5 जनवरी 1955 को कोलकाता में जन्मीं ममता बनर्जी, वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल की  मुख्यमंत्री हैं और इस पद को संभालने वाली प्रथम महिला हैं। ममता बनर्जी लोकप्रिय रूप से “दीदी” के नाम से जानी जाती हैं, ममता बनर्जी अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष हैं, जिसकी इन्होंने वर्ष 1997 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विभाजन के बाद स्थापना की थी।

ममता बनर्जी कोयला मंत्री, मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री, युवा मामले एवं खेल विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग और भारत सरकार के मंत्रालय में दो बार रेल मंत्री रह चुकी हैं। वर्ष 2011 में सुश्री ममता बनर्जी ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की अगुवाई वाली वाम मोर्चा सरकार को हराकर, राज्य में 34 वर्षों के शासन का अंत कर दिया था और पश्चिम बंगाल में अपनी पार्टी के लिए बड़े पैमाने पर जीत हासिल की थी।

व्यक्तिगत जीवन

ममता बनर्जी एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में पली-बढ़ी और जब वह छोटी थीं, तभी उनके पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी की मृत्यु हो गई थी। ममता बनर्जी की माँ गायत्री देवी एक स्कूल में शिक्षिका थीं। ममता बनर्जी पूरी जिंदगी अविवाहित रहना चाहती थीं। ममता बनर्जी ने जोगमाया देवी कॉलेज से इतिहास में एक सम्मानजनक स्नातक की डिग्री प्राप्त की और कोलकाता विश्वविद्यालय से इस्लामी इतिहास में मास्टर की डिग्री हासिल की तथा साथ ही श्री शिक्षायतन कॉलेज से शिक्षा की डिग्री और जोगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज कोलकाता से कानून की डिग्री प्राप्त की। ममता बनर्जी ने अपने राजनैतिक जीवन में एक सुगम जीवन शैली को बनाए रखा है और वह ज्यादातर साधारण पारंपरिक बंगाली सूती साड़ी में दिखाई देती हैं और एक सूती बैग उनके कंधे पर लटका रहता है तथा उनको और कोई सौंदर्य प्रसाधन या गहनों का शौक नहीं है।

राजनैतिक कैरियर

1970 के दशक में कॉलेज की एक युवा महिला के रूप में, ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की कांग्रेस पार्टी में शामिल हुईं थीं और उन्होंने पार्टी तथा अन्य स्थानीय राजनैतिक संगठनों के कई पदों पर कार्य किया। ममता बनर्जी ने वर्ष 1976 से वर्ष 1980 तक राज्य महिला कांग्रेस की महासचिव बनने के पथ पर तेजी से प्रगति की। वर्ष 1984 के आम चुनावों में, ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में भारत की सबसे कम उम्र वाली सांसद बनी और अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की महासचिव के पद पर भी कार्य किया।

वर्ष 1989 में सुश्री बनर्जी ने कांग्रेस विरोधी लहर के कारण अपनी सीट गँवा दी थी, लेकिन वर्ष 1991 के आम चुनाव में ममता बनर्जी ने फिर से वापसी की और केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री, युवा मामले एवं खेल विभाग तथा महिला एवं बाल विकास विभाग की केंद्रीय राज्य मंत्री बनीं। वर्ष 1996, वर्ष 1998, वर्ष 1999, वर्ष 2004 और वर्ष 2009 के आम चुनाव में ममता ने अपनी सीट बरकरार रखी। कांग्रेस पार्टी से अलग होकर ममता बनर्जी ने वर्ष 1997 में पश्चिम बंगाल में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। तृणमूल कांग्रेस तत्काल ही राज्य की प्राथमिक विपक्षी पार्टी बन गई। वर्ष 1999 में, ममता बनर्जी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार में शामिल हुईं और उन्हें रेलवे मंत्री का कार्यभार सौंपा गया।

