मीराबाई (1498-1547) सोलहवीं शताब्दी की एक अद्भुत कवयित्री, गायिका, कृष्ण भक्त और एक संत थीं। मीराबाई की रचनाएँ भारत भर में लोकप्रिय हैं। मीराबाई श्री गुरु रविदास की शिष्या थीं और 200 से 1300 की अवधि के बीच कई भक्ति गीतों , जिन्हें भजन कहा जाता था, की रचना की थी। मीराबाई के भजनों में, भक्ति परंपरा साफ झलकती है जिसमें उन्होंने पूरी भक्ति भावना के साथ भगवान कृष्ण की प्रशंसा की है।

मीराबाई का जन्म राजस्थान के नागौर जिले के मेड़ता शहर में राजपूतों के एक कुलीन परिवार में हुआ था। जब मीराबाई छह वर्ष की थी तो उनकी माँ ने उन्हें भगवान कृष्ण की एक मूर्ति दी, जिसके साथ वह हमेशा खेलती, गाती और बातें किया करती थीं। 1516 में, मीराबाई की शादी मेवाड़ के राजपूत राज्य के राजकुमार, भोजराज के साथ हो गई थी। भगवान कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति उनके पति और परिवार को स्वीकार्य नहीं थी। मीराबाई कृष्ण के प्रेम में इतनी मग्न रहती थीं कि वह अक्सर अपनी जिम्मेदारियों पर ध्यान नहीं दे पाती थीं। यहाँ तक कि मीराबाई ने अपने ससुराल में कुल देवी “देवी दुर्गा”  की पूजा करने से भी इंकार कर दिया था। मीराबाई ने सार्वजनिक मंदिरों में जाकर नृत्य किया तथा सभी जाति वर्ग के साथ अपने भगवान की प्रशंसा में गीत भी गाए।

30 वर्ष की अवस्था में, मीराबाई ने मथुरा, वृंदावन और अंत में द्वारका धाम की तीर्थ यात्रा की। मीराबाई अपना अधिकांश समय कृष्ण की प्रार्थना और पूजा करने में व्यतीत करती थी। आज भी पूरे भारत में उनके भावपूर्ण भक्ति गीत गाए जाते हैं। मीराबाई 16 वीं शताब्दी की भक्ति धारा की संत थीं जो भक्ति के द्वारा मोक्ष प्राप्त करना चाहती थीं। इस भक्ति आंदोलन (धारा) के अन्य संत कबीर, गुरु नानक, रामानंद और चैतन्य हैं।

मीराबाई ब्राह्मण के उपासकों की सगुण शाखा की अनुयायी थीं। मीराबाई का मानना था कि मृत्यु के बाद आत्मा (हमारी आत्मा) और परमात्मा (सर्वोच्च आत्मा या भगवान), एक में मिल जाएगें। मीराबाई ने कृष्ण को अपने पति, भगवान, प्रेमी और गुरु के रूप में माना। मीराबाई द्वारा रचित कविताओं की एक खास विशेषता यह है कि उन्होंने अपनी कविता में पूरी तरह से प्रेमसंबंधी कल्पना के साथ कृष्ण के प्रेम में स्वयं का आत्मसमर्पण किया है। मीराबाई की लेखन रचनाएं आध्यात्मिक और प्रेमसंबंधी दोनों थी। मीराबाई को यह दृढ़ विश्वास था कि अपने पिछले जन्म में वह वृंदावन की गोपियों में से एक थीं और श्री कृष्ण के प्रेम में व्याकुल थी। गोपियों की तरह उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य अपने भगवान के साथ आध्यात्मिक और शारीरिक मिलन था।

परंपरागत रूप से, मीराबाई की कविताओं को पाडा कहा जाता है, एक शब्द जिसका उपयोग 14वीं शताब्दी के प्रचारकों द्वारा छोटे आध्यात्मिक गीतों के लिए किया जाता था। मीराबाई की कविताओं में आमतौर पर सरल लय होती है और जो स्वयं के अन्दर एक राग उत्पन्न कर देती है। मीराबाई के गीतों के संग्रह को पदावली के रूप में जाना जाता है। मीराबाई ने अपनी कविताओं में हिंदी की उपभाषा, ब्रज भाषा का प्रयोग किया, जो वृंदावन के आसपास बोली जाती थी। ऐसा माना जाता है कि परम आनन्द की स्थिति में मीराबाई द्वारका में श्री कृष्ण के मंदिर से गायब हो गईं और अंत में खुद को भगवान श्री कृष्ण में समाहित कर लिया ।

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