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सचिन तेंदुलकर की जीवनी – बचपन और प्रारंभिक जीवन

April 18, 2018
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सचिन तेंदुलकर की जीवनी

सचिन तेंदुलकर का जन्म 24 अप्रैल 1973 को दादर, मुंबई के निर्मल नर्सिंग होम में हुआ था। सचिन तेंदुलकर के पिता रमेश तेंदुलकर महाराष्ट्र के सबसे प्रसिद्ध उपन्यासकार थे और उनकी माँ रजनी एक बीमा एजेंट थीं। उनके पिता ने सचिन देव बर्मन के नाम पर उनका नाम सचिन रखा था, जोकि उनके पसंदीदा संगीत निर्देशक थे। सचिन अपने 4 भाई व बहन में सबसे छोटे हैं, उनके बड़े भाई नितिन व अजीत और उसके बाद उनकी बहन सविता हैं।

बचपन

सचिन ने अपने बचपन के कुछ साल बांदा ईस्ट के साहित्य सहवास सहकारी आवास सोसायटी में व्यतीत किए। सचिन वर्तमान की तुलना में अपने बचपन में बिल्कुल विपरीत थे, क्योंकि उन्हे स्कूल में लड़ाई करना या स्कूल में पहली बार आने वाले बच्चों का धमकाना पसंद था।

अपनी किशोरावस्था में सचिन जॉन मैकनेरो, जो अमेरिका के प्रमुख टेनिस खिलाड़ियों में से एक हैं, के बहुत बड़े प्रशंसक थे। अजीत ने सचिन के शरारती स्वभाव को बड़ी मुश्किल से छुड़ाया और उन्हें वर्ष 1984 में क्रिकेट के प्रति दिलचस्पी दिखाने पर जोर दिया। उन्होंने सचिन की रमाकांत आचरेकर से भेंट करवाई, जो अपने समय के सबसे प्रसिद्ध क्लब क्रिकेटर के साथ-साथ एक बेहतरीन कोच भी थे। रमाकांत आचरेकर दादर के शिवाजी पार्क में क्रिकेट का अभ्यास करवाते थे।

आचरेकर ने सचिन की प्रतिभा को देखा, जो उन्हें काफी पसंद आयी, उसके बाद उन्होंने सचिन से शारदाश्रम विद्यामंदिर (इंग्लिस) माध्यमिक स्कूल को छोड़कर, अपने स्कूल में प्रवेश लेने के लिए कहा, जो दादर में ही स्थित था। यह स्कूल स्थानीय क्रिकेट मंडली में शीर्ष पर था और उस समय, यहाँ से कई प्रसिद्ध क्रिकेटर उभरकर सामने आए थे। इससे पहले, सचिन ने बांद्रा ईस्ट के भारतीय एजुकेशन सोसाइटी के न्यू इंग्लिश स्कूल में अध्ययन किया था।

क्रिकेट की यात्रा का शुभारंभ

आचरेकर ने सचिन को सुबह स्कूल से पहले और शाम को स्कूल के बाद अभ्यास कराना शुरू किया। तेंदुलकर चार घंटों तक अभ्यास करते थे और जब भी वे थक जाते थे, तो आचरेकर सचिन को प्रलोभित करने के लिए स्टंप के शीर्ष पर एक रुपए का सिक्का रख देते थे। रुपया रखने के बाद आचरेकर कहते कि अगर वह उनको आउट न कर पाएं, तो वह सिक्का उनका हो जाएगा और इस तरह सचिन ने उनसे 13 सिक्के जीते, जिसे आज भी सचिन अपनी सबसे अमूल्य संपत्ति मानते हैं। अभ्यास को ज्यादा समय देने के लिए सचिन ने अपने चाचा और चाची के साथ रहने का फैसला किया, जो शिवाजी पार्क के निकट रहते थे।

सचिन के बचपन की महानता

सचिन को स्कूल में एक महान बच्चा माना जाता था और वह मुंबई के क्रिकेट मंडलियों में एक आम चर्चा का विषय बन गए थे। वह अपनी स्कूल की माटुंगा गुजराती सेवा मंडल शील्ड के नाम से जानी जाने वाली टीम के सबसे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों में से एक थे। सचिन स्कूल क्रिकेट के साथ-साथ क्लब क्रिकेट में अपनी एक अलग छाप छोड़ने में सफल हुए और साथ ही उन्होंने प्रतिष्ठित कांगा लीग में भी प्रदर्शन किया। सचिन का पहला क्लब, जॉन ब्राइट क्रिकेट क्लब था, जो बाद में क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया (सीसीआई) में तब्दील हो गया।

