एक प्रसिद्ध हिंदी कवियित्री और लेखिका महादेवी वर्मा का जन्म 1907 में फर्रुखाबाद के एक वकील के परिवार में हुआ था। महादेवी वर्मा चार भाई बहनों में सबसे बड़ी थीं। महादेवी वर्मा ने मध्य प्रदेश के जबलपुर से शिक्षा प्राप्त की और इनका विवाह डॉ. स्वरुप नारायण वर्मा से बहुत ही कम उम्र में हो गया था। विवाह के बाद भी महादेवी वर्मा अपने परिवार के साथ रहती रही और अपनी पढ़ाई जारी रखी। महादेवी वर्मा उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय गईं और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में मास्टर की डिग्री (स्नाकोत्तर) प्राप्त की। एक प्रसिद्ध कवियित्री होने के साथ-साथ महादेवी वर्मा एक अच्छी गद्य लेखिका और एक चित्रकार भी थीं। इन्होंने दीपशिखा और यात्रा जैसी कृतियों का संक्षेप में वर्णन किया है।

महादेवी वर्मा को हिंदी साहित्य में छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में ‘अतीत के चलचित्र’ (द मूविंग फ्रेम्स ऑफ द पास्ट) और ‘स्मृति की रेखाएं’ (द लाइन्स ऑफ मेमोरी) शामिल हैं। उनके प्रसिद्ध काव्य प्रकाशन नीहार, रश्मि, नीरजा और संध्या गीत आदि हैं। उनका लेखन कार्य “श्रृंखला की कड़ियाँ” में भारतीय महिलाओं की दुर्दशा को दर्शाया गया है। उनके इस श्रेय में एक और लेख ‘साहित्यकार की अस्था’ भी है।

महादेवी वर्मा बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थी और इस धर्म में उनकी अटूट अस्था थीं। महादेवी वर्मा जी ने अपनी कविता में एक स्थाई पीड़ा, अपने प्रिय से अलग होने की दर्द  को सर्वोच्च रूप से वर्णन किया है। इसके कारण कभी-कभी इनकी तुलना मीराबाई से भी की गई। इनकी कविता में रहस्यवाद का अंश है।

महादेवी वर्मा  की कविताओं में प्रेमी से अलग होने के विरह को संबोधित किया गया है। इनका कविता संग्रह दीपशिखा में 51 कविताएं शामिल हैं। इसके साथ ही इन्होंने हिंदी साहित्य के नए क्षेत्र- रहस्यवाद में भी कार्य किया है। हिंदी की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका “चाँद” को संपादित भी किया था।

महादेवी वर्मा एक समाज सुधारक थीं। इन्होंने भारत की महिलाओं का समर्थन बड़ी दृढ़ता से किया है। इन्होंने कई गद्य कृतियों में भारतीय महिलाओं की दुर्दशा को अपने विचारों में दर्शाया है। महादेवी वर्मा को प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रथम प्रधानाध्यापिका नियुक्त किया गया था, इन्होंने बालिकाओं को हिंदी माध्यम से शिक्षा प्रदान करना प्रारंभ किया।

इसके बाद, वह संस्थान की कुलपति बन गई। कविता का संग्रह, यामा के लिए महादेवी वर्मा को भारत का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। महादेवी वर्मा को इनके काव्य कार्यों के लिए ‘सेक्सेरिया पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। 1956 में, भारत सरकार ने इन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये साहित्य अकादमी की फेलो बनने वाली प्रथम महिला थीं। 11 सितंबर, 1987 को महादेवी वर्मा की मृत्यु हो गई।

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