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रवीन्द्रनाथ टैगोर जिन्हें “गुरुदेव” के रूप में याद किया जाता है, बंगाल के सांस्कृतिक परिदृश्य में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रीय चेतना को आकार देने में अहम भूमिका निभाई। वर्ष 1913 में, रवीन्द्र नाथ टैगोर अपनी काव्य रचना ‘गीतांजलि’ के लिए साहित्य में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय और वास्तव में पहले गैर-यूरोपीय थे। रवीन्द्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को हुआ था, रवीन्द्र नाथ टैगोर, देबेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के तेरह बच्चों में सबसे छोटे थे। यद्यपि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही ग्रहण की थी, लेकिन इनमें जल्द ही साहित्यिक प्रतिभा विकसित हो गई और इससे इनकी एक उच्च प्रकार के कवि, विचारक और लेखक की अलग पहचान बन गई।

उल्लेखनीय कार्य

टैगोर बहुमुखी प्रतिभा वाले थे, हालांकि ये प्रतिभा रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कविता के माध्यम से ही प्राप्त की थी। रवीन्द्र नाथ द्वारा लिखित कविता संग्रह गीतांजलि वर्ष 1910 में प्रकाशित हुई थी, जिसने साहित्य का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया था। टैगोर की कई अन्य महत्वपूर्ण कृतियाँ में मानसी (1890), सोनार तारी (1894), गितिमल्या (1914) और राजा (1910) डाकघर (1912) आदि शामिल हैं। रवीन्द्र नाथ टैगोर एक अनुभवी चित्रकार थे, जो अपने पीछे कई बहुमूल्य  चित्रकारी छोड़ गए।  रवीन्द्र नाथ टैगोर संगीत में भी रुचि रखते थे और इन्होंने कुछ गाने भी लिखे और उनको संगीत प्रदान किया।

रवीन्द्र नाथ टैगोर और उनकी शिक्षा

रवीन्द्रनाथ टैगोर को औपचारिक शिक्षा में समय व्यतीत करना अत्यधिक कठिन कार्य लगता था, जबकि ये अपना समय शांत चिंतन करने में व्यतीत करना अधिक पसंद करते थे। जब रवीन्द्र नाथ टैगोर को अध्ययन करने के लिए प्रसिद्ध प्रेसिडेंसी कॉलेज भेजा गया, तो ये वहाँ केवल एक दिन ही रुक सके।

टैगोर के अनुसार, “सही शिक्षा एक उच्च उद्देश्य का पालन करती हैः यह दिमाग के द्वारों को खोलने का कार्य करती है। यदि किसी लड़के से इस तरह से जागृत होने के लिए कहा जाए तो शायद वे इस पर अपने मूर्खतापूर्ण विचार देगा। शब्दों के ज्ञान की अपेक्षा जो आपके चारों ओर घटित हो रहा है वो अधिक महत्वपूर्ण है। जो लोग शिक्षा के परीक्षण के रूप में विश्वविद्यालय की परीक्षाओं पर विश्वास करते हैं उसका कोई विवरण न लें”। इन विचारों से लोगों को उनके आश्रम शांतिनिकेतन में मानववादी और समग्र शिक्षा पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ एक प्रयोगात्मक स्कूल में सिखने का मौका मिला।

राजनीतिक दृष्टिकोण

जहाँ तक राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का संबंध था रवीन्द्र नाथ टैगोर राष्ट्रवादियों के लिए संकट की स्थिति में उपस्थित रहे। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद का विरोध किया-यहां तक कि जलिया वाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध में अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि को लौटाने तक। वह एक क्रांति, सशस्त्र या अन्य चीजों के विरुद्ध थे। रवीन्द्र नाथ टैगोर को उपनिवेशीकरण के लिए सामाजिक कमियों से भारत को उभारने के लिए एक राजनीतिक झुकाव के रूप में भी देखा गया। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने आंतरिक सुधार को एकमात्र उद्देश्य के रूप में रखा और भारत की समस्याओं के सर्वश्रेष्ठ समाधान के रूप में शिक्षा पर जोर दिया था। इस तरह के विचारों को वास्तव में अधिक महत्व नहीं दिया गया और यहाँ तक कि एक बार ये किसी के द्वारा अपनी हत्या होने से बाल-बाल बचे। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने अछूतों के लिए विशेष स्थिति में गांधी और अम्बेडकर के बीच के अवरोध को दूर करके संकट को कम करने में एक शांतिप्रिय व्यक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

रवीन्द्र नाथ टैगोर देशभक्ति और लचीलेपन से भरे हुए थे, जो उनके ऐतिहासिक गीत “चित्तो जेथा भयशून्य” (“व्हेयर दि माइन्ड इज विदाउट फियर”) और “एकला चलो रे” (इफ दे आन्सर नॉट टू दि कॉल, वॉक अलोन”) में दिखाई दिया।

अमर रबिन्द्र नाथ टैगोर

टैगोर की विरासत अभी भी भारत में युवा मन और ह्रदय को एक नया रूप देती है जो उन्हें उनके ज्ञान और चुनौती आदि की सीमा का विस्तार करने और सही मार्गदर्शन देती है। एक कवि, नेता या लेखक के रूप में कई प्रतिभाओं के इस व्यक्ति को वर्गीकृत करना अनुचित होगा, लेकिन शायद एक समाज सुधारक के रूप में टैगोर का योगदान सबसे महत्वपूर्ण था। एक समय जब भारत कई विघटनकारी शक्तियों से जूझ रहा था, तब जाति, संस्कृति,  स्वतंत्रता और शिक्षा पर उनके विचार एक बहुत आवश्यक बाध्यकारी बल थे।

 

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