औरंगाबाद शहर का नक्शा

औरंगाबाद शहर का नक्शा

औरंगाबाद शहर का नक्शा
*ऊपर दिया हुआ जोधपुर शहर का नक्शा राष्ट्रीय राजमार्ग, सड़क, रेलवे तथा शहर के प्रमुख स्थानों को दर्शाता है|

अजंता गुफाएं:सदियों पुरानी चट्टानों को तराशकर बनाई गई स्मारक

 

औरंगाबाद शहर का नक्शा

 

वर्ष 1610 में, मलिक अंबर द्वारा स्थापित किया गया औरंगाबाद पहले "खाड़की" के रूप में जाना जाता था और बाद इसका नाम फतेहपुर कर दिया गया। इस शहर ने अपने प्राचीन नाम (खिड़की) के वास्तविक अर्थ को सार्थक कर दिया, क्योंकि यहाँ से मुगलदक्खन को एक खिड़की के रूप में प्रयोग करते थे।

 

इसके बाद जब औरंगजेब ने दक्खन साम्राज्य पर कब्जा कर लिया और शिवाजी की तरफ से मराठों की बढ़ती शक्ति को रोकने के लिए इसे अपनी राजधानी बनाया तभी वर्ष 1953 में इस शहर का नाम बदलकर औरंगाबाद कर दिया गया था। औरंगाबाद को अब एक आधुनिक शहर के रूप में विकसित किया जा रहा है, जहाँ पर्यटकों को लुभाने के लिए सभी प्रकार की आरामदायक और आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।

 

औरंगाबाद एक शहर के साथ-साथ महाराष्ट्र प्रांत का एक जिला भी है। इसका इतिहास 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व की बौद्धिक प्रभावों के साथ काफी पुराना माना जाता है।

 

औरंगाबाद अपने ऐतिहासिक स्मारकों और गुफाओं के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध है जिससे यह अपने दूरस्थ और निकटस्थ दोनों प्रकार के पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है।

 

औरंगाबाद का सबसे प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षण बीबी का मकबरा माना जाता है, जिसे औरंगजेब की पत्नी बेगम रबिया दुरानी की स्मृति में बनावाया गया था।

 

इसके अतरिक्त यहाँ, औरंगाबाद गुफाएं, पनचक्की, हिमरू फैक्टरी, दारवाजे, दौलताबाद किला, खुल्दाबाद, शिरडी, ग्रिशनेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, पैठण, अजंता और एलोरा गुफाएं एवं मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक संग्रहालय जैसे कई अन्य प्रमुख पर्यटक आकर्षण भी हैं।

 

प्रमुख आकर्षण

 

बीबी-का-मकबरा-

 

औरंगाबाद से 5 कि.मी. दूरी पर बेगम रबिया दुरानी की याद में उनके बेटे शहशांह आज़म शाह द्वारा निर्मित करवाया गया, बीबी-का-मकबरा पूरी तरह से ताजमहल का प्रतिरूप है। यह फारसी वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

 

औरंगाबाद गुफाएं-

 

बीबी-का-मकबरा से कुछ किलोमीटर दूर चलने पर आप औरंगाबाद की गुफाएं तक पहुँच जाएंगे, जिन्हें चट्टानों को काटकर बनाया गया था। इन गुफाओं की खुदाई 2 से 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के मध्यकाल की झलक मिलती है। यहाँ स्थित सभी 12 गुफाएं सिंहाचल पर्वतमाला के पहाड़ी किनारे में निर्मित हैं, जिन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त है।

 

अजंता और एलोरा गुफाएं-

 

औरंगाबाद, एलोरा और अजंता की गुफाओं के लिए प्रमुख रूप से प्रसिद्ध है, जिन में एलोरा की 34 और अजंता की 29 गुफाएं शामिल हैं। जो अब यूनेस्को की विश्व विरासत का एक अभिन्न हिस्सा बन गई हैं। आमतौर पर यहाँ मार्च के महीने में शास्त्रीय नृत्य और संगीत उत्सवों का आयोजन भी किया जाता है।

 

कैलाश मंदिर- 

 

दुनिया की सबसे बड़ी अखंड मूर्तिकला वाला कैलाश मंदिर एलोरा की गुफा में स्थित है। इस मंदिर की कारीगरी इतनी शानदार है कि लोग मानते है कि यह देवताओं के द्वारा बनाया गया है, क्योंकि इस विस्मयकारी प्रेरणादायक शानदार संरचना के निर्माण में प्रयोग किये गये कन्स्ट्रक्टर और कारीगरों के बारे में लगभग कुछ भी पता नहीं है। इसके निर्माण की न तो कोई तिथियां स्पष्ट हैं और न ही कोई भी निशान या शिलालेख हैं। इसमें कोई भी त्रुटिनही है और सभी तरह से शानदार है। "इसकी छत दुनिया की सबसे बड़ी ब्रैकट रॉक छत है।" जटिल रूप से नक्काशी किये गये दृश्य इसके खंभे, रामायण, महाभारत और भगवान कृष्ण के जीवन को दर्शाते हैं।

 

पनचक्की-</>

 

