18 अप्रैल 1951 को हुए भूदान (भूमि दान) आंदोलन में विनोबा भावे ने स्वाभिमान के साथ भारतीय इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया। पूरे देश में श्रद्धेय आचार्य विनोवा भावे के नाम से प्रसिद्ध, इस महापुरुष का जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र में कोलाबा जिले के गागोडे नामक गाँव में विनायक नरहारी भावे के रूप में हुआ था।

युवा भावे के आध्यात्मिक विकास पर उनकी माँ रुकमणी देवी का गहरा प्रभाव था। विनोवा भावे ने इसी प्रभाव की वजह से बहुत कम उम्र में ही अपने आप को महाराष्ट्र के संतों और दार्शनिकों के संकर्मों के विद्याभ्यास में तल्लीन कर लिया था। जैसा कि वे कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे इसलिए जीवन के प्रति उनका तात्पर्य काफी गहरा था। वर्ष 1916 में विनोबा भावे अपनी इन्टरमीडिएट की परीक्षा देने मुम्बई जा रहे थे । रास्ते में ही उनका मन बदला और वह बनारस की ओर चल पड़े, वहाँ पर उन्होंने संस्कृत के पौराणिक ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया।

उन्होंने महात्मा गांधी के साथ कुछ पत्राचारों का आदान-प्रदान किया, जिसके बाद गाँधी जी ने विनोबा भावे को विशेषरूप से मिलने के लिए बुलाया। जून 1916 में इस भेंट ने विनोबा भावे को इतना प्रभावित किया कि उनका गाँधी जी से अटूट बंधन जुड़ गया। वह गांधी जी के शिष्य बन गए और गांधी जी के आश्रम में दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में भाग लेने लगे।

1923 में विनोबा भावे ने एक मराठी मासिक पत्र को ‘महाराष्ट्र धर्म’ के नाम से प्रकाशित करना शुरू किया और गांधीजी की गतिविधियों में गहराई से शामिल हो गए। 1938 में ये पवनार के परमधाम आश्रम चले गए, जिसे उन्होंने परमधाम आश्रम का नाम दिया। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया और भारतीय स्वतंत्रता के बाद के भूदान आंदोलन और सर्वोदय आंदोलन जैसे सामाजिक सुधार आंदोलनों की शुरुआत की। इसके अलावा, उन्होंने गौ हत्या के विरोध में प्रदर्शन किया। 15 नवंबर 1982 को उनका निधन हो गया और 1984 में मरणोपरांत उन्हें ‘भारत रत्न पुरूस्कार’, से सम्मानित किया गया।

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