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एक प्राचीन शहर के बारे में जानकारी: तक्षशिला

February 2, 2018
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एक प्राचीन शहर के बारे में जानकारी: तक्षशिला

एक प्राचीन शहर के बारे में जानकारी: तक्षशिला

एक यात्री के रूप में जब आप तक्षशिला में कदम रखेगें, तब आपको 5वीं शताब्दी के समय की अस्तित्वमय एक अलग ही दुनिया का अनुभव होगा। यहाँ आने पर आपको लगेगा कि भगवान बुद्ध, मैसेडोनिया का सिकंदर, सम्राट अशोक और सम्राट कनिष्क सभी लोग साक्षात सामने ही हैं।

तक्षशिला पर 327 ईसा पूर्व में सिंकदर (अलेक्जेंडर) ने कब्जा कर लिया था और बाद में यह मौर्य राजवंश के शासन के अधीन हो गया था। राजा अशोक के शासनकाल में, शहर ने विकास के मामले में शिखर को छू लिया था। इसके बाद तक्षशिला गांधार शासन में सबसे रचनात्मक अवधि का साक्षी बना। अगले 200 वर्षों में तक्षशिला महान शिक्षा का एक केंद्र बन गया। लेकिन जैसा कि प्रत्येक वस्तु का अंततः नष्ट हो जाना स्रष्टि का नियम है, तक्षशिला में बौद्ध मठों और कई स्तूपों को हेफ्थालाइट्स (मध्य एशिया में खानाबदोश संघों) द्वारा बड़े पैमाने पर नष्ट कर दिया गया और इसके बाद ये शहर कभी भी पनप नहीं पाया।

तक्षशिला की छानबीन करना अपने आप में एक महान अनुभव है। आप यहाँ गांधार मूर्तियाँ, भगवान बुद्ध की अंतहीन छवियाँ और तक्षशिला के अद्भुत खंडहर पाएंगे। खंडहर अच्छी तरह से संरक्षित हैं। आप यहाँ शानदार अभिन्यास वाली सड़कें, घर, स्तूप और भव्य महल आदि देख सकते हैं।

ऐतिहासिक रूप से, तक्षशिला हिंदुओं और बौद्धों के लिए बेहद महत्वपूर्ण स्थान है और वर्तमान में यह एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है। विभाजन से पहले, तक्षशिला भारत में स्थित था, लेकिन अब यह पंजाब के रावलपिंडी जिला, पाकिस्तान में है। तक्षशिला पाकिस्तान के सर्वोत्तम पर्यटन स्थलों में से एक है। 1920 के दशक में, सर जॉन हबर्ट मार्शल (ब्रिटिश पुरातत्वविद्), जो उत्खनन के समय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (1902-31) के महानिदेशक थे, के द्वारा तक्षशिला को खुदाई करके निकाला गया।

तक्षशिला के खंडहर को तीन भागों या बड़े शहरों में विभाजित किया जा सकता है और ये भाग अलग-अलग समय अवधि से सम्बंधित थे। तक्षशिला का सबसे पहला शहर भिर मोउंड है, जो 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व से सम्बंधित था। इसकी अनियमित सड़कों से यह बहुत प्राचीन प्रतीत होता है। तमारा नदी की धारा की विपरीत दिशा में स्थित सिरकाप शहर दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बनाया गया था। यह एक अच्छी तरह से योजनाबद्ध शहर है। यहाँ की सड़कें चौड़ी हैं और किलाबन्दी बहुत मजबूत और प्रभावशाली दिखती है। कुषाण शासकों ने तक्षशिला शहर के अंतिम शहर का निर्माण किया, जो सिरसख में स्थित है। हालांकि इसकी पूरी तरह से खुदाई नहीं हुई है, लेकिन यह एक अच्छी तरह से निर्मित शहर है।

इसके अलावा, तक्षशिला के कई संरचनात्मक अवशेष हैं जिनमें जंडियल और पिप्पला मंदिर, मोहरा मोराडू और जौलियन मठ तथा कुणाला स्तूप भी शामिल हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि ये अभी भी और अधिक खुदाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

आमतौर पर, इन सभी ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा करने के लिए पूरा एक दिन का समय भी कम लगता है। लेकिन अगर आप ठहरने का प्रबंध कर सकते हैं, तो तक्षशिला संग्रहालय से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित धर्मराजिका स्तूप पर भी जाएं। इस स्तूप में एक मुख्य इमारत, एक मठ क्षेत्र और कई छोटे पूजा स्थल भी हैं। खुदाई के समय बहुत से रत्न, सोने और चांदी के सिक्के इस स्थान से निकले थे, जिनको अब तक्षशिला संग्रहालय में रखा गया है।