मुगल काल से पहले निर्मित, विशाल पनचक्की को अनाज पीसने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। यह 17 वीं शताब्दी की अभियांत्रिकी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ वर्षा के पानी से उत्पन्न ऊर्जा को पत्थरों के बड़े-बड़े टुकडों के जरिये आटा पीसने के लिए उपयोग किया जाता है।

 

हिमरू फैक्ट्री-

 

हिमरू बुनाई की पारंपरिक शैली को औरंगाबाद के जाफर गेट पर स्थित हिमरू कारखाने में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यहाँ सिल्क और घर में उगने वाली कपास को रेशमी धागों के रूप में प्रयोग किया जाता है। हिमरू बुनाई एक फारसी कला है। इसमें कपड़ों के निर्माण में आकर्षण लाने के लिए सोने और चांदी के महीन तारों का भी उपयोग किया जाता था। आप इस कारखाने से शॉल और साड़ी भी खरीद सकते हैं।

 

हाथ से बुनी हुई पैठानी सिल्क साड़ियां-

 

औरंगाबाद जिले के पैठण शहर में हाथ से निर्मित सुन्दर रेशम की साड़ियां के 'पल्लू' के किनारों पर सोने के तारों से डिजाइन किया जता है जिन्हें अच्छे रेशम के साथ बुनी हुई भारत की सबसे अमीर साड़ियों का दर्जा दिया गया है।

 

बिद्री और पेपर वर्क-

 

बिद्री और पेपर वर्क या धातु पर चांदी जड़ने का काम (काला जस्ता और तांबा मिश्र धातु) कर्नाटक के बिदर में शुरू हुआ था, परन्तु हैदराबाद के निजाम के संरक्षण में यह औरंगाबाद में स्थानांतरित कर दिया गया था। यह भारत की एक महत्वपूर्ण निर्यात हस्तकला है।

 

दौलताबाद किला-

 

दौलतबाद या "भाग्य का शहर" का नाम दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद तुगलक द्वारा रखा गया था। औरंगाबाद से 13 कि.मी.की दूरी पर स्थित यह किला भारत के सबसे पुराने मौजूदा किलों में से एक है। आमतौर पर देवगिरी-दौलताबाद किला के नाम से प्रसिद्ध दौलताबाद किला एक शाही पहाड़ी पर स्थित एक पहाड़ी किला है जो 12वीं सदी में निर्मित एक अभियांत्रिकी का चमत्कार है।

 

खुल्दाबाद-

 

सम्राट औरंगजेब का मकबरा वाला यह शहर, एलोरा से 3 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इसे सय्यद जैन-उद-दीन और गंज रावण गंज बख्श के मकबरे के कारण एक पवित्र स्थान माना जाता है। इन संतों को मुसलमानों द्वारा सर्वाधिक सम्मान मिलता है।

 

शिरडी-

 

एक आध्यात्मिक गुरुसंत साईं बाबा का आश्रम शिरडी, औरंगाबाद से 130 कि.मी. दूरी पर स्थित है। शिरडी में हर गुरुवार को लगभग हजारों श्रद्धालुओं का काफिला आता रहता है, जो पूजन के साथ-साथ यहाँ कीतीर्थ यात्रा का भी आनंद लेते हैं।

 

अनवा मंदिर-

 

यह शिव मंदिर 12 वीं शताब्दी की झलक दर्शाने वाला काफी प्राचीन मंदिर है।

 

पितलखोरा गुफाएं-

 

औरंगाबाद के चालीसगाँव रोड पर स्थित इन गुफाओं में 14 बौद्ध गुफाओं के साथ 250 शिलालेखों की सूची प्राप्त हुई है। तीसरी-चौथी सदी के पशु और यक्ष को इस गुफा में मूर्ति रूप में देखा जा सकता है।

 

लोनेर क्रेटर-

 

इसे भूगर्भीय अध्ययनों के अनुसार 52,000 साल पहले धरती पर एक उल्कामी के परिणामस्वरूप लगभग गोलाकार गढ्ढे के रूप में उत्पन्न हुआ माना जाता है। यह गड्ढा अब हरी काई वाले पानी की एक झील है जिसमें खारा और क्षारीय दोनों प्रकार पानी पाया जाता है। इस झील की परिधि में कई मंदिरों के खंडहर भी देखने के मिल सकते हैं।

 

सोनेरी महल-

 

यह मिट्टी रंग की पहाड़ियों के पीछे पीले रंग की एक विशाल संरचना है। जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है कि यह सूरज की रोशनी में चमकता है। वर्ष 1651-53 में निर्मित, यह महल अब इस राज्य की प्राचीन तलवारों, तोपों, बंदूकों, संगीत वाद्ययंत्रो, निधि कोषों और कुछ अन्य खजानों को प्रदर्शित करने वाला एक संग्रहालय है।

 

यहाँ कैसे पहुँचे-

 

औरंगाबाद हवाई अड्डा, मुंबई, दिल्ली, उदयपुर और जयपुर से सुगमतापूर्वक जुड़ा हुआ है। मुंबई से औरंगाबाद तक दो ट्रेनें हर दिन चला करती हैं। मुंबई से औरंगाबाद तक जाने के लिए राज्यस्तरी और लक्जरी बसों के रूप में कई बसें भी चलती रहती हैं। औरंगाबाद शहर में कई सितारा और लक्जरी होटल भी उपलब्ध हैं।