बूंदी का इतिहास


ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रुप से समृद्ध बूंदी राजस्थान में अक्सर कम ही घूमा जाता है। बूंदी का इतिहास 12वीं सदी के प्रारंभिक काल तक जाता है। बूंदी से शूरता और सम्मान के कई किस्से जुड़े हैं। यह शहर किसी समय में राजस्थान की रियासतों की राजधानी था।

शुरुआती समय में बूंदी शहर और उसके आसपास के इलाकों में कुछ स्थानीय जनजातियां रहने लगी। विभिन्न जनजातियों और गुटों में मीणा सबसे ताकतवर और प्रभावी थे। माना जाता है कि बूंदी शहर का नाम प्रमुख मीणा सरदार बूंदा मीणा के नाम पर रखा गया था।

हाडा राजपूत राजस्थान के इस शहर के इतिहास के अभिन्न भाग रहे हैं। बूंदी का मुख्य आधार हड़ौती क्षेत्र है जिसका नाम हाडा राजपूतोें के नाम पर रखा गया था। हाडा राजपूत दरअसल चैहान वंश की शाखा हैं। उन्होंने शहर पर 12वीं सदी से लेकर लंबे समय तक राज किया।

1193 में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चैहान को उनके बीच हुई भीषण लड़ाई में हराया। पृथ्वीराज चैहान के कुछ लोग पास के इलाके में चंबल घाटी में भाग गए। घाटी के इलाके में कुछ स्थानीय जनजातियां और गुट रहते थे और उन लोगों ने इन पर प्रभुत्व जमाया और हड़ौती के इलाके को अपने अधिकार में ले लिया।

बाद में चंबल नदी के दो किनारों पर दो राज्यों का गठन हुआ, कोटा और बूंदी। समय के साथ कोटा के आगे बूंदी का महत्व कम होता गया। ब्रिटिश राज के तहत बूंदी स्वतंत्र रुप में अस्तित्व में रहा। 1947 के बाद यह शहर राजस्थान राज्य का हिस्सा बन गया।

अंतिम संशोधन : जनवरी 29, 2015