कर्नाटक संगीत दक्षिण भारत का प्राचीन शास्त्रीय संगीत है। इतिहास से पता चलता है कि कर्नाटक संगीत की उत्पत्ति 2500 साल पहले हुई थी। कर्नाटक संगीत दुनिया का सबसे पुराना और सबसे धनी संगीत है, जिसका वर्तमान रूप 15वीं-16वीं शताब्दी के ऐतिहासिक विकास और इसके बाद के आधार पर माना जाता है। 72 पैमानों के साथ इसका मूल रूप मोनोफोनिक (एक लय में गाया जाने वाला) है जो आठ सुरों की एक धनी लय है। कर्नाटक संगीत को विविध संगीत और लयबद्ध संरचना प्राप्त हुई है। कर्नाटक संगीत के दो प्रमुख तत्व ‘राग’ और ‘ताल’ हैं। इसका संगीत मूल ‘ईश्वरीय’ माना जाता है। विजयनगर साम्राज्य के समय में कर्नाटक संगीत शुरू हुआ, जहाँ व्यासराज, पुरंदर दास, कनकदास और अन्य के नेतृत्व में हरिदास आन्दोलन हुआ था। इस संगीत के मूल सिद्धांतों को पुरंदरा दास द्वारा तैयार किया गया था। कर्नाटक संगीत के पिता ने लगभग 4,75,000 रचनाओं का निर्माण किया है।

कर्नाटक संगीत के मुख्य पहलू (गायन के तत्व) श्रुति (पिच), राग (स्वर), स्वर (ध्वनि), ताल (बीट), कृति (गीत) और वर्णम (नोट्स) हैं। गायन की पाँच प्रमुख शैलियों में राग अलापना, निरावल, कल्पनश्वरम, थानम, रागम थनम पल्लवी है।

कर्नाटक संगीत (17वीं – 19वीं शताब्दी ईस्वी) के कुछ प्रमुख संगीतकार हैं:

  • पापनसा मुदलियार
  • पेडाला गुरुमूर्ति शास्त्री
  • मारीमुत्थु पिल्लई
  • त्यागराज
  • मुथुस्वामी दीक्षिता
  • वीना कुप्पेय्यार

19वीं – 20वीं सताब्दी ईस्वी में होने वाले संगीतकार:

  • मैसूर सदाशिव राव
  • अनय अइय्या (भाई-भाई)
  • कोटेस्वरा अय्यर
  • हरिकेसनल्लुर मुथैया भागवतार
  • मयूरम विश्वनाथ शास्त्री
  • दांदापनी देसीकर

कुछ आधुनिक कर्नाटक संगीत कलाकार एम.एल. वसंतकुमार, एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी, मुथैया भागवतार और मदुरई मनी अय्यर हैं। टी.एन. सेशगोपालन, के.जे. युसूदास, अरुणा साईराम, उन्नी कृष्णन, रामचंद्रन, ओ.एस. थ्यागराजन, ओ.एस. अरुन आदि प्रमुख आधुनिक गायक हैं।

महत्वपूर्ण कर्नाटक संगीत ग्रंथ हैं:

संगीता रतनकारा – सर्नगादेव

संगीता संप्रदाय प्रदर्शिनी – सुब्बाराम दीक्षितार

स्वारामेला कलनिधि – राममात्या

नाट्य शास्त्र – भरत मुनी

संगीता सुधा – गोविंदा दीक्षितार

हर साल दिसंबर में, चेन्नई में एक छह सप्ताह के लंबे संगीत समारोह का आयोजन किया जाता है।

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