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गुर्दा प्रत्यारोपण – इस कार्यविधि के बारे में आप सभी को जानना चाहिए

May 3, 2018
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गुर्दा प्रत्यारोपण

पिछले दो दशकों में हुए चिकित्सा और प्रौद्योगिकी के सुधारात्मक समन्वय ने चिकित्सकों को चिकित्सा के शुरुआती व्यवसायिक अभ्यास की तुलना में उनके रोगियों को एक बेहतर निदान और इलाज करने की प्रक्रिया प्रदान की है। चिकित्सा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के निरंतर विकास ने अनगिनत जिंदगियों को बचाने में मदद की है। इसके नवाचारों ने जीवन को बनाए रखने के साथ-साथ जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चिकित्सा प्रौद्योगिकी की सभी प्रगतियों में, अंग प्रत्यारोपण आधुनिक चिकित्सा का सबसे चुनौतीपूर्ण और जटिल क्षेत्र रहा है जिसने हाल के वर्षों में बड़ी सफलता हासिल की है।

दिल, गुर्दे, यकृत, फेफड़े, अग्न्याशय, आंत, और थाइमस कुछ ऐसे अंग होते हैं जिन्हें एक जीवित दाता या मानसिक रूप से मृत घोषित किए गए मरीजों से ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। चिकित्सा तकनीक ने बहुत ही उज्वल भविष्य देखा है। सबसे पहले अंग प्रत्यारोपण का कार्य वर्ष 2005 में फ्रांस में एक चेहरा प्रत्यारोपण के माध्यम से किया गया था। जहां एक शव के चेहरे को इसाबेल डी नोइरे के मूल चेहरे पर ट्रांसप्लांट किया गया था क्योंकि इसाबेल डी नोइरे के कुत्ते ने उनके मूल चहरे को घायल कर दिया था। किडनी प्रत्यारोपण की अवधारणा का पहली बार अमेरिकी चिकित्सा शोधकर्ता साइमन फ्लेक्सनर द्वारा वर्ष 1907 में एक पेपर में उल्लेख किया गया था। हालांकि इस प्रक्रिया की शुरुआत पहली बार वर्ष 1933 में हुई थी, परन्तु इसमें पूर्ण सफलता वर्ष 1950 में ही मिल पायी थी। इस लेख में हम आपको किडनी प्रत्यारोपण से संबंधित सभी आवश्यक जानकारियों से परिचित कराने वाले हैं।

किडनी प्रत्यारोपण क्या है?

साधरणतया जैसा कि हम सभी जानते हैं किडनी, उपापचय के अपशिष्ट उत्पादों का निष्कासन करने में मदद करती हैं और मानव शरीर की कार्य प्रणाली के लिए आवश्यक है क्योंकि वह शरीर में रक्तचाप, इलेक्ट्रोलाइट संतुलन, और लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन का भी कार्य करती है। खराब किडनी वाले व्यक्तिओं में गुर्दे की कार्यप्रणाली रुक जाती, यह एक ऐसी अवस्था है जब गुर्दों में शरीर से अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन करने की क्षमता नष्ट हो जाती है। जबकि किडनी का खराब होना एक ऐसी स्थिति है जो अक्सर पर्याप्त उपचार के बाद भी विपरीत परिणाम ही देती है। पुरानी गुर्दे की बीमारी के परिणामस्वरूप किडनी पूर्ण रूप से कार्य करना बंद कर देती है परन्तु उपलब्ध उपचार विकल्पों के माध्यम से डायलिसिस या प्रत्यारोपण किया सकता है। जब कोई गुर्दा अपनी कार्य क्षमता में 90% असफल हो जाता है तो फिर उस गुर्दे के प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। गुर्दा प्रत्यारोपण प्रक्रिया एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति के खराब गुर्दे की जगह पर जीवित या मृत व्यक्ति के स्वस्थ गुर्दे को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।

किडनी प्रत्यारोपण के प्रकार

गुर्दा प्रत्यारोपण में एक जीवित दाता या मृत दाता की भूमिका

जीवित दाता

  • चूँकि एक इंसान को जीवित रहने के लिए केवल एक गुर्दे की आवश्यकता होती है, इसलिए किसी भी व्यक्ति को उसका एक करीबी रिश्तेदार, जिसका रक्त समूह और ऊतक समान प्रकार का है (एचएलए मिलान नामक एक परीक्षण द्वारा निर्धारित) प्राप्तकर्ता के साथ गुर्दा दान कर सकता है।
  • एचएलए, मानव ल्यूकोसाइट एंटीजन के लिए एक प्रतीक है और यह श्वेत रक्त कणिकाओं की सतह पर स्थित आनुवांशिक संगणक है।
  • दाता और प्राप्तकर्ता के बीच मिलान करने वाले एंटीजनों की एक बड़ी संख्या एक अधिक सफल प्रत्यारोपण सुनिश्चित करती है।
  • जब रक्त समूह और ऊतक तंत्र एक समान होते हैं, तो प्राप्तकर्ता मरीज के शरीर में नए गुर्दे को अस्वीकार करने की संभावनाएं ना के बराबर रह जाती हैं।
  • तो प्राप्तकर्ता के शरीर की नई किडनी को बदलने की संभावना कम होती है।

