ताज महल

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ताज महल सिर्फ एक मकबरा ही नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा है। इसे कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने 'अनंत काल के गाल पर आंसू' कहा था। यह भारतीय उपमहाद्वीप में मुगल साम्राज्य की वास्तु प्रतिभा की अभिव्यक्ति की उंचाई है। एक शोकसंतप्त राजा की उसकी रानी के लिए मोहब्बत की यह निशानी कई फोटोग्राफरों और कलाकारों के लिए प्रेरणा रही है जो ताज महल को रोशनी और छाया की विभिन्न बारीकियों के साथ अपनी कृति में कैद करना चाहते हैं। ताज महल लगातार दुनिया भर के लोगों को अपने इतिहास, अपनी डिजाइन और कभी ना खत्म होने वाली मोहब्बत के लिए आकर्षित करता है।

ताज महल के बारे में


ताज महल कई ढांचों का एकीकृत परिसर है जिसमें सफेद संगमरमर से बना मकबरा है, जहां मुगल बादशाह शाहजहां और उनकी तीसरी बेगम मुमताज महल की मज़ार (जो की अपने चौदहवें बच्चे के प्रसव के दौरान मर गयी थी। ) है। मुगल साम्राज्य ने भारतीय उपमहाद्वीप में कई मकबरे बनवाए लेकिन ताज महल उनमें सबसे ज्यादा बेहतरीन है। यह मकबरा एक उंचे आधार पर पूरी तरह से सफेद संगमरमर से बना है जिसमें चार मीनारें हैं, जो कि हर कोने पर स्थित हैं। मकबरे के दोनों ओर एक मस्जिद और एक गेस्ट हाउस है। ताज महल के सामने एक 'चारबाग' शैली का बाग है जिसमें बीच में एक पैदल रास्ता और फव्वारे हैं, इसके साथ ही देखने के लिए प्लेटफाॅर्म और दोनों ओर हरी खुली जगह और पेड़ हैं। इस परिसर में आने के लिए एक विशाल सजावटी दरवाजा है जिसमें कुरान के अभिलेख हैं, और हस्तलिपी लाइन है 'हे आत्मा, तू ईश्वर के पास विश्राम कर। ईश्वर के पास शांति के साथ रह और उसकी परम शांति तुझ पर बरसे।'

ताज महल का स्थान
ताज महल भारत के उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश में आगरा में स्थित है। यह यमुना नदी के किनारे स्थित है और इस तक आसानी से सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है।

ताज महल कैसे पहुंचें?
ताज महल भारत के उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश में आगरा में स्थित है। आगरा दिल्ली से लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित है और यदि यमुना एक्सप्रेसवे का इस्तेमाल करें तो 165 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां तक सड़क, हवाई और रेल सेवा द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से आगरा की यात्रा का समय लगभग तीन घंटे में पूरा होता है।

प्रदूषण के असर को कम करने के लिए गाडि़यों को ताज महल के ज्यादा नजदीक जाने की इजाजत नहीं है। कारों और बसों को ताज महल से कुछ दूरी पर बनी एक पार्किंग में खड़ा करवाया जाता है और वहां से प्रदूषण रहित बिजली की बसों के जरिए सैलानियों को ताज महल तक पहुंचाया जाता है।

आप दिल्ली से आगरा जाकर एक दिन में ही ताज महल देखकर आ सकते हैं। हालांकि अगर आप आगरा में और घूमना चाहें और आसपास के बाजार देखना चाहें तो रात भर रुकना एक अच्छा विचार है।

ताज महल की सैर के लिए सबसे अच्छा समय
ताज महल की सैर का सबसे अच्छा समय शरद, सर्दियां और अक्टूबर से फरवरी का वसंत का समय है। तेज गर्मी के कारण मई और जुलाई के महीनों से परहेज करना चाहिए। मानसून के बाद अक्टूबर से नवंबर के महीने में ताज महल को देखना एक सम्मोहित करने वाला एहसास है। मानसून के बाद पास में बहती यमुना में पानी बढ़ जाता है और बाग और हरे हो जाते हैं। यह दोनों बातें ताज महल देखने के अनुभव में चार चांद लगाती हैं।

