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भारत में जापान का निवेश – विकास की कहानी और शीर्ष क्षेत्र

December 21, 2017
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भारत में जापान का निवेश

जब वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने केंद्र का पद भार संभाला, तब से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) मुख्य-रूप से आकर्षित रहा  है। एफडीआई कई आर्थिक नीतियों, कर सुधारों और विशेष रूप से व्यवसाय करने में आसानी व विदेशी निवेशकों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। मेक इन इंडिया का शुभारंभ प्रमुख क्षेत्रों में इन एफडीआई को बढ़ावा देने का एक प्रयास है, ताकि भारत को दुनियाभर में एक महत्वपूर्ण विनिर्माण और सेवा केंद्र के रूप में तब्दील किया जा सके। आइये अब एक नजर डालते हैं कि इन आर्थिक नीतियों और कर सुधारों ने भारत के आर्थिक मामलों के महत्वपूर्ण भागीदार, जापान के निवेश को कैसे प्रभावित किया है।

जापान अब भारत में तीसरा सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है। यह देश “एकल देशीय स्रोत” के रूप में भी सबसे बड़ा निवेशक है। इस सहस्राब्दी के शुरुआत से ही, जापान द्वारा भारत को करीब 25.67 अरब अमरीकी डॉलर का एफडीआई प्रदान किया गया है। यह वर्ष 2000 और वर्ष 2017 के बीच हमारे द्वारा प्राप्त सभी एफडीआई का लगभग 8 प्रतिशत योजक है। एक निवेशक के रूप में जापान की महत्वता पर पर्याप्त जोर नहीं दिया जा सकता है, लेकिन पिछले एक साल में, जापान की महत्वता ने कई गुना वृद्धि दर्ज की है। जापानी एफडीआई वित्तीय वर्ष 2013-14 में 1.3 अरब अमरीकी डॉलर से बढ़कर, वित्तीय वर्ष 2015-16 में 2.6 अरब डॉलर और 2.6 अरब डॉलर से बढ़कर, वित्तीय वर्ष 2016-17 में 4.7 अरब डॉलर हो गई है।

सहयोग के प्रमुख क्षेत्र

भारत में परंपरागत रूप से दूरसंचार, ऑटोमोबाइल, हैवी इंजीनियरिंग और फार्मास्यूटिकल्स (औषधीय) और केमिकल्स (रसायन) विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में निवेश और सहयोग के रूप में जापानी उपस्थिति देखने को मिली है। हालाँकि, हाल के दिनों में जापान के निवेश को प्राप्त करने वाले क्षेत्रों की विशाल विविधता मस्तिष्क में संदेह उत्पन्न कर रही है।

इस साल की शुरुआत में, जापानी सरकार के लिए काम करने वाले मिजुहो फाइनेंशियल ग्रुप ने भारत में निवेश और सहयोग के लिए कई क्षेत्रों का चयन किया था। इसमें ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा, इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रासंपोर्टेशन आदि जैसे क्षेत्र शामिल हैं। वर्ष 2015 में जापान ने बुनियादी सुविधाओं और विनिर्माण पर विशेष जोर देने के साथ-साथ वर्ष 2014 से वर्ष 2019 के बीच में 33 अरब डॉलर के निवेश का वादा किया था।

इस वर्ष जापान ने कुछ प्रमुख क्षेत्रों में एफडीआई प्रदान किया है और इसमें सहयोग के महत्वपूर्ण क्षेत्र बैंकिंग और फाइनेंस, खुदरा और उपभोक्ताओं के विश्वसनीय सामान शामिल हैं। हालाँकि आने वाले समय में जापान द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर में सबसे अधिक विकास और निवेश को देखने की संभावना की जाती है।

भारत में औद्योगिक पार्क

जापान ने भारत के साथ सहयोग स्थापित करने और पूरे भारत में 12 औद्योगिक पार्कों का निर्माण करने का भी निर्णय लिया है। इन औद्योगिक पार्कों का निर्माण करने के लिए जिन जगहों का चयन किया गया है, वह – गुजरात में मंडल, राजस्थान में घिलोत व नीमराना, हरियाणा में झज्जर, ग्रेटर नोएडा में एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप, तमिलनाडु में पोंनेरी, कर्नाटक में तुमकुर और महाराष्ट्र में सुपा हैं। भारत सरकार काफी शीघ्रता से इन पार्कों की स्थापना करने का प्रयास कर रही है।

भारत और जापान पूर्वोत्तर राज्यों में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए एक मंच की स्थापना करेंगे और इस क्षेत्र में सामरिक बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए संयुक्त रूप से सहयोग करेंगे। पहले चरण में पूर्वोत्तर सड़क नेटवर्क में सुधार करने की परियोजना का शुभारंभ करने के लिए 61 करोड़ अमरीकी डॉलर निर्धारित किए हैं। जापान जापानी सैनिकों, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मणिपुर में अपनी जान गँवा दी थी, उनके लिए एक युद्ध स्मारक बनाने की योजना भी बना रहा है। इसके अलावा, जापानी सरकार देश के माध्यम से विशेष आर्थिक क्षेत्रों को स्थापित करने में भी अपना समर्थन दे रही है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, हरियाणा राज्य जापान से एफडीआई का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता है।

विकास की कहानी

इस समय भारत और जापान के बीच संबंध काफी सुदृढ़ हैं। यह सच है कि ज्यादातर अर्थशास्त्री और कॉर्पोरेट लीडर (कंपनियों के मालिकों) ने इस पर अपनी सहमति व्यक्त की है। भारत व जापान के बीच संबंध हर गुजरते हुए साल में मजबूत हो रहे हैं। पिछले एक साल में ही भारत में जापानी कंपनियों की संख्या में काफी वृद्धि देखने को मिली है। समाचार रिपोर्टों से पता चलता है कि भारत में अक्टूबर 2016 में 1,305 जापानी कंपनियाँ दर्ज की गई थीं। भारत में वर्ष 2015 के मुकाबले 2016 में 6 प्रतिशत कंपनियों की वृद्धि हुई थी और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वर्ष 2017 में कंपनियों की संख्या वर्ष 2016 के मुकाबले कहीं ज्यादा होगी।

हालाँकि, दोनो देशों के बीच सफल भागीदारी के कई उदाहरण हैं, फिर भी कुछ रिकोह इंडिया जैसे जापानी डिजिटल इमेजिंग उपकरण निर्माता से लोग हिचकते हैं। भारतीय इकाई कई घोटालों का शिकार हुई है, इसलिए जापानी मूल कंपनी हुए इन घाटों की भरपाई करने का प्रयास कर रही है।

इस तरह के उदाहरणों के बावजूद भी भारत के अर्थशास्त्री और कॉर्पोरेट लीडर इस बात पर सहमत हैं कि ये दोनों एशियाई अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरे के लिए बहुत अच्छी पूरक हैं। दोनो देश आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों के भव्य पथ पर अग्रसर हैं और इस सहयोग से विकास की क्षमताओं में भी काफी वृद्धि देखने को मिल सकती है।