1965 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ तब मार्शल अर्जन सिंह वायु सेना के प्रमुख थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1919 को पाकिस्तान के लायलपुर में हुआ था। उन्हें 1938 में आरएएफ क्रैनवेल में एम्पायर पायलट प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) कोर्स के लिए चुना गया था। बाद में, जब उन्हें कार्यभार सौंपा गया, तब उन्होंने नंबर 1 आईएएफ स्क्वाड्रन के सदस्य के रूप में उत्तर पश्चिमी सीमावर्ती प्रांत की सेवा की। 1944 में, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान स्क्वाड्रन लीडर के रूप में अर्जन सिंह ने अराकन आंदोलन में जापानियों के साथ युद्ध किया। अपनी अनुकरणीय वीरता, कौशल और कर्तव्य के प्रति जो उनका समर्पण था उसके लिए उनको डिस्टिंगुइश फ्लाइंग क्रॉस (डीएफसी) का सम्मान भी प्राप्त हुआ। 16 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद, उन्होंने आईएएफ की उड़ान का संचालन भी किया।

1949 में, एयर कमांडो के रूप में पदोन्नत होने के बाद, अर्जन सिंह ने परिचालन कमांड के वायु सेना अध्यक्ष कमांडिंग के रूप में पदभार संभाला, जिससे उन्हें पश्चिमी वायु कमांडर के रूप में जाना जाने लगा। 1 अगस्त 1964 को उन्होंने वायु सेना के प्रमुख के रूप में अपना पदभार संभाला। सितंबर 1965 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया, तो अर्जन सिंह ने भारतीय वायुसेना द्वारा अपने आक्रामक एवं प्रभावी तरीकों से पाकिस्तानी सेना के आक्रमण को पूरी तरह से विफल किया। उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था और उनके वायु सेना के प्रमुख पद मार्शल से पदोन्नत भी किया गया था। वह भारतीय वायु सेना के पहले एयर चीफ मार्शल (वायु सेना प्रमुख मार्शल) बनें। अगस्त 1969 में, वायु सेना से सेवानिवृत्ति होने पर, वह स्विटजरलैंड में भारत के राजपूत बनें।

 

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