लाचित बोड़फुकन असम की सेना के जनरल थे। लाचित बोड़फुकन को वर्ष 1669 में सराईघाट की लड़ाई में, राम सिंह के नेतृत्व में औरंगजेब की मुगल सेना के खिलाफ असाधारण जीत के लिए याद किया जाता है।

उनके पिता मोमाई तामुली बोड़बरुआ एक विनम्र पृष्ठभूमि के थे, लेकिन वह प्रताप सिंह के शासनकाल में पहले बोड़बरुआ (ऊपरी असम के राज्यपाल और अहोम सेना के प्रमुख सेनापति) के रूप में प्रस्तुत हुए थे। लाचित बोड़फुकन ने मानविकी, ग्रंथों और सैन्य कौशल में प्रशिक्षण प्राप्त किया था।

सेना के सुप्रीम कमांडर के रूप में नियुक्त होने से पहले, उन्होंने रॉयल हॉर्स के अधीक्षक या घोरा बरुआ, रणनीतिक सिमुलगढ़ किला के कमांडर और रॉयल घरेलू गार्डों के अधीक्षक या अहोम राजा की सहायता करने के लिए डोलकाशरिया बरुआ जैसे विभिन्न पदों का कार्यभार संभाला था। राजा चक्रधर सिंह ने लाचित को अहोम सेना के प्रमुख सेनापति के रूप में नियुक्त किया था।

लाचित ने कुशलतापूर्वक अपनी जिम्मेदारियों का वहन किया और वर्ष 1667 की गर्मियों के मौसम तक इसे एक मजबूत और शक्तिशाली सेना में बदल दिया। सराईघाट की लड़ाई में उन्होंने अहोम सेना की अध्यक्षता की, जो मुगल सेना के खिलाफ विजयी हुई थी। जब मुगल सेना ने सराईघाट पर हमला किया, तो उनकी असमिया सेना विशाल मुगल सेना को देखकर, अपना दृढ़ संकल्प और लड़ने की  इच्छा खोने लगी थी। यद्यपि उस समय लाचित बहुत गंभीर रूप से बीमार थे। उन्होंने अपने सैनिकों से कहा कि यदि वह सेना को छोड़कर जाना चाहते हैं तो वह जा सकते हैं, उनके इस कथन ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह ऐसा नहीं करेंगे। उनके इन कथनों ने असमिया सेना को एक बड़ा नैतिक बढ़ावा दिया था। बीमारी के कारण जीत के तुरंत बाद उनकी मृत्यु हो गई थी।

जोरहाट से 16 कि.मी. की दूरी पर स्थित लाचित मैदान में लाचित के अंतिम अवशेष संरक्षित हैं। यह वर्ष 1672 में स्वर्गदेव उदयादित्य सिंह द्वारा हूलुंगपारा में निर्मित कराया गया था। हर साल 24 नवंबर को सामान्यतया लाचित बोड़फुकन को श्रद्धांजलि देने के लिए असम राज्य में लाचित दिवस मनाया जाता है।

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