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दिल्ली में वाहन प्रदूषण और लोटस मंदिर पर इसका प्रभाव

April 6, 2018
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दिल्ली में वाहन प्रदूषण

भारत और विशेषकर इसके महानगरों की वैश्विक स्तर पर, हमेशा दूषित वायु की गुणवत्ता के बारे में बात की जाती है। जनसंख्या में बढ़ोतरी, सीमित संसाधनों का अधिक प्रयोग और वाहनों तथा उद्योगों की बढ़ती संख्या आदि जैसे कारण वायु की गुणवत्ता को दूषित करने या वायु प्रदूषण में अहम भूमिका निभाते हैं। वर्ष 2014 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक अध्ययन का संचालन किया था, जिसमें उन्होंने विश्व के 1600 शहरों का औसत पीएम का स्तर 2.5 पाया था, जिसमें भारत के भी 124 शहर शामिल थे। इस अध्ययन में यह भी पता चला कि दिल्ली, जो दुनिया का पाँचवां सबसे अधिक आबादी वाला महानगर है, उसकी वायु की गुणवत्ता सबसे अधिक दूषित थी। शीर्ष 20 में बारह अन्य भारतीय शहर – पटना, ग्वालियर, रायपुर, अहमदाबाद, लखनऊ, फिरोजाबाद, कानपुर, अमृतसर, लुधियाना, इलाहाबाद, आगरा और खन्ना शामिल हैं।

अधिकांश अध्ययनों से यह पता चला है कि वायु प्रदूषण श्वसन संबंधी समस्याओं का प्रमुख कारण है। वर्ष 2008 में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस संबंध में विस्तृत अध्ययन किया और जिसमें पता चला कि ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की अपेक्षा कम प्रदूषण है तथा ग्रामीण लोगों की तुलना में दिल्ली में रहने वाले लोगों में श्वसन संबंधित बीमारियों की संख्या 1.7 गुना अधिक है।

दिल्ली पर वायु प्रदूषण का प्रभाव?

वायु प्रदूषण केवल स्वास्थ्य को ही प्रभावित नहीं करता है, बल्कि यह दिल्ली की प्रतिष्ठित स्मारकों को भी प्रभावित कर रहा है। दूषित वायु लाल किला, लोटस मंदिर और कुतुब मीनार जैसे विरासती स्मारकों के लिए भी काफी हानिकारक है।

वायु प्रदूषण का प्रभाव बहाई उपासना मंदिर अर्थात् “लोटस मंदिर” पर भी देखा गया है। इस प्राचीन मंदिर की संरचना सफेद पारस पेंटिलिकान संगमरमर से बनी है और जिस क्षेत्र में यह मंदिर बना हुआ है, उस क्षेत्र में वाहनों का अधिक उपयोग होने के कारण वहाँ के प्रदूषण में भी बढ़ोत्तरी हो रही है, इसलिए यह संरचना धीरे-धीरे भूरे रंग में तब्दील हो रही है। वायु प्रदूषण का संकेतक का स्तर पीएम 2.5, दक्षिण दिल्ली में 200 से भी अधिक है और 121-250 के बीच वायु गुणवत्ता सूचकांक के स्तर को अत्यधिक खराब और काफी चिंतनीय माना जाता है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा नियत एक आयोग ने बताया कि वाहन ट्रेफिक दिल्ली की संरचनाओं को प्रभावित कर रहा है और कुछ पत्थरों को भी पीले रंग में परिवर्तित कर रहा है। कई स्मारक, जैविक और रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से खराब हो रहे हैं, क्योंकि यह देखा गया है कि झोपड़ियों में रहने वाले लोग सर्दियों में रबर और प्लास्टिक को जलाते हैं।

इसके अतिरिक्त बदरपुर विद्युत संयंत्र नियमित रूप से गैस और उड़ने वाली राख का उत्सर्जन करते हैं। ये सभी कारण प्रदूषण की समस्या को बढ़ाने का कार्य करते हैं।

वर्ष 1986 में निर्मित यह लोटस मंदिर एक वास्तुकला का चमत्कार है और इसने कई पुरस्कार भी जीते हैं। यह अपनी कमल के फूल की संरचना के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में हर साल लगभग 56 लाख भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। इस सुंदर मंदिर में एक ही समय पर 2,500 लोगों को समायोजित करने के लिए 27 मुक्त-खड़ी सफेद संगमरमर की पंखुड़ियाँ और केंद्र में 40 मीटर लंबा हॉल बनवाया गया था।

वाहन और उद्योग, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषकों का उत्सर्जन करते हैं, जो नम हवा में मिलकर एसिड (अम्ल) का रूप धारण कर लेते हैं। यह एसिड एक अपरिवर्तनीय प्रक्रिया में संगमरमर में समायोजित हो जाते हैं, जिससे संगमरमर में छिद्र और उनका रंग परिवर्तित होने लगता है। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटेक) के अनुसार, जो लोटस मंदिर के साथ हो रहा है, ऐसा ही ताजमहल के साथ भी हुआ है।

प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?

दिल्ली का नेहरू प्लेस, एक व्यावसायिक क्षेत्र है, जो उच्च मात्रा में वाहनों के आवागमन का गवाह है। व्यावसायिक समय के दौरान अत्यधिक यातायात के कारण अत्यधिक मात्रा में धुएं का उत्सर्जन होता है और जिसके कारण स्मारकों के आसपास की वायु की गुणवत्ता दूषित हो जाती है।

वायु प्रदूषण को कम करने के प्रयास में, एनजीटी ने एक प्रमुख कदम उठाया है। इसने दिल्ली में 10 वर्ष से अधिक समय तक चलने वाले सभी डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया है। उम्मीद की जाती है कि इस प्रकार के प्रतिबंध से दिल्ली की सड़कों पर करीब 10 लाख वाहन, खासकर टैक्सियाँ नहीं दिखाई देंगी। सरकार को शहर और इसके ऐतिहासिक स्मारकों की रक्षा के लिए इसी प्रकार के कदम उठाने की आवश्यकता है।