बी. के. एस. अयंगर: योगियों के राजा

योग गुरु बेल्लूर कृष्णमचार्य सुंदरराज अयंगर का 20 अगस्त 2014 को निधन हो गया था। बी. के. एस. अयंगर सबसे पहले भारत में और फिर पश्चिम में, योग को लोकप्रिय बनाने के अपने प्रयासों के लिए व्यापक रूप से जाने जाते हैं। अयंगर, का 96 वर्ष की आयु में निधन हो गया और अयंगर का उपनाम ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में सूचीबद्ध है और जिसमें उसका ‘अष्टांग योग के रूप’ में वर्णन किया गया है। अयंगर की बुद्धिमत्ता से उत्पन्न होने वाली उनकी लोकप्रियता ने उन्हें विश्व के सबसे प्रसिद्ध योग शिक्षकों में से एक बना दिया था और जिसके लिए अयंगर को पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। बी. के. एस. अयंगर को योग के अभ्यास और दर्शन पर कई पुस्तकों का श्रेय दिया जाता है। वर्ष 2004 में, अयंगर को ‘टाइम’ पत्रिका द्वारा दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया गया था।

योग की उनकी शैली अयंगर के रूप में प्रसिद्ध है। इनके अनुयायी योग का बड़ी शालीनता से पालन करने पर जोर देते हैं और अयंगर की योग कक्षाओं में दुनिया भर के कई प्रमाणित प्रशिक्षक आते हैं। चलिए बी. के. एस. अयंगर के जीवन और समय पर एक नजर डालते हैं।

संघर्ष-पूर्ण बचपन

अयंगर को अपने जन्म (14 दिसम्बर, 1918) के शुरुआती वर्षों में गरीबी और कई रोगों का सामना करना पड़ा था। बी. के. एस. अयंगर के माता-पिता श्री वैष्णव अय्यंगर और शेशम्मा काफी गरीब थे। अयंगर अपने तेरह भाई-बहनों में ग्यारहवें स्थान पर थे, जिनमें से केवल दस ही जीवित बचे थे। कर्नाटक के बेल्लूर में, जो अयंगर का जन्म स्थान है, वहाँ के लोग इन्फ्लूएंजा महामारी से जूझ रहे थे तथा उसके प्रकोप से वह भी नहीं बच पाए थे। एक बीमार और कमजोर बच्चे के रूप में अयंगर को तपेदिक, मलेरिया, टाइफाइड और कुपोषण का सामना करना पड़ा था। वहाँ इन मुसीबतों का कोई भी समाधान नहीं हो पा रहा था। अयंगर जो कि उस समय सिर्फ पाँच वर्ष के थे, तभी उन्हें एक और दुखद स्थिति से गुजरना पड़ा, जब उन्होंने अपने पिता को एपेंडिसाइटिस (आंत में एक प्रकार का फोड़ा) होने के कारण खो दिया था।

योग का मार्ग

उनके बहनोई श्री तिरुमलई कृष्णमचार्य जो कि एक योगी थे, वह अयंगर की बीमारियों को लेकर बेहद चिंतित रहते थे। वर्ष 1934 में श्री तिरुमलाई ने अयंगर को स्वास्थ्य सुधार के लिए योग का अभ्यास करने हेतु मैसूर बुला लिया था। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, क्योंकि मैसूर जाकर न केवल उनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ, बल्कि उन्हें मैसूर के महाराजा के दरबार में योग का प्रदर्शन करने का भी अवसर मिल गया था। अयंगर को राजदरबार में एक सलाहकार के रूप में तिरुमलई कृष्णमचार्य की जगह रखा गया था, क्योंकि वह अक्सर अपने काम को कम महत्व देते थे। कृष्णमचार्य ने सोचा कि अय्यंगर एक कमजोर बच्चा है, इसलिए वह योग गुरु बनने में सक्षम नहीं हो पाएगा। अयंगर का उचित प्रशिक्षण तब शुरू हुआ, जब कृष्णमचार्य अपने प्रिय शिष्य को छोड़कर, अयंगर पर अपना ध्यान केंद्रित किया।

एक गुरु बनने की शुरुआत

वर्ष 1937 में अयंगर ने एक शिक्षक के रूप में अपने इस सफर की शुरुआत की थी। कृष्णमचार्य के आग्रह पर, अयंगर अट्ठारह वर्ष की आयु में पुणे चले गए थे, जहाँ उन्होंने अपना अधिकांश समय विभिन्न तकनीकों के परीक्षण और उन्हें सीखने में बिताया था।

धीरे-धीरे, अयंगर की शिक्षाओं से जिद्दु कृष्णमूर्ति, येहुदी मेनुहिन, जयप्रकाश नारायण, एलिजाबेथ बेल्जियम की रानी, एल्डास हक्सले से लेकर सचिन तेंदुलकर, करीना कपूर, ईशा शेरवानी और जहीर खान जैसी प्रमुख हस्तियाँ भी प्रभावित हो गई थीं।