सचिन ने 14 वर्ष की आयु में मद्रास के एमआरएफ पैस फाउंडेशन में भाग लिया था, ताकि वह तेज गेंदबाज बनने का अभ्यास कर सकें। हालाँकि, डेनिस लिली जो कार्यवाही का नेतृत्व कर रही थी, वह युवा बच्चे की गेंदबाजी से प्रभावित नहीं हुईं और उन्होंने सचिन से कहा कि वह अपनी बल्लेबाजी पर ध्यान केंद्रित करें। इस समय सचिन मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के सर्वश्रेष्ठ ज्यूनियर क्रिकेटर अवॉर्ड को जीतने में सक्षम नहीं थे, इसलिए वह परेशान थे, लेकिन उन्हें श्री सुनील गावस्कर के अल्ट्रा लाइट पैड की एक जोड़ी मिली, जिसमें लिखा था कि वह स्वयं भी इस उम्र में यह अवार्ड नहीं जीत पाए थे। युवा प्रतिभा को प्राप्त करने के प्रयास में उन्होंने यह भी कहा कि एक क्रिकेटर के रूप में खुद काफी बेहतर साबित किया है। सचिन ने गावस्कर के 34 वें टेस्ट शतक का रिकार्ड तोड़ने के बाद कहा कि उस समय के उनके वह शब्द मेरे लिए संभवतः सबसे बड़े प्रोत्साहन के रूप में साबित हुए हैं।

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का पहला अनुभव

सचिन को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का पहला अनुभव तब प्राप्त हुआ, जब वह एक प्रदर्शनी खेल में इमरान खान की टीम के एक विकल्प के रूप में दिखाई दिए, क्योंकि यह सीसीआई की स्वर्ण जयंती समारोह के रूप में मुंबई में ब्रेबोर्न स्टेडियम में आयोजित की गई थी और सचिन इस जगह अभ्यास भी करते थे। जब वर्ष 1987 में मुंबई में भारत और इंग्लैंड के बीच विश्वकप का सेमीफाइनल मैच खेला गया, तो उसमें सचिन ने गेंदबाज की भूमिका निभाई थी।

उनकी प्रतिभा की पहली झलक

वर्ष 1988 सचिन के लिए एक असाधारण सत्र रहा, क्योंकि इसमें होने वाले प्रत्येक मैच में उन्होंने शतक लगाया था। सचिन के पूर्व मित्र और टीम इंडिया के सहयोगी विनोद कांबली के साथ मिलकर लॉर्ड्स हैरिस शील्ड इंटरस्कूल प्रतियोगिता में सेंट जेवियर्स के हाई स्कूल के खिलाफ 664 रन की नाबाद भागेदारी की थी। उस मैच में तेंदुलकर ने 326 रन बनाए थे और उस टूर्नामेंट में 1000 से ज्यादा रन बनाए थे। सचिन का प्रभुत्व ऐसा था कि विपक्षी उनके साथ मैच खेलने से कतराते थे और एक गेंदबाज के लिए वह समय वास्तव में काफी दर्दनाक होता था। उन दोनो लोगों की साझेदारी वर्ष 2006 तक अटूट रही, जब हैदराबाद में आयोजित मैच में कुछ अंडर-13 के बल्लेबाजों ने भाग लिया था।

उनका कहना है कि हर सुबह एक नए दिन का वर्णन करती है और यह सचिन के लिए बिल्कुल सही था। परिश्रमी और कड़ी मेहनत के साथ-साथ अदम्य प्राकृतिक प्रतिभा और रनों के भूखे युवा मुम्बईकर (सचिन) ने काफी बेहतरीन प्रदर्शन किया, क्योंकि वह 16 साल की उम्र में ही पाकिस्तान के विरुद्ध होने वाले मैच में चयनित किए गए थे और पाकिस्तान मजबूत तेज गेंदबाजी के आक्रमण के कारण, उस समय की सबसे खतरनाक टीमों में से एक थी। सचिन ने उस दौरे के बाकी खिलाड़ियों से अलग पहचान बना ली थी।