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विश्व मलेरिया दिवस: रोग को खत्म करने के लिए भारत की प्रगति

April 26, 2017


विश्व मलेरिया दिवस

जब यूरोपीय पहली बार भारत में आए, तो उन्हें सबसे बड़ा डर एक बीमारी का था। मलेरिया एक आसानी से लगने वाली बीमारी थी, जो जल्द वार कर पीड़ित व्यक्ति को मार डालेती है। कुनैन (सिनकोना की छाल) की खोज तक मलेरिया घातक माना जाता था। 19 वीं सदी के मध्य तक कई अन्य दवाएं विकसित हुईं, जिससे दुनिया भर में मलेरिया की वजह से होने वाली मौतों में कमी हुई है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है, हालांकि, चिकित्सा विज्ञान में प्रगति और दवा की आसान उपलब्धता के बावजूद मलेरिया अभी तक भारत में खत्म नहीं हुआ है।

मलेरिया को खत्म करने से दूर

हर साल गर्मी और मानसून के महीनों के दौरान पूरे देश में पानी से पैदा होने वाली बीमारियाँ फैलती हैं। हाल के दिनों में डेंगू और चिकनगुनिया के होने की घटनाओं के साथ हम मलेरिया के बारे में भूल गए हैं, लेकिन बीमारी अभी भी देश में तीसरी सबसे आम बीमारी है। बेशक चीजें बदल गई हैं 2000 में 20 लाख मामले दर्ज किए गए और 2013 में देश भर में मलेरिया के 8,81,730 मामले सामने आए हैं। अगले साल यह 10,70,513 पर पहुंँच गया और पिछले साल (2016) में 10,59,437 मामले दर्ज किए गए थे। 2016 में बीमारी के कारण भारत में 242 लोग मारे गए। मलेरिया रिपोर्टों की संख्या में काफी तेज गिरावट के रूप में अच्छी शुरुआत है, जो अब बिना विशेष प्रगति के स्थिर हो चुका है।

भारत को प्रयासों पर ध्यान देना चाहिए

अफ्रीकी महाद्वीप के बाहर भारत दुनिया भर में मलेरिया के मामलों की सबसे अधिक संख्या रिपोर्ट करता है। दक्षिण पूर्व एशिया में रिपोर्ट की गईं सभी मलेरिया रिपोर्टों के तीन चौथाई भाग में भारत आता है। पिछले साल स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जे.पी. नड्डा ने मलेरिया उन्मूलन 2016-2030 के लिए राष्ट्रीय फ्रेमवर्क शुरू किया था। सरकार ने यह वचन दिया है कि 2030 तक देश में मलेरिया को खत्म करने के लिए केंद्रित प्रयास किए जाएंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारत अभी भी ‘नियंत्रण चरण’ में है और ‘पूर्व उन्मूलन चरण’ के लिए प्रयासों को बढ़ाना होगा। डब्ल्यूएचओ मानकों के अनुसार, पूर्व उन्मूलन तब प्राप्त किया जा सकता है जब मलेरिया का प्रसार 1000 लोगों (आबादी) पर 1 मामले से कम हो। जब मलेरिया की बात आती है तो देश के उत्तरी और उत्तर पूर्वी राज्य विशेष रूप से इसकी चपेट में आते हैं, इसलिए इन भागों में केंद्रित प्रयासों की आवश्यकता होती है।

क्या मलेरिया से मुकाबला संभव है?

पिछले वर्षों में डब्ल्यूएचओ ने सात देशों को मलेरिया से मुक्त घोषित किया है। इसका मतलब यह है कि इन देशों में लगातार तीन वर्षों तक मलेरिया की कोई भी घटना नहीं हुई थी। संयुक्त अरब अमीरात ने 2007 में, मोरक्को और तुर्कमेनिस्तान में 2010 में, आर्मेनिया में 2011 में, मालदीव में 2015 में और किर्गिस्तान और श्रीलंका में 2016 में बीमारी का सफाया कर दिया था। बेशक भारत की आबादी भूगोल और विशाल क्षेत्र दूसरे देशों की अपेक्षा इस कार्य को काफी चुनौतीपूर्ण बनाते हैं, लेकिन यह निश्चित रूप से असंभव नहीं है। रोग का इलाज करने की अपेक्षा मलेरिया की रोकथाम करना अधिक कठिन है,  इसलिए सबसे बड़ा योगदान भारत को खुद के लोगों से ही आना चाहिए। पानी को स्थिर न रखकर, कूड़े को कूड़ेदान में डालकर, मच्छरों की नस्लों को समाप्त करने का मूल मंत्र है। मलेरिया से निपटने के लिए दवाएं अब देश के हर हिस्से में बहुत आसानी से उपलब्ध हैं। सरकारी अस्पतालों और चिकित्सालयों पर जरूरतमंदों को मलेरिया की दवायें मुफ्त में प्रदान करते हैं। हालांकि मलेरिया के पूर्ण उन्मूलन के लिए एक अत्यधिक प्रभावी टीके की आवश्यकता होगी। डब्ल्यूएचओ ने केन्या, घाना और मलावी में एक नव विकसित मलेरिया के टीके का परीक्षण किया है। भारत डब्ल्यूएचओ के साथ मिलकर काम कर सकता है और भविष्य में होने वाले परीक्षणों का हिस्सा बन सकता है, अगर मलेरिया मुक्त होना है तो वास्तव में यह करना आवश्यक है। आज विश्व मलेरिया दिवस है। आओ इस दिन को विशाल प्रगति और प्रयासों के रूप में यादगार बनाएं, जो इस बीमारी से अपने देश को छुटकारा दिलाने के लिए हमें करना हैं।

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