ताज महल का समय
ताज महल दर्शकों के लिए शुक्रवार छोड़कर सभी कार्यदिवस पर सूर्योदय से सूर्यास्त यानि सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है। शुक्रवार को ताज महल परिसर में मस्जिद में दोपहर 12 से 2 बजे तक प्रार्थना होती है। इस समय पर सैलानियों को ताज महल परिसर में जाने की इजाजत नहीं है।

पूरे चांद की रात और उससे एक रात पहले और एक रात बाद तक ताज महल परिसर सैलानियों के लिए खुला रहता है, जिससे ताज को चांद की रोशनी में देखा जा सके। रमजान के महीने में और शुक्रवार को ताज महल को चांद की रोशनी में देखने की इजाज़त नहीं है।

ताज महल परिसर की यात्रा के दौरान यह याद रखें कि परिसर में सैलानियों को सुरक्षा कारणों से केवल कुछ ही सामान अपने साथ ले जाने की इजाजत है, जैसे: मोबाइल फोन, स्टिल कैमरा, छोटा वीडियो कैमरा, महिलाओं द्वारा इस्तेमाल करने वाले छोटे पर्स और पानी की पारदर्शी बोतलें।

ताज महल में प्रवेश शुल्क
ताज महल में भारतीय और विदेशी सैलानियों के लिए प्रवेश शुल्क अलग अलग हैं।

विदेशी सैलानियों के लिए: 750 रुपये

सार्क देशों के नागरिकों और बीआईएमएसटीईसी देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, मालदीव, म्यांमार, पाकिस्तान, श्रीलंका, थाईलैंड के लिए: 510 रुपये

भारतीयों के लिएः 20 रुपये

ताज महल के लिए टिकट भारत में किसी भी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल से खरीदे जा सकते हैं।

15 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं है चाहे वो भारतीय हों या विदेशी।

ताज महल के बारे अन्य ऐतिहासिक विचार
ताज महल के बारे अन्य ऐतिहासिक विचार भी जुड़े हैं और कुछ तो सदियों से अब तक इतनी बार दोहराए गए हैं कि वो इस खूबसूरत स्मारक के कथित इतिहास का हिस्सा बन गए हैं।

काले ताज का मिथक: एक मिथक यूरोपीय यात्री जीन बैप्टिस्ट से जुड़ा है जिसने सन् 1665 में आगरा की यात्रा की थी। उन्होंने दावा किया था कि शाहजहां ताज महल जैसा ही एक मकबरा काले संगमरमर से बनवाना चाहते थे। हालांकि अपने बेटे औरंगजैब द्वारा अपदस्थ किए जाने से वह अपना यह सपना पूरा नहीं कर पाए। इस सिद्धांत का कोई पुरातात्विक प्रमाण नहीं है। ताज महल परिसर में चांदनी बाग में मरम्मत के दौरान पुरातत्वविदों ने 2006 में एक वैकल्पिक वर्णन दिया, जिसमें साफ सरोवर शामिल था। सफेद संगमरमर के मकबरे की छाया रात में गहरी दिखती थी। यह गहरा प्रतिबिंब मकबरे के बिलकुल संतुलन में है, जिससे ताज महल से जुड़े इस काले मकबरे के मिथक को बल मिलता है।

शिल्पकारों और कारीगरों के अंगभंग से जुड़ा मिथक: आम जनधारणा के विपरीत ऐसा कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है जो इन कहानियों को सच साबित कर सके कि वास्तुविदों को अंधा कर दिया गया था, इसे बनाने वाले मजदूरों के हाथ कटवा दिए गए थे या दोबारा ऐसा अजूबा बनाने से रोकने के लिए वास्तुकारों को मकबरे की उंचाई से फेंक दिया गया था। एक अन्य मिथक के दावे के अनुसार सभी कारीगरों से इस अनुबंध पर हस्ताक्षर करवाए गए थे कि वो दोबारा ऐसा स्मारक नहीं बना सकें। हालांकि इस बात का भी कोई सबूत नहीं है।

