जामिनी रॉय का जन्म 1887 में पश्चिम बंगाल के बांकुरा में हुआ था। जामिनी रॉय 1903 में कोलकाता आए और गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला लिया। उनके गुरू का नाम अवनींद्रनाथ टैगोर था। रॉय ने कुछ खूबसूरत चित्रों और परिदृश्यों को चित्रित किया है जो बिना किसी विवाद और संदेह के उनके कलात्मक गुणों को दर्शाते है।

जामिनी रॉय के जीवन के शुरुआती दिन बहुत गरीबी के हालत में गुजरे और उस समय इन्होंने अपनी जीविका चलाने के लिए कई अजीब नौकरियाँ कीं। उन्होंने अपनी कालीघाट की चित्रकला को कालीघाट मंदिर के बाहर बेच दिया।

उनकी सादगी और सहजता उनके काम के माध्यम से दिखाई देती है। जब वह तीस वर्ष के थे, तो उन्होंने अपनी परंपरागत कला अभ्यास को बदल दिया और चित्रकारी के लिए कपड़ा, लकड़ी और चूने से लेपी गई मैट (चटाई) पर अपनी सतह बनाई और चित्र बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने मिट्टी और वनस्पति रंगों का उपयोग करना शुरू कर दिया। उनकी चित्रकारी में उदासीन गीतों की भावना पैदा होती है जो बंगाल के लोक चित्रकारों के शक्तिशाली हथियारों में से एक है।

आधुनिक भारतीय कला में जामिनी रॉय का सबसे बड़ा योगदान है। उन्होंने अपने गुरूओं (शिक्षकों) जैसे कि अवनींद्रनाथ टैगोर और राजा रवि वर्मा से साफ साँचा, लयबद्ध रूपरेखा और चमकदार रंगों को अपनाया। जामिनी रॉय की कुछ प्रसिद्ध चित्रकारियों में संथाल ड्रमर्स (ढोल बजाते हुए लोग), मेहनती लुहार, महिलाओं के शरीर की आकृतियाँ (फीगर) और राधा, गोपी पुजारिनी और बच्चों की आकृतियाँ शामिल हैं।

उनकी यह कला 1940 के दशक में बहुत लोकप्रिय हो गईं। जामिनी रॉय के ग्राहक मुख्य रूप से बंगाल और यूरोप के थे। 1946 में जामिनी रॉय की चित्रकारी की प्रदर्शनी लंदन में लगाई गई और 1953 में न्यूयॉर्क में लगाई गई। 1955 में इन्हे कला के क्षेत्र में पद्म भूषण मिला।

इस महान व्यक्तित्व का 85 वर्ष की आयु में 1972 में कलकत्ता में निधन हो गया।

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