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भारतीय संस्कृति – योग का महत्व

June 21, 2018
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भारतीय संस्कृति में योग

योग, आध्यात्मिक भारत को जानने और समझने का एक तरीका है। इसके साथ ही योग भारत की संस्कृति और विरासत से भी जुड़ा हुआ है। संस्कृत में, योग का अर्थ है “एकजुट होना”। योग स्वस्थ जीवन जीने के तरीके का वर्णन करता है। योग में ध्यान लगाने से मन अनुशासित होता है। योग से शरीर का उचित विकास होता है और यह सुदृढ़ होता है। योग के अनुसार, यह वास्तव में हमारे स्वास्थ्य पर अपना प्रभाव डालने वाला शरीर का तंत्रिका तंत्र है। तंत्रिका तंत्र दैनिक योग करने से शुद्ध (मजबूत) होता है और इस प्रकार योगा हमारे शरीर को स्वस्थ और मजबूत बनाता है।

मानव सभ्यता जितनी पुरानी है, उतनी ही पुरानी योग की उत्पत्ति मानी जाती है, लेकिन इस तथ्य को साबित करने का कोई ठोस सबूत मौजूद नहीं है। इस क्षेत्र में व्यापक शोध के बावजूद भी, योग की उत्पत्ति के संबंध में कोई ठोस परिणाम प्राप्त नहीं हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि भारत में योग की उत्पत्ति लगभग 5000 साल पूर्व हुई थी। बहुत से पश्चिमी विद्वानों का मानना था कि योगा की उत्पत्ति 5000 साल पूर्व नहीं, बल्कि बुद्ध (लगभग 500 ईसा पूर्व) के समय में हुई थी। सिंधु घाटी की सबसे प्राचीन सभ्यता की खुदाई के दौरान, बहुत ही आश्चर्यजनक तथ्य उभरकर सामने आए। खुदाई के दौरान, इस सभ्यता के अस्तित्व वाले साबुन के पत्थर (सोपस्टोन) पर आसन की मुद्रा में बैठे योगी के चित्र उत्कीर्ण मिले हैं। मूल रूप से, योग की शुरूआत स्वयं के हित की बजाय सभी लोगों की भलाई के लिए हुई है।

वैदिक योग 

वेदों के अनुसार, भारत में योग की उत्पत्ति वैदिक काल में हुई है। सबसे प्राचीन योगिक शिक्षाएँ वैदिक योग या प्राचीन योग के नाम से मशहूर हैं और इसे चार वेदों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में देखा जा सकता है। वैदिक योग से जुड़े अनुष्ठान और समारोह मन को तरोताजा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए, उस समय लोगों ने वैदिक योग को जीवन के बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू के रूप में अपनाया था। योग को अदृश्य दुनिया से जुड़ने और अपने आप को किसी के प्रति समर्पित करने का एक तरीका माना जाता है। उस समय समर्पण का उपयोग करके ही एक बात पर लंबे समय तक ध्यान केंद्रित किया जाता था। इसलिए, वैदिक योग को योग की जड़ माना जाता है। संस्कृत में ऋषि वैदिक योग के गुरू “सिद्ध पुरूष” के नाम से मशहूर थे।

प्रारम्भिक-शास्त्रीय योग

वैदिक योग के बाद प्रारम्भिक-शास्त्रीय योग का युग आया और इसे उपनिषदों के निर्माण के रूप में चिन्हित किया गया था। इसकी अवधि लगभग 2,000 वर्षों की थी और यह योग दूसरी शताब्दी तक चला था। इस योग के कई रूप हैं, लेकिन इस प्रारंभिक योग के अधिकांश योग, वैदिक योग के समान ही हैं।

उपनिषद के तीन विषय – निर्णायक सत्य (ब्राह्मण), स्व अनुभवातीत (आत्मा) और इन दोनों के बीच के संबंध को, वेदों में समझाया गया है और इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि योग की उत्पत्ति उपनिषद् के साथ हुई है। हिंदुओं की एक अत्यंत महत्वपूर्ण पवित्र पुस्तक भगवद-गीता (“भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों का संग्रह”), इस अवधि के उत्कृष्ट योग धर्मग्रंथों में से एक है। इसके अलावा रामायण और महाभारत (भगवद-गीता की तरह ही) में भी योग का समावेशन था। इस समय वाले योग में शरीर और मन को अपने वश में करके ध्यान केन्द्रित करने की कई तकनीक और आत्म यथार्थ की खोज करने के लिए दिव्य शक्तियाँ मौजूद थीं।

