भरतपुर पक्षी अभयारण्य

भरतपुर पक्षी अभयारण्य के बारे में
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान जो पहले भरतपुर पक्षी अभयारण्य के नाम से जाना जाता था, भारत के राजस्थान राज्य के भरतपुर क्षेत्र में है। यह पक्षी अभयारण्य 230 से ज्यादा प्रजाति के हजारों पक्षियों के लिए एक घर है, वो भी खासतौर पर गर्मियों के मौसम में।

इस पार्क को केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान के तौर पर भी जाना जाता है और बड़ी तादाद में पक्षी विज्ञानी सर्दियों के मौसम में इस ओर आकर्षित होते हैं। एक बहुत बड़ा पर्यटन आकर्षण होने के साथ ही यह जगह यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल भी घोषित की गई है। सन् 1971 में इस पार्क को संरक्षित पार्क घोषित किया गया था। यह एक वेटलैंड है जिसे भरतपुर क्षेत्र को अक्सर आने वाली बाढ़ से बचाने के लिए बनाया गया था। पहले इस जगह का इस्तेमाल जलपक्षी के शिकार के लिए होता था और अब यह गांवों के मवेशियों के लिए चारागाह ज़मीन के तौर पर इस्तेमाल होता है। स्थानीय तौर पर इसे घाना कहा जाता है और 28 किलोमीटर वाले इस पार्क में वेटलैंड, सूखी घास के जंगल, जंगल और दलदल हैं। इस पार्क के विभिन्न पशु पक्षियों में 230 किस्मों के पक्षी, 50 प्रजाति की मछली, सात प्रजाति के उभयचर, 13 किस्मों के सांप, सात प्रजाति के कछुए, पांच प्रजाति की छिपकली और अन्य हैं। इसके अलावा 379 किस्मों के फूल केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में मिलते हैं। सर्दियों में हजारों प्रवासी जलपक्षी यहां प्रजनन और थोड़े दिन ठहरने के लिए आते हैं।

इतिहास
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान 250 साल पहले अस्तित्व में आया और इसका नाम पास ही के केवलादेव मंदिर के नाम पर पड़ा। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। सन् 1726 से 1763 तक महाराजा सूरज मल भरतपुर के राजा थे। उन्होंने इस इलाके की दो नदियों, बाणगंगा और गंभीर नदी के संगम पर अजन बांध बनवाया था। इसके कारण यह क्षेत्र हमेशा डूबा रहता था। पारंपरिक तौर पर भरतपुर के महाराजा इस पार्क का इस्तेमाल शिकारगाह के तौर पर और ब्रिटिश वायसराय के सम्मान में सालाना बत्तख शिकार के आयोजन के लिए इस्तेमाल करते थे। यह भरतपुर के महाराजाओं का निजी बत्तख शिकारगाह ही रहा था। 13 मार्च 1976 को इस क्षेत्र को पक्षी अभयारण्य के तौर पर घोषित किया गया। 10 मार्च 1982 को इस जगह को एक पक्षी अभयारण्य के रुप में स्थापित किया गया। सन् 1985 में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को विश्व विरासत कन्वेंशन के तहत विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया। यह संरक्षित वन अब राजस्थान वन अधिनियम 1953 के तहत राजस्थान सरकार की संपत्ति है। सन् 1982 में यहां गांव के मवेशी को चराने पर रोक लगा दी गई थी जिससे सरकार और स्थानीय किसानों के बीच संघर्ष भी हुआ।

स्थिति
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पूर्वी राजस्थान में भरतपुर के दक्षिण-पूर्व में 2 किलोमीटर पर है। यह आगरा से 50 किलोमीटर दूर पश्चिम की तरफ है।

यात्रा करने का सबसे उत्तम समय
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पूरे साल खुला रहता है। अगस्त से नवंबर में यहां के पक्षियों का प्रजनन और अक्टूबर से फरवरी तक प्रवासी पक्षियों का प्रजनन देखा जा सकता है। बाकी के महीने लगभग सूखे और पक्षी विहीन होते हैं।

खुलने का समय
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पूरे साल सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क
भारतीय नागरिकों के लिए प्रवेश शुल्क 25 रुपये और विदेशी नागरिकों के लिए 200 रुपये है। गाडि़यों को शांति कुटीर तक जाने की इजाजत है जो कि पार्क के 1.7 किलोमीटर अंदर है। हर गाड़ी का शुल्क 50 रुपये है। वीडियो कैमरा का शुल्क 200 रुपये है।

ठहरने के लिए जगह
भरतपुर फाॅरेस्ट लाॅज जिसे शांति कुटीर भी कहा जाता है, इस संरक्षित वन में ठहरने के लिए एकमात्र जगह है। यह एक सरकारी संपत्ति है जिसका संचालन आईटीडीसी करता है। जंगल में बनी इस लाॅज में मेहमानों के लिए 16 कमरे हैं। ठहरने के लिए पास में स्थित डाक बंगला और सर्किट हाउस भी अच्छा विकल्प है। भरतपुर में हेरिटेज होटल में बदल चुकी हवेलियां, महल और अन्य जगहों में भी ठहरा जा सकता है। यहां तीन सितारा होटल भी उपलब्ध हैं।

कैसे पहुंचें
जयपुर और दिल्ली, ये दो नजदीकी हवाई अड्डे हैं जो देश के अन्य हिस्सों से बहुत अच्छी तरह जुड़े हैं। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भरतपुर जंक्शन है। पैलेस आॅन व्हील लक्जरी रेल अपनी यात्रा में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को भी कवर करती है। भरतपुर सड़क के रास्ते भी अन्य शहरों से अच्छी तरह जुड़ा है। जयपुर, मथुरा, दिल्ली, अलवर और अन्य आसपास की जगहों से नियमित बसें मिलती हैं। जयपुर, आगरा और दिल्ली से निजी टैक्सी भी मिलती है।

अंतिम संशोधन : दिसंबर 30, 2014