विश्व पहचान

अयंगर की अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि की यात्रा तब शुरू हुई, जब अयंगर ने वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन से दोस्ती कर ली। जब पहली बार अयंगर येहुदी के पास गए, तो उन्हें बताया गया कि येहुदी वास्तव में थके हुए हैं और वह केवल पाँच मिनट तक योग कर सकते हैं। अयंगर ने येहुदी को एक आरामदायक आसन करने के लिए कहा, जिसको करते ही येहुदी एक घंटे के लिए सो गए थे। जागने के बाद खुद को तरोताजा महसूस करते हुए, येहुदी ने अयंगर के साथ दो घंटे बिताए और उन्होंने महसूस किया कि योग का अभ्यास करने से उनके वायलिन प्रदर्शन में सुधार हुआ है। येहुदी ने अयंगर को स्विट्जरलैंड आने के लिए आमंत्रित किया, जिसके बाद अयंगर ने पश्चिमी देशों का दौरा किया और अब ऐसे सैकड़ों संस्थान हैं, जहाँ अयंगर के योगों को सिखाया जाता है।

लिखित शब्द

अयंगर ने “लाइट ऑन योगा” से कई किताबों को लिखने की शुरुआत की, जो वर्ष 1966 में प्रकाशित हुई थी और यह 17 भाषाओं में उपलब्ध अनुवाद के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तक बन गई थी। उनकी प्राणायाम और दर्शन के पहलुओं पर आधारित यह किताब व्यापक रूप से पढ़ी गई थी और इसकी सफलता ने अयंगर को 14 शीर्षक प्रदान किए थे। उनकी 14वीं किताब “लाइट ऑन लाइफ” थी।

प्रतिष्ठा का विस्तार

अयंगर ने वर्ष 1984 में अध्यापन से अवकाश लेने के बाद कार्यशालाओं और विशेष का संचालन करने का एक सक्रिय जीवन जारी रखा था। जब वर्ष 2005 में उन्होंने अपनी आखिरी पुस्तक का प्रचार करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका का दौरा किया, तो सैन फ्रांसिस्को के पर्यवेक्षक बोर्ड ने 3 अक्टूबर 2005 के दिन को “बीकेएस अयंगर दिवस” के रूप में घोषित कर दिया। उनके असंख्य शिष्यों को देखकर मनोविज्ञानी जोसेफ एस ऑल्टर ने कहा कि “उन पर योग के वैश्विक प्रसार का सबसे गहरा असर पड़ा है”। जब चीन पोस्ट की बीजिंग शाखा ने, चीन के पाँच शहरों में 30,000 से अधिक अयंगर योग के छात्र होने कारण एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था, तो वर्ष 2011 में उनके नाम के साथ एक और सम्मान जुड़ गया था।

दीर्घ आयु का रहस्य

अयंगर की दीर्घ आयु उनके अभ्यास का परिणाम थी और उन्होंने “खुशी से जियो और शान से मरो” का प्रसार किया था। यहाँ तक कि 95 वर्ष की उम्र में भी अयंगर प्रत्येक दिन कम से कम तीन घंटे आसन और एक घंटे प्राणायाम का अभ्यास करते थे। शुद्ध शाकाहारी अयंगर ने एक बार, एक साक्षात्कार में उल्लेख किया था कि वे किसी भी समय बिना विचार विमर्श किए हुए प्राणायाम कर सकते है।

परिवार

अयंगर ने वर्ष 1943 में रामामणि के साथ विवाह किया था, जिनका 46 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। उसके बाद अयंगर ने पुणे में अपने योग स्कूल को उनके नाम पर रखा। इस विवाह से उनके पाँच बेटियाँ और एक बेटा है, जिनमें से दो बच्चे विश्व के प्रसिद्ध शिक्षक हैं और शेष बच्चों ने साहित्यिक कार्यों में नाम कमाया है।

योग का अद्वितीय रूप

अयंगर का योग, योग का एक विशेष रूप है। अयंगर की शैक्षणिक शैली, जो उनके शिष्यों द्वारा वांछित थी, बिलकुल स्पष्ट रूप में समविष्ट है। उन्होंने लचीलेपन और प्राकृतिक शक्ति पर जोर दिया था, क्योंकि एकबार एक स्कूटर दुर्घटना के परिणामस्वरूप उनकी रीढ़ की हड्डी उखड़ गई थी। इसलिए अय्यंगर ने योग में बेल्ट, कंबल और ब्लॉकों जैसी सहूलियत की चीजों के उपयोग की खोज की थी, ताकि विभिन्न समर्थ लोग इनका चिकित्सा के रूप में उपयोग कर सके। योग ज्ञान के भगवान जैसे नृसिंह ने भी उनकी आसन की शिक्षाओं को अपनाया था। अयंगर का काम लोकोपकार और सक्रियता तक विस्तारित हुआ, जिसमें प्रकृति संरक्षण, पशुओं को स्वीकार करने और भारत में एकाधिक स्क्लेरोसिस के प्रति जागरुकता को बढ़ावा देने के लिए भारी दान और समर्थन शामिल था।

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