महासिद्धांत जैसी प्रसिद्ध पुस्तक के लेखक, आर्यभट्ट द्वितीय भारत के एक महान गणितज्ञ और खगोलविद थे। माना जाता है कि 920 ईसवी में आर्यभट्ट द्वितीय का जन्म भारत में हुआ था और मृत्यु 1000 ईसवी में हुई थी।

इन तिथियों को आधुनिक इतिहासकारों ने लगभग सही बताया है, हालांकि जी.आर.के जैसे इतिहासकारों का मानना ​​है कि आर्यभट्ट द्वितीय अल-बिरूनी के समकालीन थे, जबकि वर्ष 1926 में दत्ता ने साबित किया कि आर्यभट्ट शायद इससे भी पहले के समय में उपस्थित थे। हालांकि पिंग्री का मानना है कि आर्यभट्ट की मुख्य रचनाओं का प्रकाशन 950 से 1100 ईसवी के बीच हुआ था, परन्तु आर. बिलियर्ड ने इस संबंध में सोलहवीं शताब्दी की एक तिथि का सुझाव दिया है।

आर्यभट्ट द्वितीय की सबसे प्रसिद्ध रचना महासिद्धांत थी। इस ग्रंथ में अठारह अध्याय शामिल हैं, जिन्हें संस्कृत के पदों के रूप में लिखा गया था। शुरुआती बारह अध्याय गणितीय खगोल विज्ञान से संबंधित विषयों पर आधारित हैं और इनमें वे विषय/ प्रकरण हैं, जो उस अवधि के भारतीय गणितज्ञों द्वारा पहले से प्रयोग किये जाया करते थे। इन बारह अध्यायों में शामिल किए गए विभिन्न विषय हैं: मुख्य ग्रहों के बीच की दूरी, चंद्र और सूर्य ग्रहण, ग्रहणों का अनुमान, चंद्रमा की कलाएं, ग्रहों का उदय और अस्त होना, ग्रहों का परस्पर तथा तारों के साथ संयोग आदि।

इस पुस्तक के अगले छः अध्यायों में ज्यामिति, भूगोल और बीजगणित जैसे विषय शामिल किये गये हैं, जिन्हें ग्रहों की दूरी की गणना करने के लिए प्रयोग किया जाता था। इस ग्रंथ में लगभग बीस छंद हैं, जिनमें अनिश्चितता समीकरण y = ax + c को हल करने के लिए एक विस्तृत नियम की व्याख्या की गई है। इन नियमों को कई अलग-अलग संख्याओं पर लागू किया गया है जैसे कि जब c का मान एक धनात्मक हो, जब c का मान ऋणात्मक हो, जब गुणक की संख्या एक सम संख्या हो तथा जब भागफल/गुणक की संख्या एक विषम संख्या हो।

आर्यभट्ट द्वितीय ने एक संख्या के घनमूल की गणना करने के लिए भी एक विधि बतायी थी, परंतु कई वर्षों पहले आर्यभट्ट प्रथम द्वारा इस विधि की व्याख्या की जा चुकी थी। भारतीय गणितज्ञ एक शुद्ध साइन तालिका बनाने के लिए अत्यधिक उत्सुक हुये थे क्योंकि केवल उससे ही ग्रहों की स्थिति की सटीक जानकारी मिल सकती थी। परन्तु आर्यभट्ट द्वितीय द्वारा प्रदर्शित की गई साइन तालिका दशमलव के पांच स्थानों तक सटीक सर्वाधिक शुद्ध थी और  जिसने ग्रहों की जानकारी प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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