अजमेर में यात्रा करने के स्थान

अजमेर के पर्यटन स्थलों में ज्यादातर तीर्थ स्थल हैं। अजमेर हिंदू और मुस्लिम दोनों का ही लोकप्रिय तीर्थस्थल है। यहां 13 वीं सदी में बनी सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है, जो हिंदू और मुस्लिम दोनों की आस्था का केंद्र है। अजमेर से 11 किलोमीटर दूर स्थित भगवान ब्रम्हा के निवास पुष्कर में जाने के लिए भी अजमेर ही बेस है। इसके पश्चिम में एक मंदिर और सुंदर झील है।

अजमेर में देखने के लिए

ख्वाजा साहब की दरगाह
ख्वाजा साहब या ख्वाजा शरीफ की दरगाह एक बंजर पहाड़ी के तले है। दक्षिण एशिया के मुसलमानों के लिए मक्का और मदीना के बाद इस दरगाह का स्थान है। यह कहा जाता है कि अकबर साल में एक बार आगरा से यहां दरगाह तक आते थे। संगमरमर की गुंबद वाला संत का मकबरा दूसरे आंगन के बीच में है और यह चांदी के प्लेटफार्म से घिरा है। इस आंगन में एक दूसरी मस्जिद भी है जिसे शाहजहां ने बनवाया था। इस पवित्र स्थान में यह मस्जिद दरगाह में मौजूद सभी निर्माणों में सबसे सुंदर है।

अढाई दिन का झोपड़ा
अढाई दिन का झोपड़ा एक शानदार संरचना है जो इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का मास्टरपीस है और शहर के बाहरी इलाके में दरगार के आगे स्थित है। माना जाता है कि इसे बनाने में अढाई दिन का समय लगा था। यह मूल रुप से एक संस्कृत काॅलेज था जो मंदिर के अंदर बना था। 1193 ईस्वी में मोहम्मद गौरी ने अजमेर को फतह किया और खंबों वाले हाॅल के सामने सात दीवारें बनाकर इस भवन को मस्जिद में बदल दिया। यह सब अढाई दिन में पूरा हो गया इसलिए इसका यह नाम पड़ा।

नसिया मंदिर
अजमेर में नसिया मंदिर नाम का 1865 में बना लाल रंग का जैन मंदिर भी है। इस दो मंजिला भवन में लकड़ी की गिल्ट पर जैन पौराणिक कथाओं की छवियां और पुरानी जैन अवधारणाओं का वर्णन है।

अजमेर में झीलें
अजमेर में कई झीलें हैं, जैसे 1135-1150 ईसवी में लूनी बांध से बनी अना सागर झील। यह कृत्रिम झील पहाडि़यों से घिरी है और इसके किनारे एक सुंदर बाग है जिसका नाम दौलत बाग है। यह सारे पहलू मिलकर इसे सुबह और शाम की सैर के लिए एकदम सही जगह बनाते हैं। शहर से 5 किलोमीटर दूर और अना सागर झील से 3 किलोमीटर उपर फोयसागर एक घाटी है।

अजमेर में किले
अकाल राहत कार्यक्रम के दौरान बना और इसके निर्माण के बाद इसके इंजीनियर के नाम पर इसका नाम रखा गया, इसकी सुंदर झील पहाड़ से देखने पर बहुत खूबसूरत नज़ारा देती है। अजमेर का तारागढ़ किला अढाई दिन का झोपड़ा से डेढ़ घंटे की सीधी चढ़ाई पर एक पहाड़ी पर है। यहां से आपको शहर का बहुत शानदार नज़ारा मिलता है।

