एक पर्यावरणविद, दार्शनिक और सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में विख्यात, सुंदरलाल बहुगुणा हिमालय के वृक्षों के कटान के खिलाफ आयोजित किए गए ‘चिपको आंदोलन’ में अपनी भूमिका के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। वह अपने नारे “पारिस्थितिकी स्थायी अर्थव्यवस्था है” के लिए याद किये जाते हैं।

वृक्षों के कटान के सिलसिले में सुंदरलाल बहुगुणा ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की थी, जिसके परिणामस्वरूप श्रीमती गांधी ने वृक्षों की कटान पर प्रतिबंध लगा दिया। सुंदरलाल ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर हिमालय में रहने वाले लोगों की स्थिति  को सुधारने के  कई अथक प्रयास किए हैं।

सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध के संदर्भ में जोरदार विरोधात्मक आवाज उठाई है। उन्होंने महात्मा गांधी के अहिंसक विरोध से अभिप्रेरित होकर हिमालय क्षेत्र में रहने वाले साधारण ग्रामीणों की मदद करने के लिए अपने जीवन को बिलकुल सामान्य बना लिया है।

सुंदरलाल बहुगुणा वनोन्मूलन से हो रहे पर्यावरण के भारी नुकसान को बहुत ही गंभीरता से लिया और हिमालय के 4870 कि.मी. तक के क्षेत्र को संरक्षित रखने का दायित्व निभाया है।

उन्होंने टिहरी बांध पर काम बंद करवाने के लिए कई भूंख-हड़तालें भी की थी। इस बांध ने हजारों लोगों को उनके घरों और परिवारों से पहले ही अलग कर दिया है।

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