करके उदारता का दिखावा करता था। उसके अहंकार को नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु उसके राज्य में भिक्षुक बनकर पहुंचे।

राजा द्वारा तीन कदमों में कुछ भी मांग लेने को सुनकर विष्णु ने पहले कदम के साथ पूरा स्वर्ग, दूसरे कदम में पूरी धरती को मांग लिया। इस पर राजा का घमंड टूट गया। इसके बाद बाली ने तीसरा कदम अपने सर पर रखने को कहा और इससे उसे आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ। इस प्रकार नर्क चतुर्दशी वह त्यौहार है जो लालच को खत्म करने और आध्यात्मिक ज्ञान पाने का संदेश देता है।

नर्क चतुर्दशी का उत्सव



नर्क चतुर्दशी या छोटी दीवाली पूरे रीति रिवाज़ के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग आम दिनों से पहले उठकर, सुगंधित तेल की मालिश कर स्नान करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं।

विशेष व्यंजन बनाकर मित्रों और रिश्तेदारों के साथ पूरा दिन आनंद किया जाता है। इस दिन मिठाई भी बांटी जाती है। लड्डू, चकली, शक्करपारों और बादाम के हलवे जैसे व्यंजनों का भी आनंद लिया जाता है। महिलाएं अपने बाल धोकर आखों में काजल लगाती हंै, माना जाता है कि यह बुरी नज़र को धार्मिक रस्मों से दूर रखता है। हर परिवार अपनी परंपरा अनुसार देवी को नैवैद्य का भोग लगाता है।

इस देवी को ’कुल देवी’ कहते हैं, माना जाता है कि यह बुरी आत्माओं से बचाती है। कुछ लोग इस दिन अपने पूर्वजों को भी भोग लगाते हैं। लोग इस दिन दीवाली पर देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए घरों की सफाई कर घर सजाते हैं। कई घरों में रंगोली भी बनाई जाती है। शाम को लोग तेल के दीप और बिजली की लडि़या लगाते हैं और पटाखे फोड़ते हैं।

भारत के विभिन्न भागों में छोटी दीवाली अलग अलग तरीकों से मनाई जाती हैः

गोवा में नर्क चतुर्दशी पर दानव नर्कासुर के पुतले बनाए जाते हैं। इन पुतलों को सड़कांे और गलियों में घुमाया जाता है और फिर बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रुप में जला दिया जाता है।

दक्षिण भारत में लोग कुमकुम और तेल से उबटन तैयार करते हैं जिसे स्नान से पहले माथे पर लगाया जाता है। उबटन भगवान कृष्ण द्वारा अपनी जीत के बाद लगाए गए रक्त का प्रतीक है।

पश्चिम भारत में यह त्यौहार फसल कटाई के मौसम का भी प्रतीक है। इस दिन कुटे और अधपके चावल, जिसे पोहा या पोवा कहते हैं से व्यंजन बनाए जाते हैं। यह चावल नई फसल से लिया जाता है। बंगाल में यह दिन काली चौदस के रुप में और माँ काली के जन्मदिन के रुप में मनाया जाता है। माँ काली की मूर्तियां पांडालो में स्थापित कर काली पूजा की जाती है। यह पूजा तेल, चंदन और फूलों के साथ की जाती है। भगवान हनुमान को नारियल का प्रसाद चढ़ाया जाता है। कई जगह तिल, चावल, चीनी और घी से प्रसाद बनाया जाता है।

अंतिम संशोधन : सितम्बर 19, 2015