ये मिथक कि ब्रिटिश इसे तोड़कर ताज के टुकड़े बेचना चाहते थे: इस किस्से के अनुसार गवर्नर जनरल आॅफ इंडिया लाॅर्ड विलियम बंेटींक ताज महल को तोड़कर उसके संगमरमर के टुकड़े बेचना चाहते थे। जीवनी लेखक जाॅन रोसेली ने इस किस्से का एक कारण यह बताया कि बेंटींक ने स्थानीय प्रशासन के लिए धन जुटाने के लिए आगरा किले के संगमरमर के कुछ टुकड़े बेचे थे।

एक हिंदू राजा द्वारा ताज महल बनवाने का किस्सा: ताज महल के इर्द गिर्द कई कहानियां घूमती हैं कि ताज महल मुगल स्मारक नहीं है बल्कि वह शाहजहां के समय से पहले भी मौजूद था। इस किस्से को लेकर कोई प्रमाण नहीं है। भारतीय सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट दोनों ही इस विचार से संबंधित याचिकाएं ठुकरा चुके हैं।

ताज महल का इतिहास


ताज महल का इतिहास दुनिया की सबसे महान प्रेम कहानियों में से एक है। यह सन् 1607 में शुरु हुई थी जब मुगल राजकुमार खुर्रम जिन्हें बाद में मुगल सम्राट शाहजहां के नाम से जाना गया, ने पहली बार खूबसूरत अर्जुमंद बानो बेगम को देखा। महारानी मेहरुन्निसा जिन्हें बाद में नूरजहां के नाम से जाना गया, अर्जुमंद उनकी भतीजी थी। जहांगीर के बेटे ने अर्जुमंद से निकाह करने की ख्वाहिश ज़ाहिर की और कुछ सालों के बाद बड़ी धूमधाम से उनकी शादी हुई।

खुर्रम यानि शाहजहां का संक्षिप्त इतिहास


खुर्रम 1592-1666 सम्राट जहांगीर के तीसरे बेटे थे और मारवाड़ के शाही परिवार की राजकुमारी मनमती से पैदा हुए थे। ऐसे समय में जब उनके माता पिता की तरह की शादी एक तरह से राज्य नीति होती थी और दो राजवंशों के बीच किसी समझौते का तय करने जैसा होता था, ऐसे में खुर्रम और अर्जुमंद की मोहब्बत की दास्तान बहुत अनूठी है। खुर्रम अपने दादा मुगल बादशाह अकबर के लाड़ले थे और अपने भाइयों के साथ वैसे ही बड़े हुए जैसे एक मुगल राजकुमार को होना चाहिए था। मुगल दरबार में हर ओर साजिशें थी और खुर्रम के सबसे बड़े भाई राजकुमार खुसरो ने सन् 1606 में अपने पिता जहांगीर के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को कुचल दिया गया और राजकुमार खुसरो को अंधा कर दिया गया। खुर्रम इस विद्रोह से दूर रहे और उनकी वफादारी के इनाम के तौर पर उन्हें 15 साल की उम्र में जहांगीर का वारिस घोषित किया गया। उसी साल उनकी मुलाकात और मोहब्बत अर्जुमंद से हुई जो तब सिर्फ 14 साल की थी।

मुमताज महल का संक्षिप्त इतिहास


अर्जुमंद बानो बेगम महारानी नूरजहां के बड़े भाई असफ खान की बेटी थी। वह एक रईस फारसी व्यक्ति मिर्ज़ा गियास बेग़ की पोती थी जो बाद में मुगल दरबार में खजांची और इतिमाद-उद-दौला बने। खुर्रम और अर्जुमंद की मुलाकात महल की चारदीवारों के बीच बने मीना बाज़ार में हुई थी। मीना बाज़ार में जहांगीर की रानियां और दरबार की अन्य अमीर औरतें उन सामानों का बेचती थीं जो दरबारियों की खरीद के लिए बनवाया जाता था।