इस अवधि का योग हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म से भी जुड़ा हुआ है क्योंकि छठी शताब्दी ईसापूर्व में भगवान बुद्ध ने ध्यान के महत्व पर शिक्षण देना शुरू कर दिया था।

शास्त्रीय योग

योग सूत्र में शास्त्रीय योग का प्रमाणीकरण किया गया था और पतंजलि ने दूसरी शताब्दी के आसपास शास्त्रीय योग के निर्माण के प्रतीक का व्याख्यान किया था। सूत्र शब्द का अर्थ “धागा” होता है, लेकिन यहाँ पर इसका अर्थ “स्मृति का धागा” है, जिसमें पतंजलि के छात्र पतंजलि के ज्ञान और बुद्धिमत्ता को बरकरार रखते हैं। 195 वचन या सूत्र योग के आठ अंग – यम (नैतिक मूल्य), नियम (शुद्धता का व्यक्तिगत रूप से पालन), आसन (शारीरिक व्यायाम), प्रत्याहार (ध्यान के साधन की रचना), धारणा (एकाग्रता), ध्यान (चिंतन) और समाधि (विमुक्ति) हैं।

पतंजलि का मानना ​​था कि प्रत्येक व्यक्ति का निर्माण तत्व (प्रकृति) और आत्मा (पुरुष) से मिलकर होता है। योग के माध्यम से, इन दोनों को पृथक करके आत्मा का शुद्ध रूप में नवीनीकरण किया जा सकता है।

पूर्व-शास्त्रीय योग

पूर्व शास्त्रीय योग का ध्यान वर्तमान पर केंद्रित था। इसमें पतंजलि योग-सूत्र के बाद, अस्तित्व में आने वाले योग के सभी अनुभाग निहित होते हैंशास्त्रीय योग से विपरीत, पूर्व शास्त्रीय योग में सब कुछ कठोर एकाग्रता पर केंद्रित होता है। इस अवधि के दौरान योग ने एक दिलचस्प मोड़ ले लिया था, क्योंकि इस अवधि के योग शरीर के अंदर छिपी क्षमता की जाँच करने में सक्षम थे। इसलिए, शरीर का नवीनीकरण करने के लिए योग गुरुओं द्वारा साधनाओं की एक प्रणाली का निर्माण किया गया था। इससे परिणामस्वरूप वर्तमान योग के एक शौकिया प्रारूप हठ-योग की रचना हुई।

आधुनिक योग

माना जाता है कि वर्ष 1893 में शिकागो में आयोजित धर्मों की संसद में आधुनिक योग की उत्पत्ति हुई थी। स्वामी विवेकानंद ने धर्मों की संसद में, अमेरिकी जनता पर स्थायित्व से परिपूर्ण प्रभाव डाला था। उसके फलस्वरूप वह योग और वेदांत की ओर छात्रों को आकर्षित करने में काफी सफल हुए। उसके बाद, दूसरे योगगुरू परमहंस योगानन्द को माना जाता है। वर्तमान समय में, पतंजली योग पीठ ट्रस्ट के स्वामी रामदेव ने भारत के प्रत्येक घर में और यहाँ तक विदेशों में भी योग का प्रसार करने में कामयाबी हासिल की है।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के अहमदाबाद में, लकुलीश योग विश्वविद्यालय में उद्घाटन के साथ, योग को लोगों का अभिन्न अंग मानते हुए इसे अपनाने पर जोर दिया। यह स्व-वित्तपोषित गैर-सरकारी विश्वविद्यालय अहमदाबाद के जिले सुरेंद्रनगर में लाइफ मिशन ट्रस्ट द्वारा स्थापित किया गया है। अष्टांग योग, कर्म, ज्ञान, भक्ति योग, दर्शन, मनोविज्ञान, शरीर रचना विज्ञान, आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा में पढ़ाई पूरी करने के बाद छात्रों को तीन वर्ष की डिग्री से सम्मानित किया जाएगा।

योग वास्तव में भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है और इतिहास के साथ-साथ योग में भी परिवर्तन देखने को मिले हैं। तो आइए यथार्थ में भारत का हिस्सा बनें और शरीर और आत्मा के सुधार के लिए योग को अपनाएं।

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भारतीय संस्कृति - योग का महत्व
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योग, आध्यात्मिक भारत को जानने और समझने का एक तरीका है। इसके साथ ही योग भारत की संस्कृति और विरासत से भी जुड़ा हुआ है। संस्कृत में, योग का अर्थ है “एकजुट होना”।