वर्ष 2000 में, ममता बनर्जी ने अपने गृह राज्य पश्चिम बंगाल के कई वादों को पूरा करने के लिए पहला रेल बजट प्रस्तुत किया था, जिसमें एक नई द्वि-साप्ताहिक ट्रेन और पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने वाली चार एक्सप्रेस ट्रेनों की शुरुआत की गई थी। ममता बनर्जी ने पर्यटन के विकास पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया और दार्जिलिंग-हिमालयन अनुभाग में भारतीय रेलवे खानपान और पर्यटन निगम लिमिटेड से संबधित दो अतिरिक्त इंजनों को जारी किया। कुल मिलाकर, ममता बनर्जी ने उस वर्ष के दौरान, 19 नई ट्रेनों की शुरुआत की थी।

वर्ष 2001 में तहलका का पर्दाफाश होने के बाद, ममता बनर्जी ने एनडीए मंत्रिमंडल छोड़ दिया था और पश्चिम बंगाल में 2001 में होने वाले चुनावों में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गई थीं। जनवरी 2004 में, ममता बनर्जी एनडीए मंत्रिमंडल में फिर से वापस आ गईं थी और 20 मई 2004 के आम चुनाव तक कोयला और खान मंत्री का पदभार संभाला था। अक्टूबर 2005 में, ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार की औद्योगिक विकास नीति के नाम पर हो रही स्थानीय किसानों की भूमि अधिग्रहण और हिंसा के खिलाफ विरोध जताया। वर्ष 2005 में ममता बनर्जी को असफलताओं का सामना करना पड़ा था, क्योंकि उनकी पार्टी ने कोलकाता नगर निगम की सत्ता खो दी थी और वर्ष 2006 में तृणमूल कांग्रेस पार्टी पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में अपने कई सदस्यों के हारने के कारण हार गई थी।

वर्ष 2009 में संसदीय चुनावों से पूर्व, ममता बनर्जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के साथ गठबंधन किया था। इस गठबंधन के द्वारा ममता ने 26 सीटों पर जीत हासिल की थी और वह मंत्रिमंडल में रेल मंत्री के रूप में शामिल हुईं और ये उनका दूसरा कार्यकाल था। वर्ष 2010 में पश्चिम बंगाल की नगरपालिका के चुनाव में, तृणमूल कांग्रेस ने कोलकाता नगर निगम से 62 सीटों के अंतर से जीत हासिल की। 20 मई 2011 को, ममता बनर्जी ने पूर्ण बहुमत से जीत हासिल की और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 34 साल के शासन का अंत कर दिया।

मुख्यमंत्री के रूप में उनके शुरुआती फैसले में से एक, भूमि अधिग्रहण विवाद में पकड़े गए किसानों को 400 एकड़ जमीन वापस करने का फैसला था। लंबे समय से चल रहे “गोरखालैंड मुद्दा” को सुलझाने का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है। ममता बनर्जी ने शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों तथा कानून में सुधार करने का प्रस्ताव रखा और पश्चिम बंगाल में प्रवर्तन की स्थिति और लोगों को राज्य के इतिहास और संस्कृति के बारे में जागरूक करने में काफी उत्सुकता दिखाई। 16 फरवरी 2012 को, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने पूरे साल एक भी पोलियो का मामला न दर्ज होने के लिए ममता बनर्जी और उनकी सरकार की प्रशंसा करते हुए एक पत्र भेजा था। ममता बनर्जी ने एपीजे अब्दुल कलाम के लिए जनता से समर्थन प्राप्त करने के लिए एक फेसबुक पेज लॉन्च किया था, जो उस समय  होने वाले आगामी राष्ट्रपति चुनाव में उनकी पार्टी की पसंद थे।

राज्य विधान सभा चुनाव 2016 में दूसरी बार ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में निर्वाचित हुईं। ममता बनर्जी की पार्टी ने कुल 293 सीटों में से 211 सीटों पर जीत हासिल की थी।

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