अर्जुमंद भी ऐसी ही एक दुकान पर थी जहां उन्होंने हाथों से रंगे कुछ मिट्टी के बर्तन बेचने के लिए रखे थे। कहानी यह है कि खुर्रम इतने दीवाने हो गए थे कि उन्होंने सोने के एक सिक्के से उस दुकान का सारा सामान खरीद लिया था। उन दोंनों की उम्र कम होने के कारण सन् 1612 में निकाह से पहले पांच सालों के लिए उनकी सगाई की गई। निकाह के बाद अर्जुमंद को 'मुमताज महल बेगम' का खि़ताब दिया गया

महाराज और महारानी
उनकी शादी बहुत सुखद थी और खुर्रम को सन् 1628 में अपने पिता जहांगीर की मौत के बाद सिंहासन मिला और वो सम्राट शाहजहां हो गए। मुमताज महल से मिला साथ शाहजहां की ताकत का काम करता था। अपने शादीशुदा जीवन मेें उनके 14 बच्चे हुए जिनमें से सात जीवित रहे। मुमताज महल शाहजहां के साथ पूरे मुगल साम्राज्य का दौरा करतीं थीं, फिर चाहे वो राज्य की सीमा के पास लगे कैंप ही क्यों ना हों। अपने महलों से दूर रहने पर भी मुमताज महल शाहजहां को घर और परिवार का सुख देती थीं। ऐसे ही एक सैन्य अभियान में सन् 1631 में मुमताज महल ने चैदहवें बच्चे गौहरा बेगम को जन्म देते समय आखिरी सांस ली। गौहरा बेगम 75 साल की उम्र तक जीवित रही। उस समय के दरबार के रिकाॅर्ड अपनी खूबसूरत बेगम और जीवनसाथी के खोने पर शाहजहां के अपार ग़म का बयान करते हैं। यह कहा जाता है कि शाहजहां एक साल के लिए शोक में चले गए थे और उन्होंनें कभी दोबारा शादी नहीं की।

ऐसा कोई और मकबरा नहीं
मुमताज महल के शव को बुरहानपुर के एक बागीचे में दफनाया गया था, लेकिन बाद में उसे खोदकर बाहर निकाला गया और उसे सुनहरे कास्केट में आगरा ले जाया गया। उनके शव को अस्थाई तौर पर यमुना नदी के किनारे बने एक शाही बाग में दफनाया गया। शाहजहां ने बुरहानपुर का सैन्य अभियान पूरा किया और अपने खोए हुए प्यार की याद में एक मकबरे की कल्पना करने लगे। शाहजहां के शासनकाल को मुगल वास्तुकला का सुनहरा काल माना जाता है जिसमें उन्होंनें दिल्ली में लाल किला और जामा मस्जिद सहित शाहजहांनाबाद शहर बनाया और मोती मस्जिद आगरा में बनवाई। उन्होंने लाहौर के किले का विस्तार किया और कश्मीर के श्रीनगर में बाग बनवाए। उनकी वास्तुकला में बहुत रुचि थी और वह अपने पीछे एक विरासत छोड़कर जाना चाहते थे, जो सिर्फ मुगल साम्राज्य के विस्तार के तौर पर ही ना हो बल्कि वास्तुकला, कला और सौंदर्यशास्त्र के तौर पर भी हो। उनकी वास्तुकला की उपलब्धि का शिखर यह मकबरा है जिसके निर्माण में 22 साल लगे। यह 1632 से 1653 के समय में बना और ताज महल मुमताज महल के लिए शाहजहां की मोहब्बत का खास इज़हार था। ताज महल की मुख्य मंजिल के नीचे एक कमरे में उनकी सजी हुई कब्र पास पास बनी है। अब कभी ना जुदा होने वाला उनका यह साथ ताज महल का कभी ना भूल पाने वाला इतिहास है

