चित्तौड़गढ़ का इतिहास


चित्तौड़गढ़ का इतिहास वीरतापूर्ण लड़ाइयों, राजपूत शूरता, महिलाओं के अद्वितीय साहस की कई और कहानियां सुनाता है। अपने घटनापूर्ण इतिहास में चित्तौड़गढ़ के शहर ने हमले और कब्जे के कई प्रयास देखे हैं।

चित्तौड़गढ़ ने जो सबसे घातक हमला देखा है वो 14वीं सदी की शुरुआत में था। रानी पद्मिनी की खूबसूरती से आकर्षित होकर अलाउद्दीन खिलजी किसी भी तरह उसे पाना चाहता था। उन्हें पाने के पागलपन में अलाउद्दीन ने चित्तौड़गढ़ पर हमला कर दिया। पद्मिनी के पति महाराजा रतन सिंह और उनके आदमियों ने खूब बहादुरी से युद्ध किया लेकिन वो खिलजी के हाथों हारे और मारे गए। हालांकि अलाउद्दीन का यह प्रयास विफल रहा क्योंकि चित्तौड़गढ़ किले में महिलाओं और रानी पद्मिनी ने जौहर यानि आत्मदाह कर लिया।

चित्तौड़गढ़ पर दोबारा हमला महाराजा बिक्रमजीत के शासन में 16वीं सदी के मध्य में हुआ। गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने राजपूतों को हराया पर इतिहास ने खुद को दोहराया जब रानी कर्णवती के नेतृत्व में महिलाओं ने जौहर कर लिया। उनके बेटे उदय सिंह जो उस समय सिर्फ एक शिशु थे, उन्हें बूंदी भेजा गया और बाद में वो बूंदी और चित्तौड़गढ़ के राजा बने।

मुगल शासक अकबर ने 1567 में चित्तौड़गढ़ पर कब्जा कर लिया। उदयसिंह ने इसका प्रतिरोध नहीं किया और पलायन कर गए और नया शहर उदयपुर बनाया। हालांकि दो किशोरों पत्ता और जयमल के नेतृत्व में राजपूतों ने पूरी ताकत से लड़ाई लड़ी और मारे गए। अकबर के आदमियों ने चित्तौड़गढ़ किले को लूटा और तबाह किया, और आज इस किले के अवशेष इस जगह के समृद्ध इतिहास की याद दिलाते हैं।

चित्तौड़ के प्रमुख शासक



शासकसन्
राणा कुम्भा1433-68
राणा सांगा 1509-27
महाराणा प्रताप 1572-97

अंतिम संशोधन : जुलाई 18, 2016