अजमेर में संग्रहालय
मुगल काल में यह किला सैन्य गतिविधियों की एक जगह थी। अकबर ने इसे 1570 में बनवाया था, बाद में यह ब्रिटिश अस्पताल के तौर पर इस्तेमाल होने लगा। लाल बलुआ पत्थरों से बना अकबर का यह शाही महल आज के दौर में एक संग्रहालय में बदल चुका है और इसमें मुगल और राजपूत शस्त्रागार का शानदार संग्रह है। मुख्य डाक घर से बहुत करीब इस संग्रहालय में इस क्षेत्र की 8वीं सदी की कुछ बहुत ही उत्कृष्ट मूर्तियां हैं, साथ ही इसमें पुराने हथियार, लघु चित्र, प्राचीन शिलालेख और पत्थर की मूर्तियां शामिल हैं।

अजमेर के पास पर्यटन स्थल
अजमेर से पड़ोस के शहर पुष्कर में हर साल होने वाले पुष्कर मेले को देखने भी जाया जा सकता है। कार्तिक के महीने में लगने वाले पुष्कर मेले में पुष्कर शहर बहुत ही रंगीन और हलचल भरा हो जाता है। हिंदू तीर्थयात्री कार्तिक पूर्णिमा पर पुष्कर की झील में पवित्र डुबकी लगाने आते हैं। इस मेले में लगने वाला उंट मेला भी बहुत मशहूर है, इसमें उंटों का व्यापार होता है। यहां उंटों को खरीदा, बेचा, सजाया जाता है और रेत के टीलों पर उनकी परेड होती है जो एक देखने लायक नज़ारा है। यहां होने वाली उंट, घोड़े और गधे की दौड़ देखने बड़ी तादाद में लोग आते हैं। पुष्कर मेले में राज्य के कई हिस्सों के गांवों से लोग आते हैं जो अपने पारंपरिक सामान के प्रदर्शन के अलावा यहां की शामें भी गीत और संगीत से रंगीन करते हैं।

पुष्कर में करीब 400 मंदिर हैं और यह एक आध्यात्मिक पर्यटन स्थल के तौर पर मशहूर है। यहां सबसे मशहूर जगत पिता श्री ब्रम्हा मंदिर है। माना जाता है कि भगवान ब्रम्हा को समर्पित यह दुनिया का एकमात्र मंदिर है। इसके अलावा पुष्कर झील की ओर मुंह वाला एक सावित्री मंदिर, वराह मंदिर, महादेव मंदिर और रामवैकुंठ मंदिर हैं। यहां पवित्र पुष्कर झील पर कई घाट हैं जहां का पानी जीवन भर के पाप धोने के लिए प्रसिद्ध है।

अजमेर के आसपास की प्रसिद्ध जगहों में मांगल्यवास है। यह अजमेर से 26 किलोमीटर दूर 800 साल पुराने दो दुर्लभ प्रजाति के पेड़ों के लिए मशहूर है जिन्हें ‘कल्प-वृक्ष’ कहा जाता है। वैसे तो लोग यहां पूरे साल आते हैं लेकिन श्रावण अमावस्या पर हजारों की तादाद में लोग इनकी पूजा करने आते हैं। अजमेर से 54 किलोमीटर दूर स्थित ब्यावर, होली के अगले दिन निकलने वाले बादशाही जुलूस के लिए मशहूर है। इसमें बड़ी संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं और एक दूसरे पर गुलाल फेंकते हैं। अजमेर से 27 किलोमीटर की दूरी पर किशनगढ़ है। यहां 18 वीं सदी के दौरान लघु चित्रों का बेहतरीन स्कूल था। अजमेर से 80 किलोमीटर दूर बडनोर है जो 500 साल पुराने भव्य किले के लिए जाना जाता है। अजमेर से 90 किलोमीटर दूर राजस्थान का छोटा सा गांव पचेश्वर अजमेर और जयपुर के बीच यात्रा करने वालों के लिए रास्ते का सबसे बढि़या ठहराव है। पचेश्वर की झील में सर्दियों में हजारों की तादाद में प्रवासी पक्षी आते हैं और यह नज़ारा सैलानियों को बहुत भाता है।

अंतिम संशोधन : दिसंबर 30, 2014