ताज महल का महत्व
ताज महल का भारतीय उपमहाद्वीप में मुगल वास्तुकला के प्रतीक के तौर पर बड़ा महत्व है। इस मकबरे और इसके परिसर के आसपास के भवन मुगल इतिहास और मुगल वास्तुकला दोनों के सबक हैं। सुलेखों, जटिल नक्काशी, भवनों के सही अनुपात और निर्माण की सटीक ज्यामितीय के अध्ययन से कोई भी ना सिर्फ उस समय के शिल्प कौशल पर हैरान हो जाएगा, बल्कि इस कालातीत चमत्कार के पीछे की प्रेरणा पर भी। इतिहास के विद्वान, वास्तुकार, कपड़े और गहनों के डिजाइनर, चित्रकार और फोटोग्राफर सब को इस प्रेम के स्मारक और खूबसूरत आश्चर्य के ऐतिहासिक मकबरे से प्रेरणा मिली है।

ताज महल का महत्व सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप में मुगल वास्तुकला के प्रतीक के तौर पर ही नहीं है, बल्कि मुगल काल और हाल के दिनों के दूसरे स्मारकों की प्रेरणा के तौर पर भी है। ताज महल से प्रेरित कुछ अन्य इमारते हैं: महाराष्ट्र के औरंगाबाद में बीबी का मकबरा, बांग्लादेश में ढाका के पास सोनारगांव में सन् 2008 में बनी ताज महल की प्रतिकृति, विस्काॅन्सिन में त्रिपोली मंदिर जो कि कोई धार्मिक इमारत नहीं है बल्कि मूरों की पुनरुद्धार वास्तुकला का उदाहरण है और अमेरिका के अटलांटा शहर में बना ट्रम्प ताज महल जो कि एक कैसीनो है।

ताज महल के तथ्य


निर्माण: ताज महल का निर्माण 23 सालों में हुआ। इसका निर्माण सन् 1631 में मुमताज महल की मौत के बाद सन् 1632 में शुरु हुआ और सन् 1653 के आसपास पूरा हुआ।

समय सीमा: मुख्य मकबरे का निर्माण सन् 1648 में पूरा हुआ और आसपास की इमारतों और बागों का अगले पांच सालों में।

कारीगरों की संख्या: बीस हजार शिल्पकारों और कारीगरों ने इस इमारत का निर्माण किया, बाग बागीचों का निर्माण और बारीक कारीगरी और जड़ाउ काम किया।

वास्तुकार: इसके मुख्य वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी या उस्ताद ईसा थे। इस इमारत पर काम करने वाले दूसरे कारीगर थे: ईरान में शिराज के अमानत खान जो मुख्य सुलेखक थे, दिल्ली के चिरंजीलाल जो कीमती पत्थरों के विशेषज्ञ थे, वे मुख्य सजावटी मूर्तिकार थे। मुहम्मद हनीफ राजगरों के मुख्य पर्यवेक्षक और अब्दुल करीम मैमूर खान और मकरामत खान निर्माण स्थल पर दैनिक निर्माण के आर्थिक प्रबंध देखते थे।

हाथियों की भूमिका: निर्माण स्थल पर 1,000 से ज्यादा हाथियों को आवश्यक सामग्री, संगमरमर के ब्लाॅक और अन्य सामान जो किसी भी निर्माण स्थल में काम आते हैं, ढोने के काम में लगाया गया।

निर्माण में प्रयुक्त सामग्री का स्रोत: लगभग 28 विभिन्न प्रकार के अर्द्ध कीमती और कीमती पत्थरों का इस्तेमाल कब्र के अंदर जड़ाउ काम में किया गया। इन पत्थरों में अफगानिस्तान से लापीस लजुली, श्रीलंका से नीलम, तिब्बत से फि़रोज़ा, जेड और क्रिस्टल चीन से, अरब से कार्नेलियन और पंजाब से जैस्पर शामिल हैं। राजस्थान के मकराना से सफेद संगमरमर लाया गया।

निर्माण की कुल लागत: विद्वानों के अनुसार ताज महल के निर्माण की कुल लागत उस समय के हिसाब से लगभग 32 मिलियन रुपये थी।

