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बॉलीबुड फिल्मों से सदाबहार डायलॉग

January 2, 2018
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बॉलीबुड फिल्मों से सदाबहार डायलॉग

हम फिल्म प्रेमियों के देश में रहते हैं। देशवासियों के लिए बॉलीवुड का नशा राष्ट्रीय धर्म तक हो सकता है। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि हिंदी फिल्मों के डायलॉग हमारे जीवन का हिस्सा बन गए हैं। हमारे यहाँ प्रतिष्ठित, सदाबहार डायलॉगों का संग्रह है जो हमारे जीवन का हिस्सा रहे हैं, दशकों से प्रचलित डायलॉगों में से कुछ डायलॉग अब तक प्रचलित हैं –

देवदास (1955)

“कौन कमबख्त बर्दाश्त करने को पीता है? मैं तो पीता हूँ कि बस साँस ले सकूँ” – दिलीप कुमार
इस प्रकार की बातें प्रत्येक शराबी करता हैं। लेकिन सबसे पहले इस बात को हमारे अपने दिलीप कुमार ने कही थी।

मदर इंडिया (1957)

“तू मुझे नहीं मार सकती, तू मेरी माँ है” सुनील दत्त
“पहले मैं एक औरत हूँ”- नरगिस
यदि देश में हर महिला, मदर इंडिया की तरह सोच रखती है।

मुगल-ए-आजम (1960)

“अनारकली, सलीम की मोहब्बत तुम्हें मरने नहीं देगी और हम तुम्हें जीने नहीं देंगे” – पृथ्वीराज कपूर
माता-पिता और उनके अधिकार – एक ऐतिहासिक स्वरूप!

आनंद (1970)

“अरे ओ बाबू मोशाय! हम सब रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं, जिनकी डोर ऊपर वाले की उँगलियों से बँधी हुई है। कब कौन उठेगा कोई नहीं बता सकता” – राजेश खन्ना
हम शर्त लगाते हैं कि जब यह द्रश्य प्ले हो रहा था तो कोई भी ऐसा नहीं था जिसकी आँखे भर न आईं हों।

अमर प्रेम (1971)

“पुष्पा, आई हेट टियर्स” – राजेश खन्ना
फिल्म अच्छी है लेकिन इस फिल्म को देखकर आपकी आँखों में आँसू भर आएंगे।

पाकीजा (1972)

“आपके पाँव देखे, बहुत हसीन हैं। इन्हें जमीं पर न उतारियेगा गंदे हो जाऐंगे” – राज कुमार
एक गणिका और नर्तकी से उसके पैरों की देखभाल करने के लिए कहा जा रहा है – इसमें बिडम्बना और रोमांस से महिलाएं अचेत हो जाती हैं।

यादों की बारात (1973)

“कुत्ते कमीने मैं तेरा खून पी जाऊँगा” – धर्मेंन्द्र
यहाँ पर जो कहा गया है ऐसा कहने की उम्मींद हम आज भी अपने नायकों से करते हैं।

बॉबी (1973)

“कोई प्यार करे तो तुम से करे, तुम जैसी हो वैसे करे। कोई तुमको बदल कर प्यार करे, तो वो प्यार नहीं है, सौदा है “- ऋषि कपूर
सोलह बरस के रोमांस ने देश में तहलका मचा दिया।

दीवार (1975)

“आज मेरे पास गाड़ी है, बंगला है, पैसे हैं … तुम्हारे पास क्या है?” – अमिताभ बच्चन
“मेरे पास माँ है” – शशी कपूर
माँ, हर भारतीय की एक बेशकीमती धरोहर होती है।

शोले (1975)

“अरे-ओ-शांभा, कितने आदमी थे?” – अमजद खान
“तुम्हारा नाम क्या है बसंती” – अमिताभ बच्चन
इस प्रतिष्ठित फिल्म में कई यादगार डायलॉग हैं। ये उत्तमोत्म हैं।

कालीचरन (1976)

“सारा शहर मुझे शेर के नाम से जानता है” – अजित
तो क्या हुआ अगर उसने अपने आपको ‘शेर’ कहा? अजीत प्रिय मोना का भी पसंदीदा था और हमारा भी।

डॉन (1978)

“डॉन का इंतजार तो बारह मुल्कों की पुलिस कर रही है, लेकिन डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है” – अमिताभ बच्चन
अमिताभ बच्चन – द रियल डॉन। जिस प्रकार रीमेक इससे मैच नहीं हुई, कि इसमें उन्होंने क्या कहा?

मि. इंडिया (1987)

“मोगैम्बो खुश हुआ” – अमरीश पुरी
एक ऐसा खलनायक जिसने बेंचमार्क सेट किया …

शहनशाह (1988)

“रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते है, नाम है शहनशाह” – अमिताभ बच्चन
वह अब भी सभी मुख्य शहरों के नायकों के बाप हैं।

मैंने प्यार किया (1989)

“दोस्ती का एक ऊसूल है, मैडम – नो शॉरी, नो थैक्यू” – सलमान खान
भले ही यह सल्लू भाई कह रहे हैं …

बाजीगर (1993)

“कभी कभी कुछ जीतने के लिए कुछ हारना भी पड़ता है और हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं ” – शाहरुख खान
शाहरुख – काजोल – की पर्दे पर एक बेहतरीन जोड़ी।

दामिनी (1993)

“तारीख पे तारीख मिलती रही है लेकिन इंसाफ नहीं मिलता। मिलती है तो सिर्फ तारीख”- सनी देओल
सनी देओल ने एक ऐक्शन फिल्म में खतरनाक नायक की भूमिका निभाई है।

दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (1995)

“बड़े बड़े शहरों में ऐसी छोटी-छोटी बातें होती रहतीं हैं” – शाहरुख खान
सिल्वर स्क्रीन पर सबसे बेहतरीन फिल्म के नाम से जाने जानी वाली फिल्म में जब शाहरूख खान इस तरह के डायलॉग बोलते हैं तो लाखों दिल खिल उठते हैं।

रंगीला (1995)

“उसका तो ना बैड़ लक ही खराब है” – आमिर खान
प्यारे टपोरी, मुन्ना के रूप में आमिर हर किसी के पसंदीदा हैं।

मुन्नाभाई एमबीबीएस (2003)

“टेंशन लेने का नहीं, सिर्फ देने का” – संजय दत्त
हम गाँधीगिरि और जादू की झप्पी देकर दूसरों से प्यार करेंगे, मुन्ना भाई! समस्या यह है कि हमें काम भी करना है।

ओम शांति ओम (2007)

“एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू”- दीपिका पदुकोण
शीर्ष बॉलीवुड सितारों और एक पुनर्जन्म की कहानी तथा फिल्म के अंदर एक फिल्म – यह फिल्म, बहुत ही फिल्मी है!

चेन्नई एक्सप्रेस (2013)

“डॉन्ट अन्डरस्टीमेट द पॉवर ऑफ द कॉमन मैन” – शाहरुख खान
अभी तक यह काफी नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे यह थलाइवा के शीर्ष तक पहुँच रहा है- सही कहा न शाहरूख खान।

रईस (2017)

“कोई धन्धा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता”- शाहरुख खान
हाँ, हम मि. शाहरूख से अवगत हैं और फिर भी आपका एकमात्र साधन धंधा जिसे हम चाहते हैं, आप इसे पर्दे पर देख कर उत्साही हो रहे हैं।