नागार्जुन हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध लेखक थे। वह अपने समकालीन लेखकों व प्रशंसको के द्वारा प्यार से नागार्जुन, ‘जनकवी’ कवि कहे जाते थे। नागार्जुन की कविताओं में मुख्य रूप से राजनीति, आम लोगों की समस्याएं, किसानों और श्रमजीवी वर्ग की समस्याओं का उल्लेख किया गया है। नागार्जुन का जन्म सन् 1911 में बिहार के दरभंगा जिले के तरानी के एक छोटे से गांव में एक मध्यम वर्ग के ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

नागार्जुन के माता-पिता ने उनका नाम वैद्यनाथ मिश्रा रखा था, परन्तु हिन्दी साहित्यिक में नागार्जुन के नाम से अधिक मशहूर थे। जब वह तीन साल के थे तभी उनकी मां का देहान्त हो गया था और उनके पिता अपने बेटे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूर्ण रूप से नहीं निभा पाये। परिणामस्वरूप नागार्जुन को पूर्णतया अपने हितेशी रिश्तेदारों पर निर्भर रहना पड़ा। नागार्जुन संस्कृत, प्रकृत और पाली जैसे प्राचीन भारतीय भाषाओं के विद्वान थे। उन्होंने पहली बार इन भाषाओं का ज्ञान ग्रामीण केद्रों से और बाद में वाराणसी और कलकत्ता के शहरी केद्रों से अर्जित किया। नागार्जुन ने अपराजिता देवी से शादी की थी और उनके पांच बच्चे थे।

अपने उच्च अध्ययन के साथ नागार्जुन अपनी आजीविका (रोजी-रोटी) के लिए काम भी किया करते थे। वह अध्ययन और अल्पकालिक व्यवसाय करने के कारण कई सालों तक कलकत्ता में रहे और बाद में पूर्णकालिक शिक्षक के रूप में कार्य करने के लिए सहारनपुर (यू.पी.) चले गये। विशेषकर संस्कृत के ग्रंथों और दार्शनिक व्याख्यानों और बौद्ध धर्मग्रंथों के अध्ययन के लिए ये श्रीलंका चले गये जहाँ जाकर उन्होंने केलानी के मठ में बौद्ध धर्म को अपनाया लिया।

नागार्जुन ने सक्रिय रूप से राजनीति में हिस्सा लिया। नागार्जुन मार्क्स, लेनिन और स्टालिन के लेखन से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने पश्चिम बंगाल में नक्सलबाड़ी के किसानों के सशस्त्र विद्रोह का समर्थन किया और बाद में 1974 में बिहार के जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में सरकार विरोधी आंदोलन में पूरी तरह शामिल हो गये थे। इस दौरान उन्हें ग्यारह महीने के लिए जेल भी जाना पड़ा था।

नागार्जुन के उपन्यास जैसे बलचमना, रतिनाथ की चाची, बाबा बटेसरनाथ और वरुण के बेटे, हिंदी कथाओं में पूर्ण रूप से संग्रहित हैं जो ग्रामीणों की वास्तविक स्थिति को अद्वितीय तरीके से दर्शाते हैं। उन्होंने मैथिली व हिंदी दोनों भाषाओं में कविताएं लिखी हैं। सन् 1941 में उन्होंने ‘बूर वार’ और ‘विलप’ नाम की मैथिली भाषा की दो कविताएं प्रकाशित की जिनकी प्रतियाँ को पैसिंजर ट्रेनों में बेची गई। उन्होंने हिंदी भाषा में ‘शपथ’ और ‘चना जोर गरम’ नाम की दो कविताएं लिखीं, जो क्रमश: 1948 से 1952 के बीच प्रसारित हुई थीं। मैथिली भाषा में उनकी अट्ठाइस कविताओं का पहला संग्रह, 1949 में ‘चित्रा’ में प्रकाशित हुआ था। इसे पहला आधुनिक क्लासिक ग्रन्थ माना जाता है, जिसे मैथिली भाषा के मानक विश्वविद्यालय के पाठ्यपुस्तक में सामान्य रूप से प्रयोग किया जाता है।

सन् 1953 तक उनकी कविताओं के विषय में विशेष रूप से  बदलाव आया था, नागार्जुन इसके बाद गीतात्मक प्राकृतवाद से स्थानांतरित होकर तेलंगाना, मदर इंडिया और अकाल के विद्रोह पर लिखने लगे। सन् 1950 में उन्होंने “भारत माता के पांच योग्य पुत्र” के बारे में 10 पक्तियों वाली एक व्यंगात्मक रचना लिखी थी। इसके बाद में उन्होंने उससे भी छोटी आठ पंक्तियों वाली कविता “अकाल और उसके बाद” लिखी, जो अकाल, भूख, पीड़ा और उदासीनता से संबंधित है। सन् 1948 में उनका उपन्यास ‘रतिनाथ की चाची’ प्रकाशित हुआ था। 113 पृष्ठों में प्रकाशित यह उपन्यास आत्मकथात्मक और यथार्थवादी एवं नारीवादी हिंदी उपन्यासों में से एक है। इस उपन्यास में अत्यधिक गरीबी और घृणित शोषण की एक दु:खद कहानी है। उनका अगला उपन्यास ‘वरुण के बेटे’ सन् 1956 में प्रकाशित किया गया था, यह एक गैर-परंपरागत कृति है, जो निम्न जाति के मछुआरों की कहानी से संबंधित है, जिसमें वे मछली पकड़ने के अधिकार के लिए लड़ते हैं और मछुआरों के सहायक बनाने की कोशिश करते हैं। नागार्जुन ने तेरह उपन्यास लिखे हैं जिनमें ग्यारह हिंदी में और दो मैथिली भाषा में हैं। उनके उपन्यासों का अधिकांश हिस्सा सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक विषयों से संबंधित है, जो ग्रामीण या अर्द्ध-शहरी निवास क्षेत्रों को दर्शाता है। उन्होंने अपने उपन्यासों में ज्यादातर बेसहारा और शोषण की कहानी का वर्णन करते हुए, मुख्य रूप से महिलाएं और बच्चों का उल्लेख किया है।

नागार्जुन अनजाने में हिंदी में अंचलिक उपन्यास (क्षेत्रीय उपन्यास) के अग्रदूत बन गए। सन् 1997 में प्रकाशित ‘अपने खेत में’, कविता संग्रह उनका आखिरी हिंदी कविता संग्रह था, जिसमें ‘ना सही’ तथा ‘और फिर दिखाई न दी’ व्यक्तिगत कविताएं भी शामिल हैं तथा व्यंगात्मक कलाकार एम.एफ. हुसैन और राजनीतिक नेता लालू यादव से जुड़ी है। ‘हुआ गीतों में रस का संचार’ एक अन्य मार्मिक कविता है जो कलकत्ता के रिक्शा चालकों के दयनीय जीवन पर आधारित है।

सन् 1983 में उनके साहित्यिक योगदान के लिए,  नागार्जुन को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मैथिली में रचित पत्राहीर नगना गाचिन संग्रह को सन् 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था

नवंबर, सन् 1998 में इस महान लेखक का देहवसान हो गया।

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