शाहजहां को कैद: शाहजहां को उनके बेेटे औरंगजेब ने ताज महल का निर्माण पूरा होने के बाद सन् 1654 में गद्दी से हटा दिया था। शाहजहां ने सन् 1666 में मौत होने तक अपनी जि़ंदगी के आखिरी दस साल आगरा किले में एक कैदी के तौर पर गुज़ारे। उन्होंने अपने दिन यमुना नदी के पार अपने खोए प्यार की याद में बनवाई इमारत देखकर गुजारे। जब सन् 1666 में शाहजहां की मौत हुई औरंगजे़ब ने उन्हें उनकी मोहब्बत मुमताज महल की कब्र के बगल में दफना दिया ताकि वो फिर कभी ना जुदा हो सकें।

ताज महल की वास्तुकला
ताज महल को मुगल वास्तुकला की सौंदर्य उपलब्धि का शिखर माना जाता है। मुगलों ने पहले भी भारत में कई भव्य स्मारक बनवाए जिसमें दिल्ली और आगरा में कई शानदार किले हैं, फतेहपुर सीकरी शहर, विशाल जामा मस्जिद और सिकंदरा में अकबर का मकबरा। ताज महल मुगल वास्तुकला की समृद्ध विरासत से प्रेरित था और उनके पूर्वजों के मकबरे, जैसे समरकंद में गुर-ए-अमीर नाम से तैमूर लंग का मकबरा, दिल्ली में हुमायूं का विशाल मकबरा और आगरा में मिजऱ्ा गियास ब़ेग का मकबरा, जिसे संगमरमर के बारीक नक्काशीदार काम के कारण बेबी ताज भी कहा जाता है आदि थे। हालांकि ताज महल बनवाने के दौरान शाहजहां ने मुगल शैली में वास्तुकला की अभिव्यक्ति और विकसित की और उसे बहुत उपर ले गए।

ताज महल की डिजाइन में जो एक बड़ा बदलाव शाहजहां लाए थे वह था सफेद संगमरमर का बहुत ज्यादा इस्तेमाल। इससे पहले बने मकबरे, जैसे हुमायूं का मकबरा ज्यादातर लाल पत्थरों के ही बनते थे। संगमरमर के इस्तेमाल और कीमती और अर्द्ध कीमती पत्थरोें से किया हुआ नक्काशी का काम एक नया विचार था और उस से ही यह सिर्फ मकबरा ना होकर कला की मिसाल हो गया।

ताज महल परिसर
कई इमारतें हैं जिनसे मिलकर ताज महल परिसर बनता है और इसमें प्रभावशाली सजावटी प्रवेशद्वार भी हैं। इन दरवाज़ों पर कुरान के शिलालेख हैं। इसमें विशाल बाग है, जिसमें बीच में पैदल पथ है और देखने के लिए प्लेटफाॅर्म है, साथ में फव्वारे और पानी की नहरें हैं। यहां एक उंचा आधार है जिस पर यह सफेद संगमरमर का मकबरा स्थित है। इसके चार कोनों पर मीनारें हैं। इस मकबरे के एक ओर गेस्ट हाउस है और दूसरी ओर मस्जिद है जो कि ताज महल परिसर सममित व्यवस्था में हैं। यमुना नदी के किनारे सुंदर बागों के खूबसूरत नज़ारों और हरे लाॅन के बीच ताज महल एक सफेद रत्न की तरह दिखता है। नीले आसमान के नीचे पानी पर आता इसका प्रतिबिंब बहुत मनभावन लगता है।

मुख्य मकबरा
मुख्य मकबरा एक सममित वर्ग इमारत है जिसे एक उंचे आधार पर बनाया गया है। इसमें उंचे दरवाजे से प्रवेश किया जा सकता है और इसकी छत एक बड़े प्याज के आकार की गुंबद है जिस पर सोने के पानी चढ़ा कलश है। इस मकबरे की बाहरी दीवारें 55 मीटर उंची हैं और उनके कोने तिरछे हैं, जिससे यह इमारत एक असमान अष्टकोण लगती है। हर उंची दीवार पर एक ईवान के चारों ओर एक मेहराबदार छत है। इस मेहराब के दोनों ओर धनुषाकार बालकनी के रुप के आकार में पिश्ताक है। यह संरचना अष्टकोण के तिरछे कोनों पर भी दिखती है जो पूरी संरचना के साथ समरुप है।