सम्बंधित किवदंतियां

विभिन्न ऐतिहासिक खोजों में यह पाया गया है कि तक्षशिला 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व की अवधि से पहले का हो सकता है। भारतीय महाकाव्य रामायण के अनुसार, तक्ष शब्द से तक्षशिला शहर का नाम पड़ा था। ‘तक्ष’ भरत और माण्डवी के पुत्र थे। भरत भगवान राम के भाई थे। ऐसा माना जाता है कि तक्ष, तक्षशिला शहर के संस्थापक और तक्ष खंड साम्राज्य के प्रथम शासक थे।

लेकिन तक्षशिला के पीछे की एक और कहानी है, जिसको दामोदर धर्मानंद कोसंबी ने बताया था। इस कहानी के अनुसार, इस नाम का तक्षक से बहुत करीबी सम्बन्ध है, जिसका अर्थ संस्कृत में ‘बढ़ई’ होता है। प्राचीन भारत में यह नागाओं को दिया गया एक अन्य नाम था।

बौद्ध साहित्य जातक में तक्षशिला का विवरण मिलता है, जो 5वीं शताब्दी के आसपास श्रीलंका में लिखा गया था। इस पाठ में, तक्षशिला का गांधार राज्य की राजधानी और एक महान शिक्षण केंद्र के रूप में उल्लेख किया गया है।

फिर वहाँ एक चीनी भिक्षु फैक्सियान आए, जिन्होंने 450 ईसवी में तक्षशिला की यात्रा की और उनकी यात्राओं का उनके लेखों में उल्लेख मिलता है। चीन के एक और प्रसिद्ध भिक्षु ह्वेन सांग ने भी 630-643 ईसवी में भारत की यात्रा के दौरान तक्षशिला का भ्रमण किया था।

प्रसिद्ध तक्षशिला विश्वविद्यालय

प्राचीन भारत में शिक्षा के लिए एक प्रसिद्ध केंद्र, तक्षशिला विश्वविद्यालय के कारण यह शहर बहुत लोकप्रिय था। अब विश्वविद्यालय का खंडहर रावलपिंडी के आधुनिक शहर से बीस मील की दूरी पर स्थित है। उस समय जब यह विश्वविद्यालय क्रियाशील था, तो भारत के विभिन्न हिस्सों से और दुनिया भर के लगभग 10,500 छात्र वहाँ पर अध्ययन करते थे। इस विश्वविद्यालय में, विज्ञान, चिकित्सा, गणित, खगोल विज्ञान, संगीत, दर्शन, धर्म आदि सहित साठ से अधिक विभिन्न विषयों को पढ़ाया जाता था। लेकिन इस विश्वविद्यालय में चिकित्सा का अध्ययन सबसे ज्यादा उन्नत था। विश्वविद्यालय में, छात्र को सोलह वर्ष की आयु में प्रवेश मिलता था। हालांकि यह विश्वविद्यालय नालंदा, बिहार के विश्वविद्यालय की भांति संयोजित नहीं था, विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने लिए अपने शिक्षकों के साथ यहाँ पर ठहरते थे। छात्र वहां ठहरने के लिए या तो भुगतान करते या शिक्षक और उनके परिवार को सेवाएँ देते थे।

चाणक्य (कौटिल्य) चंद्रगुप्त मौर्य के सलाहकार और इस विश्वविद्यालय में शिक्षक थे। तक्षशिला ने कई प्रतिभाशाली दिमाग वाले व्यक्ति जैसे पाणिनी (महान संस्कृत व्याकरणविद्), चंद्रगुप्त मौर्य (महान शासक), कौटिल्य (चाणक्य) और चरक (प्राचीन भारत के एक लोकप्रिय चिकित्सक), भारत को प्रदान किए।

अशोक के शासन काल में तक्षशिला एक बौद्ध केंद्र के रूप में प्रसिद्ध था। अशोक ने अपने शासनकाल के दौरान, व्यापार के लिए कई सड़कों का निर्माण करवाया था और एक मुख्य सड़क तक्षशिला को पाटलिपुत्र के साथ जोड़ती थी।

तक्षशिला संग्रहालय

खंडहरों के अलावा एक जरूरी यात्रा स्थल, पुरातात्विक संग्रहालय, तक्षशिला संग्रहालय है। यहाँ सिक्के, जवाहरात, आभूषण, तिजोरी के साथ-साथ और कई अन्य कलाकृतियों का संग्रह प्रदर्शित किया गया है। लेकिन संग्रहालय का मुख्य आकर्षण पत्थर और प्लास्टर है – एक उत्तम गांधार मूर्तिकला। इसके अलावा वहां भगवान बुद्ध के विभिन्न रूपों का एक शानदार संग्रह भी है।

यदि आप तक्षशिला की यात्रा करना चाहते हैं, तो एक दिन के लिए एक टैक्सी लें, क्योंकि पूरा स्थल वास्तव में बहुत बड़ा है। आप एक स्थानीय गाइड भी ले सकते हैं, क्योंकि गाइड आकर्षक विशेषताएँ दिखा सकता है और इस जगह के ऐतिहासिक महत्व की व्याख्या भी कर सकता है।

उपरोक्त लेख इंगलिश लेख Facts about An Ancient City: Taxila का अनुवाद है।

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