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द फकीर ऑफ वेनिस मूवी रिव्यु

February 9, 2019
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द फकीर ऑफ वेनिस मूवी रिव्यु

क्या होता है जब एक कॉनमैन (चीट करने वाला व्यक्ति), जो एक अनोखे संत की तलाश में है, की मुलाकात एक नकली फकीर से हो जाए? खैर, आप फरहान अख्तर की “द फकीर ऑफ वेनिस” की इस डेब्यू फिल्म में इस विषय के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

निर्देशक – आनंद सूरापुर

निर्माता – पुनीत देसाई, आनंद आनंद सूरापुर

पटकथा – राजेश देवराज

स्टोरी – होमी अदजानिया

कलाकार – फरहान अख्तर, अन्नू कपूर, कमल सिद्धू

संगीत – ए. आर. रहमान

सिनेमेटोग्राफी – दीप्ति गुप्ता, प्रीता जयरामन, बकुल शर्मा

संपादक – बंटी नेगी

प्रोडक्शन कंपनी – अक्टूबर फिल्म्स, फाट फिश मोशन पिक्चर्स

कथानक – फिल्म आदि कॉन्ट्रैक्टर (फरहान अख्तर) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो प्रोडक्शन कंट्रोलर के रूप में फिल्मों में काम करता है। ‘द फकीर ऑफ वेनिस‘ अख्तर की पार्श्व आवाज के साथ शुरू होती है, जो एक कॉनमैन (चीट करने वाला व्यक्ति) की भूमिका निभाता है और वह एक अनिन्दनीय “जुगाडू” भी है। आदि एक ऐसा व्यक्ति है जो यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी कीमत पर, इन्डस्ट्री के उत्पादकों की अनोखी मांगें पूरी की जाएं। एक बार वह एक बंदर, जिसकी कुछ उत्पादकों को जरूरत थी, की तस्करी सफलतापूर्वक कर लेता है। आदि, जो मुंबई का एक चालबाज़ व्यक्ति है, को वेनिस के एक कलाकार द्वारा काम पर रख लिया जाता है और उसे एक फकीर, जो कुछ समय के लिए खुद को रेत में दफन कर सकता हो, को खोजने का काम दिया जाता है। आदि बनारस जाता है लेकिन ऐसे किसी भी फकीर को खोजने में नाकामयाब रहता है। आखिरकार, वह अपने हुनर से ठगी कर पैसे कमाने का फैसला करता है और सत्तार (अन्नू कपूर), जो मुंबई में एक एक दिहाड़ी मजदूर है, को इस काम पर रख लेता है। सत्तार कोई ऋषि नहीं है, लेकिन उसके पास लंबे समय तक खुद को रेत में दफन होने का अनोखा अनुभव है। दोनों ठग नहरों के शहर वेनिस की ओर निकल पड़ते हैं, जहाँ उन्हें एक आर्ट गैलरी शो के लिए काम करना है। साथ में, वे दोनों अपने जीवन का सबसे अनूठा समय सुरम्य यूरोपीय शहर में अनुभव करते हैं।

मूवी रिव्यु – ‘द फकीर ऑफ वेनिस‘ जो लगभग बारह साल पहले रिलीज़ होने वाली थी, लंबे विलंबित शेड्यूल के बावजूद हमारा मनोरंजन करने का प्रबंध करती है। हालांकि, कुछ तत्व हैं जो इस बात को उजागर करते हैं कि फिल्म में नयापन गायब है। एक नई अवधारणा के बावजूद यह दर्शकों को लुभाने में विफल रही है; इसके असामान्य कॉमिक प्लॉट के लिए धन्यवाद। फिल्म दो अलग-अलग वर्गों के मनुष्यों के परस्पर संबंधों की पड़ताल करती है।

आदि एक उच्च-मध्यम वर्गीय मुंबईकर है जबकि सत्तार एक गरीब धूर्त है। द फकीर ऑफ वेनिस आगे बढ़ती है और एक विदेशी शहर में दोनों इंसानों के संबंधों की पड़ताल करती है। पूरी फिल्म की कहानी मुख्य रूप से फरहान और अन्नू के पात्र के इर्द-गिर्द घूमती है। फरहान ने एक विशिष्ट उपनगरीय उच्च-मध्यम वर्ग मुंबईकर की भूमिका में अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है। फरहान का काम निराशाजनक नहीं है क्योंकि फरहान ने कैमरे के सामने अच्छा काम किया है। फिल्म उद्योग के एक प्रतिभाशाली अभिनेता अन्नू कपूर की उपस्थिति ने इस फिल्म को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की कोशिश की है, लेकिन जैसा कि दिग्गज अभिनेता का उपयोग फिल्म में पूरी तरह से नहीं किया गया है, इसलिए उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है। फिल्म में दर्शकों, जिन्होंने हाई वोल्टेज बॉलीवुड ड्रामा की उम्मींद लगाई थी, के लिए एक छोटी सी पेशकश है।

हमारा फैसला – कुल मिलाकर, द फकीर ऑफ वेनिस थोड़ी पुरानी लगती है और ऐसा लगता है कि पूरी कहानी को जबर्दस्ती तैयार किया गया है। केवल आला दर्शकों को ही यह फिल्म पसंद आएगी। तो, इस फिल्म को देखने केवल तभी जाएं जब आप अख्तर के प्रशंसक हैं और एक अलग फिल्म की तलाश कर रहे हों।

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द फकीर ऑफ वेनिस
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