क्या तलाक में वृद्धि से हमारी संस्कृति को खतरा हैं?
2015 में, भारत में तलाक की दर हर 1000 विवाह पर लगभग 13 थी।हालांकि यह अभी भी दुनिया में सबसे कम है,लेकिन यह दर एक दशक पहले के 1000 विवाह अनुपात पर1 तलाक में होने वाली तेज वृद्धि को दर्शाती है। 2013 में, तलाक की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए बेंगलुरु में तीन नई पारिवारिक अदालतें स्थापित की गई थीं। देश की न्याय व्यवस्थामें हर दिन इससे संबंधित अत्यधिक और नए-नए मामले देखने को मिलते हैं।
बढ़ती तलाक दरों ने समाज के एक हिस्से के लिए चिंताओं को व्यक्त किया है जो इसे हमारे सांस्कृतिक मूल्यों के क्षरण के रूप में देखता है। दूसरी ओर, हालांकि, यह एक संकेत है कि हमारा देश अधिक प्रगतिशील हो रहा है।
सदियों से स्थिति
हमारे इतिहास में एक लंबे समय तक, महिलाओं को अपने पति की एक स्थापित संपत्ति के रूप में देखा गया। यहाँ तक की20 वीं शताब्दी के इंग्लैंड के उत्तरार्ध में, पति का अपनी पत्नी केशरीर पर अधिकार होने के साथ-साथ उसकी संपत्ति पर भी पूर्ण अधिकार होता था। वैवाहिक बलात्कार एक अवधारणा थी जिसे बाद में प्रस्तावित किया गया और पहचाना गया।वहीं दूसरी तरफ, भारत नेअभी तक इस प्रथा को रोका नहीं है।
हालांकि,प्राचीन हिंदू धर्मशास्त्र मनुस्मृति ने महिलाओं को संपत्ति और उत्तराधिकार के अधिकार प्रदान किए थे। लेकिन, इसमें महिलाओं को हमेशा पुरुषों की संरक्षकता के अधीन भी रखा गया- पहले उनके पिता, फिर उनके पति, और अंत में उनके बेटे। यद्यपि कोई मूल पुष्टि नहीं है, लेकिन कन्यादान की प्रथा को अक्सर एक पिता द्वारा अपनी बेटी की जिम्मेदारी उसके पति को सौपने के रुप में परिभाषित किया जाता है।जिसका शाब्दिक अर्थ दान है।
तलाक पर बहस
कानूनी रुप से अलग होने वाले और तलाक की मांग करने वाले युवा जोड़ों की संख्या में वृद्धि हुई है, जो कि एक चिंता का विषय है।बहुत से लोग, खासकर पुरानी विचारधारा के लोग इसे ‘पश्चिमी’ संस्कृति की ओर से एक बदलाव के रूप में देखते हैं। युवा पीढ़ी की अधीरता और अहंकार को विवाहों के टूटने का मुख्य कारण माना जाता है।
कई विवाह सलाहकार यह मानते हैं कि आजकल के विवाहित जोड़े सुलह करने के एक तरीके रूप में परामर्श नहीं लेते हैं, बल्कि इसलिए लेते हैं ताकि वे अपने साथी या परिवार को इस बात के लिए मनास के कि अलगाव एक सही विकल्प है। इस विचारधारा को हमारे समाज के लिए एक नए प्रवेशकर्ता के रूप में देखा जाता है। हालांकि, बेंगलुरू की एक वकील आरती मुंडकुर सोचती हैं कि “पिछले कुछ वर्षों से समान नियमितता के साथ विवाह टूट रहेहैं।लेकिन जोड़े अपनी शादी को बचाने की हर संभव कोशिश कर रहे है। तलाक की बढ़ती दर एक संकेत है कि इसके साथ जुड़ाकलंक खत्म हो रहा है।”
तर्क यह है कि ऐसा नहीं है किअचानक से पश्चिमीकरण ने विवाह संस्था में दोष पैदा किए हैं। लोगों को इससे पहले भी समस्याएं थीं। फर्क सिर्फ इतना है कि बदलते समय के साथ, अब उनमें आगे आने और मुद्दों पर खुलकर बात करने का साहस आ गया है।हमारी संस्कृति एक बंधन के रूप में विवाह को संदर्भित करती है जो पुनर्जन्मों तक बना रहता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दुखी रहने की स्थायी सहमति हैऔर आधुनिक समय के जोड़ों को यह अच्छी तरह से पता है।
निष्कर्ष
तलाक के कारण बताते हुए, लोग महिला सशक्तिकरण का भी उल्लेख करते हैं। आज, औसतन महिलाएं काम कर रही हैंऔर इसलिए आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं।इससे पहले, जब पति के अलावा महिलाओं के पास जीवित रहने का कोई और साधन नहीं था, तब उनके लिए शादी से बाहर निकलना मुश्किल था। उल्लेख नहीं है, लेकिन अभी भी एक तलाकशुदा महिला को एक तलाकशुदा व्यक्ति की तुलना में कहीं अधिकअलगावऔर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं के पुनर्विवाह के उदाहरण पुरुषों के मुकाबले में बहुत कम हैं।
यदि वास्तव में महिला सशक्तिकरण हमारी बढ़ती तलाक दरों का एक कारण है, तो यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में हमें खुश होना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि किसी भी पवित्र ‘संस्था’ को संरक्षित करने का कोई महत्व नहीं है यदि हम जिस लागत का भुगतान करते हैं वह महिलाओं की स्वतंत्रता हैया कोई लिंग है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएचएफएस -4) ने 2018 की शुरुआत में एक डेटा जारी किया था जिसमें बताया गया था कि हर तीन महिलाओं में से एक को अपने जीवन में कम से कम एक बार घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है।
2004 में उसी संगठन ने पाया गया था कि लगभग 1.8% महिलाओं को उनके पतियों द्वारा शारीरिक रूप से प्रताड़ित नहीं किया है। निष्कर्ष सरल है। देश में दुखी, टूटे हुए विवाह हैं। पति-पत्नी वर्षों से विषाक्तता से ग्रस्त हैं क्योंकि तलाक की संभावना अभी भी कई लोगों के लिए अस्वीकार्य है।
“समाज क्या सोचेगा?” यह प्रश्न बहुत सारे लोगों को एक खुशहाल जीवन जीने के अवसर को उनसे दूर कर देताहै।अगर इस प्रश्न की उपेक्षा करना, हमें हमारी देश की संस्कृति से दूर करता है तो शायद यह इसी के लायक है।