मृतक दाता या शव दाता

जब किसी मृत व्यक्ति के गुर्दे को प्राप्तकर्ता में ट्रांसप्लांट किया जाता है तो इसे मृत दान के रूप में जाना जाता है।

  • इस प्रकार के प्रत्यारोपण में रक्त समूह और एंटीजन का पूर्ण मिलान नहीं हो पाता है।
  • गुर्दे की अस्वीकृति की संभावना अधिक होती है क्योंकि शरीर को नई वस्तु के रूप में नई किडनी मिलती है और जिससे इम्यून अटैक पड़ने की संभावना बनी रहती है।
  • दीर्घकालिक प्रतिरक्षा दवाओं को (इम्यूनोस्पेप्रेसेंट कहा जाता है) इस तरह के प्रत्यारोपण में गुर्दे को नष्ट होने से बचाने के लिए दिया जाता है।

ऑपरेशन

गुर्दा प्रत्यारोपण ऑपरेशन में नए गुर्दे को प्रत्योरोपित करने के लिए पेट के निचले भाग का शल्य चिकित्सा विधि से ऑपरेशन किया जाता है।

  • गुर्दे को कमर की हड्डी के ठीक ऊपर पेट के निचले भाग के दायीं या बायीं तरफ रखा जाता है।
  • नए गुर्दे की रक्त वाहिकाएं मौजूदा रक्त वाहिकाओं से जोड़ी जाती हैं।
  • बाद में मूत्रमार्ग (मूत्र ट्यूब) को मूत्राशय से जोड़ा जाता है।
  • गुर्दा प्रत्यारोपण की शल्य चिकित्सा प्रक्रिया लगभग तीन से पांच घंटे तक चल सकती है।

गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद देखभाल

एक गुर्दे के प्रत्यारोपण की दीर्घकालिक सफलता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है:

  • रोगी द्वारा प्रत्यारोपण करने वाले डॉक्टरों की पूरी सलाह का नियमित रूप से पालन करना चाहिए।
  • एक मृत दाता द्वारा गुर्दे प्राप्त करने पर, विशेष रूप से प्रतिरक्षादमनकारी दवाओं को नियमित रूप से और समय पर लिया जाना चाहिए।
  • यह सुनिश्चित करने के लिए कि गुर्दे ठीक से काम कर रहे है, प्रयोगशाला परीक्षणों और क्लिनिक केंद्रो के लिए अनुशंसित अनुसूची का पालन करें।
  • एक स्वस्थ जीवनशैली उचित आहार, व्यायाम और यदि आवश्यक हो तो वजन घटाना भी अनिवार्य है।
  • जो लोग संक्रमण के संकट में प्रतिरक्षादमनकारी दवा लेते हैं, उन्हें संक्रमण को रोकने के लिए देखभाल करना चाहिए। अच्छी व्यक्तिगत स्वच्छता को बनाए रखा जाना चाहिए और फ्लू या चिकन पॉक्स जैसे संक्रमण वाले व्यक्तियों से बचा जाना चाहिए।
  • संक्रमण के खिलाफ टीकाकरण अति महत्वपूर्ण है लेकिन कुछ टीके जिनमें जीवित वायरस शामिल हैं जैसे कि गलसुआ, खसरा और रूबेला (एमएमआर) में लगने वाले कुछ टीकों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

समस्याएं

  • गुर्दा प्रत्यारोपण प्रक्रिया में निम्नलिखित समस्याएं आ सकती हैं:
  • प्रतिरक्षादमनकारी दवाएं पहले चार हफ्तों में हर्पीस सिम्प्लेक्स संक्रमण और फिर साइटोमेगागोवायरस संक्रमण का कारण बन सकती हैं। इसमें फंगल और जीवाणु संक्रमण भी संभव है।
  • प्रतिरक्षादमनकारी दवाओं के दीर्घकालिक उपयोग से त्वचा या लिम्फोमा के कैंसर का खतरा भी हो सकता है।
  • इससे ट्यूब (मूत्रनली) का घेरा लीक या अवरुद्ध हो सकता है जो गुर्दे और मूत्राशय से जुड़ा होता है।
  • सर्जरी के बाद पीलोनोफ्राइटिस या किडनी संक्रमण हो सकता है।
  • कभी-कभी गुर्दा दाता के गुर्दे में पथरियों की भी संभावना बढ़ सकती है या बाद में नए गुर्दे में बन सकती है। मूत्र में रक्त आ सकता या रक्त जमाव, संक्रमण तथा अन्य भी बाधाएं आ सकती हैं।
  • गुर्दे प्रत्यारोपण के बाद उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल इत्यादि जैसी हृदय रोग की कुछ अन्य सामान्य जटिलताएं भी हो सकती हैं।

सुषमा स्वराज का किडनी प्रत्यारोपण

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की किडनी का प्रत्यारोपण वर्ष 2016 में 10 दिसंबर दिन शनिवार को एम्स में किया गया था। इनके लिए एक असंबंधित व्यक्ति ने अपना गुर्दा प्रदान किया था। इसके संबंध में एम्स प्राधिकरणों ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि 5 घंटे से अधिक समय तक चलने वाली यह प्रक्रिया सफल रही हुई। उन्हें आईसीयू में एक विशेष निगरानी में रखा गया और उन्हें दो से तीन सप्ताह में छुट्टी मिल गई थी।

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