ताज महल के गुंबद
ताज महल की गुंबद बहुत प्रभावशाली है जो एक बड़े प्याज के आकार की है और 35 मीटर उंची है। इसे सात मीटर उंचे सिलेंडर के आकार के आधार पर स्थित किया गया है। इस इमारत के चारों कोनों पर छोटी छतरियां हैं जिनका गुंबद जैसा आकार मुख्य गुंबद की तरह है। मुख्य गुंबद का शीर्ष और छोटी छतरियां कमल के आकार की हैं जिन पर कलश है, जो कि मूल रुप से सोना था पर बाद में शानदार कांस्य पाॅलिश की गई जिससे इसकी खूबसूरती सफेद संगमरमर की संरचना के साथ और बढ़े। कलश की नोंक पर एक आधा चांद है जिसके सिरे उपर की ओर इशारा करते हैं। कलश की नोंक और आधे चांद के सिरे एक त्रिशूल जैसे दिखते हैं। यह और कमल की आकृति मुगल वास्तुकला की शैली में भारतीय और फारसी नमूना दिखाते हैं।

छतरियों के आधार मकबरे के मुख्य हाॅल की ओर खुलते हैं जिससे हर कोने से रोशनी अंदर आ सके।

ताज महल का मुख्य हाॅल
मुख्य हाॅल में मुमताज महल और शाहजहां की सजावट वाली लेकिन बनावटी कब्रें हैं। इस जगह दुनिया में सबसे अच्छा और कभी ना देखा गया संगमरमर की जाली का बेहतरीन काम है जिस पर नक्काशी और पर्चिनकारी जड़ाउ का काम है। मुगल सम्राट और महारानी की असली कब्रें मुख्य हाॅल से नीचे हैं और सिर्फ सीढि़यों से उतरकर निचले चेंबर में जाकर ही देखी जा सकती हैं। ऐसा असली कब्रों को लूट और दूषित होने से बचाने के लिए किया गया है।

मीनारें
मुख्य मकबरे की इमारत के चारों कोनों में हर कोने पर एक मीनार है जो कि मकबरे के आधार के बाहरी छोर पर हैं। यह मीनारें मकबरे के झुके हुए कोनों की सीध में हैं। इन मीनारों की उंचाई 40 मीटर से ज्यादा है और इन्हें इस तरह बनाया गया है कि यदि यह गिरें भी तो मकबरे से दूर गिरें और मकबरे को कोई नुकसान ना पहुंचे। हर मीनार में तीन बालकनी हैं जिसमें से दो बराबर और तीसरी इनसे उपर है जो छतरी से ढंकी है, जिस पर सोने का पानी चढ़ा कलश और कमल की आकृति है।

ताज महल के सजावटी तत्व
किसी भी मानव आकृति को चित्रित करना धार्मिक तौर पर मना होने पर शिल्पकारों और कारीगरों ने मकबरे की दीवारों को सममित, ज्यामितीय डिजाइन, फूलों की आकृति और कुरान से सुलेख शिलालेख से सजाया है। मकबरे पर काम कर चुके एक सुलेखक अब्द उल हक को उनके शानदार काम के लिए सम्मानित करते हुए शाहजहां ने उन्हें अमानत खान का खिताब दिया था। उन्होंने मकबरे पर अपना निशान गुंबद के भीतरी ओर के आधार पर एक पंक्ति लिखकर छोड़ा कि, 'मामूली आदमी द्वारा लिखा गया, अमानत खान शिराज़ी'। ताज महल में देखे गए पर्चिनकारी या जड़ाउ संगमरमर के काम में बहुत ही खास शिल्प कौशल की ज़रुरत होती है। सफेद और पाॅलिश किए संगमरमर को काटकर फूल और ज्यामितीय डिजाइनें बनाईं गईं हैं और उसे कीमती और अर्द्ध कीमती पत्थरों से जटिल आकार में मकबरे की भीतरी दीवारों पर जड़ा गया है। जड़ाउ काम के लिए इस्तेमाल पत्थरों में जेड, जैस्पर और काले और पीले रंग के संगमरमर शामिल हैं।

