इंगलिश थिएटर (अंग्रेजी रंगमंच) मुख्य रूप से कई यूरोपीय देशों में विकसित हुआ है। यह विभिन्न चरणों जैसे एन्सिएंट रोमन थिएटर, द मेडीलेवल थिएटर, द नियो-क्लासिकल थिएटर, द रिनायसांस थिएटर और कई अन्य थिएटरों के रूप में विकसित हुआ। हालांकि, भारत में इंग्लिश थिएटर 17 वीं सदीं में ब्रिटिशों के आगमन के साथ पहुँचे।

ब्रिटिशों ने भारत में तीन प्रेसिडेंसी टाउन स्थापित किए थे, जिनमें से सबसे पहले मद्रास और इसके बाद क्रमशः दूसरे और तीसरे चरण में बॉम्बे और कलकत्ता को स्थापित किया था। समय बीतने के साथ ही इन स्थानों पर भी इंग्लिश थिएटर प्रारंभ हो गए। इन शहरों में शहरी मध्यम वर्ग के दर्शक थे।

थिएटर टिकट की बिक्री के आधार पर नहीं बल्कि अमीर वर्ग के संरक्षण पर आधारित थे। इन थिएटरों ने यूरोपीय जीवन शैली और औपनिवेशकों के पहलुओं को दोहराया। स्वतंत्रता के साथ भारत में इंग्लिश थिएटर की प्रकृति बदल गई। के.एन. पन्नीकर, विजय तेंदुलकर, गिरीश कर्नाड, हबीबी तनवीर जैसे कई अन्य प्रतिष्ठित लोग भारतीय इंग्लिश थिएटर के क्षेत्र में आए।

उन्होंने इंग्लिश थियेटर में भारतीय संस्कृति, परंपरा और लोक अनुष्ठानों को उजागार करने की कोशिश की। उनके द्वारा किए गए कार्यों के गहन अध्ययन से यह बात साबित हो सकती है कि उन्हें भारतीय पौराणिक कथाओं और भारतीय लोककथाओं में लोगों को शिक्षित करने का काफी उत्साह था। उदाहरण के लिए, गिरीश कर्नाड द्वारा लिखा गया एक अंग्रेजी नाटक ‘फायर एण्ड रेन’ महाभारत के दृश्य प्रदर्शित करता है।

इसी तरह विजय तेदुलकर की रचना ‘वन्स अपॉन ए फ्लीटिंग बर्ड’ एक प्रेम कथा को प्रदर्शित करती है, जो कि महाराष्ट्र का एक लोकगीत है।

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