28 सितंबर 1907: क्रांतिकारी नेता और स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह का जन्म दिवस

अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्र कराने के लिये भारत के स्वतंत्रता संग्राम ने कई विचारधाराओं को शामिल किया। इनमें से एक महात्मा गाँधी द्वारा चलाई गई अहिंसक प्रतिरोध विचारधारा थी, सत्याग्रह और अहिंसा इसी के रूप थे। हालांकि, कई अन्य स्वतंत्रता-सेनानियों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अधिक उग्रवादी तरीकों से देश का समर्थन किया। इन क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों में से एक, भगत सिंह प्रेरणादायक व्यक्ति थे, जिनका जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था।

 

भगत सिंह अविभाजित पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले में एक राजनीतिक रूप से सक्रिय सिख परिवार में पैदा हुए थे। इनके पिता और चाचा गदर पार्टी के सक्रिय समर्थक थे और उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण उन्हें कैद कर दिया गया था। जिस दिन भगत सिंह का जन्म हुआ था, उस दिन इनके पिता को जेल से छोड़ दिया गया था। इनके दादा अर्जुन सिंह आर्य समाज आंदोलन के सदस्य थे और युवा भगत सिंह ने दयानंद एंग्लो वेदिक हाई स्कूल में दाखिला करवाया था। वहाँ भगत सिंह आर्य समाज आंदोलन के तत्विचार के सम्पर्क में आए जो कि वेदों की पवित्रता और सार्वभौमिक सत्यों के पक्षपोषित थे और बाद में इन्होंने हिंदू धार्मिक प्रथाओं के खिलाफ हो रहे भ्रष्टाचार और अस्पष्टता का विरोध किया।

 

1920 में, जब महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, तो भगत सिंह केवल 13 वर्ष के थे, लेकिन इन्होंने तहे दिल से इसमें भाग लिया - यहाँ तक कि इन्होंने अपने स्कूल की पुस्तकों को भी जला डाला, जोकि ब्रिटिश लेखकों द्वारा लिखी गई थीं, साथ ही ब्रिटिश-निर्मित कपड़े या किसी भी सामान को इन्होंने अपने पास नही रखा। हालांकि, जब महात्मा गाँधी ने चौरा-चौरी घटना के बाद असहयोग आंदोलन को निलंबित कर दिया था, क्योंकि आंदोलन हिंसक हो गया था, तो भगत सिंह ने अहिंसा में विश्वास खो दिया और युवा क्रांतिकारी आंदोलन में अपना विश्वास व्यक्त किया, जिसने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने का समर्थन किया।

 

जब वह 16 साल के थे, तब इन्होंने 1923 में लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया, भगत सिंह एक लोकप्रिय छात्र थे, जो शैक्षिक और अतिरिक्त पाठ्यक्रम दोनों की गतिविधियों में कुशल थे। वह राजनीतिक रूप से सक्रिय भी थे, 1926 में उन्होंने राष्ट्रव्यापी गतिविधियों के लिए समर्पित एक युवा संगठन नौजवान भारत सभा की स्थापना की। वह हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) के युवा राजनैतिक नेताओं जैसे चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ के समकालीन थे। अपने अभियान के साथ स्वयं को इसमें जोड़कर, इन्होंने अपने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) संगठन का नाम बदलने के लिए प्रेरित किया।

 

उनका परिवार उनकी शादी के बारे में सोच रहा था, 1927 में भगत सिंह शादी से बचने के लिए अपना घर छोड़कर चले गए, घर छोड़ते समय इन्होंने एक पत्र में लिखा था कि वह अपने जीवन को, ब्रिटिश शासन से राष्ट्र को मुक्त करने के लिए समर्पित करना चाहते हैं। वह कानपुर गए, जहाँ इन्होंने काकोरी रेल डकैती (सभी एचआरए सदस्य) के षडयंत्रकारियों को मुक्त करने का प्रयास किया हो, जो कानपुर जेल में बंद थे। उस समय भगत सिंह की आतंकवादी राजनीतिक सोच अच्छी तरह से सुविकसित हई, इन्होंने अक्सर किसान मजदूर पार्टी, कीर्ति पत्रिका और साथ ही साथ वीर अर्जुन और स्थानीय पंजाबी और उर्दू अखबारों में अपने विचार प्रकाशित किए थे।

 