ताज महल में असली कब्रें
ताज महल के मुख्य हाॅल में स्थित बनावटी कब्रों के चारों ओर संगमरमर की जाली का बेहतरीन काम है जिस पर नक्काशी और पर्चिनकारी जड़ाउ का काम है। दर्शकों के लिए कब्रों को एक अष्टकोणीय आकार की जालियों से देखने की व्यवस्था है। असली कब्रें मुख्य हाॅल से नीचे हैं और सिर्फ सीढि़यों से उतरकर निचले चेंबर में जाकर ही देखी जा सकती हैं। मुमताज महल के शव वाला संगमरमर का ताबूत निचले चेंबर में संगमरमर के एक आधार पर है। इस ताबूत पर उनका नाम और उनकी तारीफ लिखी हुई है। उनकी मज़ार पर नक्काशी का काम और लेखनी का काम है जो कि शाही मुगल महिलाओं के ताबूत पर काफी देखा जाता है। शाहजहां की कब्र, जो कि आकार में बड़ी है और समान तरह के नक्काशी के काम से सजी है, केंद्र से थोड़ा हटकर है। उनके ताबूत पर उनका नाम और उनकी मौत की तारीख लिखी है। उनकी मज़ार पर एक कलम बाॅक्स की नक्काशी है जो कि मुगल रईसों और सम्राटों की कब्रों पर बहुत देखी जाती है।

ताज महल में चारबाग बागीचा
मुगलों को बाग बागीचों का बहुत शौक था और उन्होंने अपने महलों और शहर में खाली जगहों पर कई सुंदर बाग और हरी खाली जगहें बनाईं। उनके मकबरे ज्यादातर चारबाग बगीचे के बीच होते थे। ताज महल इस लिहाज़ से थोड़ा अलग है क्योंकि यह मकबरा एक 300 मीटर लंबे बाग के एक छोर पर स्थित है। हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यमुना नदी से थोड़ी दूरी पर हाल ही में की गई मूनलाइट बाग की खोज से पता चला है कि ताज महल और उससे जुड़ी संरचनाएं नदी के सिर्फ एक ओर तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि यह नदी भी ताज महल परिसर की डिजाइन का एक अहम हिस्सा थी। मुख्य रास्ते पर फव्वारे और पानी की नहरों के अलावा आधे रास्ते पर एक सरोवर भी है जिसमें ताज महल का प्रतिबिंब देखा जा सकता है। इन बागों की डिजाइन कश्मीर में सम्राट जहांगीर द्वारा बनवाए शालीमार बाग से मिलती जुलती है। अपने शासन काल में अंग्रेजों ने ताज महल के आसपास के बागों में कुछ बदलाव किए, लेकिन मूल भव्यता अब भी बनी हुई है।

ताजमहल के प्रवेशद्वार, बगीचे, प्याज के आकार वाले प्रभावशाली गुंबद, चारों ओर मीनारों वाले मकबरे और सफेद संगमरमर की खूबसूरती सब मिलकर एक खास और नम्र अनुभव देते हैं। एक महान प्रेम कहानी जिसने एक सम्राट को विश्व का आश्चर्य बनाने की प्रेरणा दी। निर्माण के हर कदम पर अविश्वसनीय शिल्प कौशल और इस मकबरे की सजावट, इंसान के साहस और पूर्णता को पाने की चाह का सबूत है। अपनी प्यारी मुमताज महल के लिए शाहजहां ने ना सिर्फ ये मकबरा बनाया बल्कि पूरी दुनिया मे