अक्टूबर 1926 में, दशहरा के दिन लाहौर में एक बम बिस्फोट हुआ था। मई 1927 में भगत सिंह को इनके संदिग्ध सहभागिता के लिए ब्रिटिश अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया और बाद में 60,000 रुपये का जुर्माना भुगतान कराने के बाद इन्हें छोड़ दिया। सितंबर 1928 में इन्हें किसान मजदूर पार्टी का सचिव चुना गया और बाद में पार्टी के नेता बने।

 

इस बीच भारत में राजनीतिक वातावरण गरम हो रहा था। भारतीय राजनीतिक स्थिति पर रिपोर्ट करने के लिए ब्रिटिश द्वारा स्थापित साइमन आयोग का भारतीयों द्वारा जोरदार विरोध किया गया था। 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में एक शांतिपूर्ण विरोध रैली में, लाला लाजपत राय, पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट के द्वारा अहिंसक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ लाठी चार्ज में घायल हो गए थे। इस हमले में लगातार चोट लगने के कारण लाला लाजपत राय का निधन 17 नवंबर 1928 को हो गया था। भगत सिंह, हालांकि हमले के दृश्य में मौजूद नहीं थे, लेकिन लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने की प्रतिज्ञा ली और साथी क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु के सहयोग से स्कॉट की हत्या करने की योजना बनाई। स्कॉट जिस रास्ते से लाहौर पुलिस मुख्यालय जाता था उस मार्ग को इन लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से घेर लिया और तभी वहाँ से किसी के निकलने का संकेत मिला लेकिन स्कॉट की जगह सहायक पुलिस अधीक्षक जे पी सॉन्डर्स पुलिस स्टेशन से बाहर निकल रहा था। अनजाने में गलत पहचान के कारण भगत सिंह और राजगुरू ने सॉन्डर्स को गोली मार दी और उस जगह से पास ही में खड़ी साइकिलों से वे लोग वहाँ से भाग निकले। दो दिन बाद, एक अन्य एचएसआरए कार्यकर्ता की पत्नी की मदद से भगत सिंह लाहौर से सुरक्षित निकल गए और पकड़े जाने से बचने के लिए हावड़ा चले गए। इनके साहसी कार्यों ने इन्हें स्थानीय नायक बना दिया, हालांकि महात्मा गाँधी जैसे नेताओं ने हिंसा के कारण इस अधिनियम की निंदा की।

 

अपने आंदोलन को जारी रखने के लिए भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को निश्चित समय पर पूर्व तय योजनानुसार असैम्बली के खाली प्रांगण में हल्के बम फेंके, समाजवादी नारे लगाए, अंग्रेजी सरकार के पतन के नारों को बुलन्द किया और पहले से तैयार छपे पर्चे भी फेंके। इन्हें ब्रिटिश पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था। उन पर हत्या करने के प्रयास का आरोप लगाया गया था, हालांकि इस हमले में कोई भी मारा नहीं गया था। हालांकि भगत सिंह की बंदूक बरामद हुई, जिससे जाँच के बाद पता चला कि सॉन्डर्स की हत्या इसी बन्दूक से की गई थी। हालांकि इन्हें विधानसभा हमले के लिए 14 साल कारावास की सजा सुनाई गई। सिंह की सजा बढ़ रही थी, सॉन्डर्स की हत्या के लिए उन्हें दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में रहते हुए, जेल की बुरी स्थिति के विरोध में भगत सिंह ने भूख हड़ताल की। भूख हड़ताल के कारण वे सुर्खियों में छाए रहे, जो राजनीतिक बहस का प्रबल विषय बना। इसके बावजूद 7 अक्टूबर 1930 को, ब्रिटिश अधिकरण द्वारा भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई गई।

 

23 मार्च 1931 को सुबह 7.30 बजे, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर जेल में फाँसी की सजा दी गई। जेल अधिकारियों ने इनका अंतिम संस्कार स्वयं ही किया और इनकी अस्थियां सतलज नदी में विसर्जित कर दीं।

 

जिस तरह से यह सजा सुनाई गई थी। पूरे भारत में विरोध प्रदर्शनों और उनकी देशभक्ति ने कई युवा लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

 

आज भी भगत सिंह को फिल्म और गीत में भारत के एक देशभक्त पुत्र के रूप में माना जाता है, जिन्होंने अपने देश को आजाद कराने के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया।

 

इसके अलावा इस दिन:

 

1929: अग्रणी पार्श्व गायिका और दादा साहब फाल्के पुरस्कार विजेता लता मंगेशकर का जन्म हुआ।

 

1982: अभिनव बिंद्रा, शूटिंग चैंपियन और ओलंपिक खेलों में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय का जन्म हुआ।

 

अंतिम संशोधन : जुलाई 24, 2018